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गायत्री जयंती :यहाँ हम जिक्र करेंगे कि गायत्री जयंती मनाने के पीछे क्या कारण है, आइये जानते हैं… ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को गायत्री जयंती मनाई जाती है। यह इस वर्ष 02 जून को पड़ रही है। यहाँ यह जानना जरूरी है कि इसकी तिथि को लेकर मतभेद भी है। कहीं-कहीं पर ये जयंती ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाई जाती है तो कहीं-कहीं एकादशी तिथि को मनाने की परंपरा लोगों के बीच विधमान है। एक परम्परा यह भी है कि कई जगह इसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। साथ ही आपको बताता दें कि गायत्री देवी के जन्मोत्सव के रूप में गायत्री जयंती मनाई जाती है।
लोगों के बीच यह मत है कि चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण ही माँ गायत्री को वेदमाता कहते हैं, वहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है। यही कारण है कि इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है। शास्त्रों अनुसार मां गायत्री वेद माता के नाम से जानी जाती हैं। वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायंत्री मंत्र में ही चारों वेदों का सार है।
इसलिए गायत्री जयंती के दिन गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करें। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी। आरम्भ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया था। तभी से यह प्रचलित है।
ॐ भूर् भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
मन्त्र का अर्थ जाने पर ज्ञात होता है कि उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक,देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्त करण में धारण करें। वह परमात्मा बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरि करें। यानी इस मंत्र के जप से बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मण की क्षमता बढ़ती हैं इससे मनुष्य का तेज बढ़ता हैं साथ ही दुखों से छूटने का रास्त मिलता हैं।
गायत्री मंत्र का जाप सुबह या शाम किसी भी समय कर सकते हैं। इस मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें। साफ और सूती वस्त्र पहनें। कुश या चटाई का आसन बिछाएं। जाप के लिए तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें। ब्रह्ममुहूर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जाप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर पश्चिम दिशा में मुख करके जाप पूरे करें। आपको बता दें कि आप इस मंत्र का मानसिक जाप किसी भी समय कर सकते हैं। अगर शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जाप में बाधा आ जाती है तो आप हाथ-पैर धोकर फिर से जाप कर सकते हैं।
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