भारत में रेलवे का इतिहास लगभग 167 साल पुराना है। भारतीय इतिहास इसकी शुरूआत भारत में अंग्रेजों के शासन काल से हुई जोकि बहुत ही रोचक है। भारतीय रेलवे ने सबसे पहली ट्रेन 18वीं सदी में चलाई गई। देश में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन जो कि अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) से ठाणे के बीच चलाई गई थी। इस ट्रेन में लगभग 400 यात्रियों ने सफर किया था। पहली ट्रेन ने लगभग 34 किलो मीटर लंबे रेलखंड पर सफर तय किया था। भारत में उस समय ट्रेन की शुरूआत देश की एक बड़ी उपलब्धि थी। पहली ट्रेन को भाप के इंजन के जरिये चलाया गया था। क्योंकि देश में ब्रिटिश राज था और ब्रिटिश शासकों ने अपनी प्रशासनिक सुविधा बढ़ाने के लिए देश में रेल की नींव डाली थी।
ऐसा नहीं है कि भारत में रेलवे के विकास की कोशिशें नहीं कि गई बल्कि भारत में रेलवे विकास का कार्य बहुत पहले ही शुरू हो चुका था। सबसे पहले 1844 में उस वक्त के गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिंग ने रेल व्यवस्था के निर्माण का प्रस्ताव रखा, और इसी कड़ी में 1851 में रुड़की में कुछ निर्माण कार्य में माल ढुलाई के लिए रेलगाड़ी का इस्तेमाल होने लगा। 22 दिसंबर 1851 को रुड़की में देश की पहली ट्रेन जो कि मालगाड़ी थी, को रेल का शुरुआती कदम माना जा सकता है।
लेकिन एतिहासिक नजरिए से पहली ट्रेन 1853 में ही चली। जिसकी चर्चा उस वक्त ब्रिटेन के अखबारों में भी की गई थी। 1853 में शुरु हुई रेलवे ने रफ्तार पकड़ी और रेल का विकास होता चला गया। यहाँ ईस्ट इंडिया कंपनी ने सिर्फ रेल की शुरुआत ही नहीं की थी बल्कि इसे देश के हर प्रांत से जोड़ने का काम भी किया। दक्षिण में 1 जुलाई 1856 को मद्रास रेलवे कंपनी की स्थापना हुई और इसके साथ ही दक्षिणी भारत में भी रेलवे व्यवस्था का विकास होना शुरू हो गया।
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भारत की सबसे पहली हैरिटेज ट्रेन का नाम “फेयरी क्वीन” था। इस ट्रेन में विश्व का सबसे पुराना भाप इजंन लगाया गया था जिसका निर्माण सन् 1855 में ब्रिटेन की कंपनी किटसन ने किया था। साल 1997 के बाद इस ट्रेन को हैरिटेज ट्रेन के रूप में चलाया जाने लगा। इस ट्रेन में सफर करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
सन् 1881 को पूर्वोत्तर में पहली बार आधिकारिक तौर पर “टॉय ट्रेन” चली। ये ट्रेन दो फुट चौड़े नैरो गेज ट्रेक पर चलती है और इसकी रफ्तार बहुत कम होती है। इस ट्रेन को यूनेस्को से वल्र्ड हैरिटेज साइट का दर्जा प्राप्त है। ये खिलौना ट्रेन भारत के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन घूम तक जाती है।
हिंदुस्तान की आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान का बंटवार हुआ, जिसमें 14 अगस्त 1947 को रेल नेटवर्क भी दोनों देशों के बीच बंट गया। आजादी के चार साल बाद 1951 में रेलवे का इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। फिलहाल भारतीय रेलवे लगभग 14 लाख कर्मचारियों के साथ दुनिया में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला विभाग है।
1909 में ट्रेनों में यात्रियों के लिए टॉयलेट की सुविधा शुरू की गई। पश्चिम बंगाल के एक यात्री ओखिल चंद्र सेन ने रेलवे स्टेशन को एक चिट्ठी लिख कर शिकायत की थी कि वह लघुशंका के लिए गए थे और इसी दौरान उनकी ट्रेन उन्हें छोड़ कर चली गई। रेलवे ने इनकी शिकायत का सुनवाई करते हुए सभी डिब्बों में यात्रियों के लिए टॉयलेट की सुबिधा शुरू की थी । इससे पहले ट्रेनों में शौचालय नहीं हुआ करते थे और वर्ष 1891 में केवल प्रथम श्रेणी के डिब्बों को इस सुविधा से जोड़ा गया था।
भारतीय रेलवे के नाम कई तरह के वर्ल्ड रिकार्ड भी दर्ज हैं। इस समय विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल भारत की चिनाब नदी पर बन रहा है। सिविल इंजीनियरिंग के चमत्कार का आश्चर्य है कि यह पुल पूरा बनने के बाद पेरिस के एफिल टावर को भी ऊंचाई के मामले में पीछे छोड़ देगा। इस समय भारत में लगभग 115,000 किलोमीटर लंबें रेल ट्रेक का जाल फैला है। भारतीय रेलवे अमरीका, चीन और रूस के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। भारतीय रेलवे में लगभग 16 लाख लोग कार्य करते हैं। इस तरह यह दुनिया का 9वां सबसे बड़ा नौकरी देने वाला विभाग है।
भारतीय ट्रेनों में प्रतिदिन 2.5 करोड़ लोग यात्रा करते हैं। भारत में छोटे-बड़े कुल मिलाकर 7,500 रेल्वे स्टेशन हैं। उत्तरप्रदेश के लखनऊ का चारबाग स्टेशन अन्य रेल स्टेशनों से अलग अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इसके अतिरिक्त नई दिल्ली के मेन स्टेशन का नाम दुनिया के सबसे बड़े रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम के लिए गिनिज बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी दर्ज किया गया है। विश्व का सबसे लंबे प्लेटफॉर्म का रिकॉर्ड भी भारतीय रेलवे के ही नाम है। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर स्थिति स्टेशन प्लेटफॉर्म की लंबाई 1366.33 मीटर है। भारतीय रेलवे का मस्कट भोलू नामक हाथी है। यह हाथी बतौर गॉर्ड तैनात है।
भारतीय रेलवे इन दिनों सेमी बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसकी शुरूआत जल्द होने की उम्मीद है। सेमी बुलेट ट्रेन 160 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ेगी। वैसे साल 1988 में दिल्ली और भोपाल के बीच शताब्दी एक्सप्रेस शुरू की गई। इसकी रफ्तार 150 किलोमीटर प्रति घंटा थी। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जन्मशती पर इसे शुरू किया गया था।
देश की सबसे ट्रेन शताब्दी एक्सप्रेस साल 1988 में दिल्ली और भोपाल के बीच चलाई गई। इसकी रफ्तार150 किलोमीटर प्रति घंटा थी। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जन्मशती पर इसे शुरू किया गया था।
तीन अगस्त 2002 को पहली बार भारतीय रेलवे ने घर बैठे इंटरनेट के जरिए टिकट बुक कराने की सुविधा शुरू की।
भारतीय रेलवे ने आजादी के बाद भी विकास किया. लेकिन विस्तार का दायरा उतना नहीं रहा. वर्तमान समय में भारत में रेलमार्गों की लंबाई 63 हजार किलोमीटर से कुछ ज्यादा की है. आजादी के बाद रेलमार्गों की लंबाई में मामूली तौर पर विस्तार हुआ. इस नजरिए से ये अभी तक कहा जाता है कि भारत में रेल अंग्रेजों की देन है.
इस मामले में विशेषज्ञों की राय अलग है. उनका मानना है कि आजादी के बाद रेलमार्गो का विस्तार भले ही कम हुआ है लेकिन भारत में रेल का विकास कम नहीं हुआ है. रेलवे की पटरियों का दोहरीकरण, रेलवे में सुविधाओं और सुरक्षा व्यवस्था का काम तेजी से हुआ है.
आजादी के बाद रेलवे के विकास के महत्व को भारत सरकार ने समझा और 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. देश की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने में रेलवे का योगदान रहा. देश के विकास के साथ-साथ रेल ने भी तरक्की के नए-नए आयाम गढ़े. रेलवे की आमदनी भी बढ़ी और खर्च भी.
रेलवे ने विकास किया. इसका दायरा बढ़ा. विस्तार के साथ विकास का सामंजस्य बिठाने के लिए इसे कई जोनों में बांटा गया. हर जोन के हिसाब से रेलवे की कार्यप्रणाली पर नजर भी रखी गई और वक्त के साथ-साथ सुविधाओं से लेकर सुरक्षा का ख्याल रखा गया.
देश ने विकास का लंबा सफर तय किया. देश के साथ रेलवे ने भी विकास किया. लेकिन ये विकास किस हद तक हुआ ये बड़ा सवाल है. रेलवे के साथ देश की आर्थिक प्रगति जुड़ी हुई है. इस मायने में रेलवे ने बखूबी साथ दिया. सरकारी नियंत्रण में रहने के बावजूद तरक्की हुई. लेकिन इस तरक्की को अगर किसी पैमाने पर कसकर देखा जाए तो थोड़ी निराशा हो सकती है. अगर विश्व परिदृश्य में देखा जाए तो दुनिया का दूसरा बड़ा रेलवे नेटवर्क होने के बावजूद हम पीछे हैं. वजह चाहे जो रही हो.
वक्त के साथ-साथ रेलवे ने विकास किया. रेलवे में सुविधाएं बढ़ीं. सुरक्षा व्यवस्था में सुधार किए गए. लेकिन इतने बड़े ट्रांसपोर्ट सिस्टम में खामियां बनी रही. आज भी हालात ये है कि रेलयात्रियों की संख्या के हिसाब से ट्रेनें कम हैं. आंकड़े बताते हैं कि हर दिन करीब चौदह हजार ट्रेनें अपने सफर पर निकलती हैं. लेकिन ये चौदह हजार ट्रेनें भी यात्रियों की मांग को पूरा नहीं कर पाती.
रेल पर यात्रियों का दवाब है. चाहे लंबी दूरी की ट्रेनें हों या फिर छोटी दूरी के. ट्रेन की बोगियां यात्रियों से खचाखच भरी होती हैं. रिजर्वेशन मिलने में मुश्किलें आती हैं. पर्व त्योहार के मौसम में रेलवे व्यवस्था की हालत खस्ता होती है. स्पेशल ट्रेनें चलाने के बावजूद भऱपाई नहीं हो पाती. ऐसे में विकास के इतने वर्षों का सफर कुछ अधूरा सा लगता है.
अंग्रेजों के राज में चौतीस किलोमीटर से शुरु हुआ रेलवे का सफर 49 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी तय की. लेकिन आजादी के बाद ये कुछ हजार किलोमीटर तक सिमट कर रह गई. आखिर ऐसा क्यों हुआ? सुविधाएं बढ़ी, सुरक्षा बढ़ी, लेकिन क्या रेलवे का विकास उस पैमाने को छू पाया.
जो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाता हो. शायद ऐसा नहीं हो पाया. इसमें एक बड़ी वजह यहां के सरकारी तंत्र को माना जाता रहा है. ढीले-ढाले सरकारी रवैये ने भारतीय रेलवे को ठीक उसी तरह से नुकसान पहुंचाया है, जैसा कि अन्य सरकारी संस्थानों के साथ होता आया है.
हालांकि नतीजे इतने भी खऱाब नहीं हैं. विकास के पैमाने के साथ विशेषज्ञ इसे जनसंख्या के दवाब के साथ में जोड़कर देखते हैं लेकिन वो इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकारी तंत्र कई मामलों में रेलवे पर हावी रहा है. तुलना किसी प्राइवेट कंपनी से की जाए तो निश्चित तौर पर रेलवे पिछड़ा नजर आएगा.
भारतीय रेलवे सरकारी नियंत्रण में हैं. इसमें आम जनता की सुविधा का ख्याल रखा जाता है. आम जन से जुड़ाव रेलवे के दायरा को बड़ा करती है. लेकिन साथ ही आम जनता का दवाब भी हासिल होता है. रेल सरकारी है और सरकारी संपत्ति आपकी है. हमारी है. तो फिर हम अपनी संपत्ति का विकास उस तरीके से क्यों नहीं कर पाते जैसा और देशों में होता है. रेलवे का आधुनिकीकरण होता है. लेकिन विश्व परिदृश्य में देखें तो ये काफी पिछड़ा हुआ नजर आता है.
टेक्नोलॉजी के स्तर पर रेलवे पिछड़ा नजर आता है. पटरियों के दोहरीकरण को रेलवे का सबसे बड़ा विकास माना जाता है. लेकिन हमारी पटरियां इस मजबूती के साथ खुद को जोड़े नहीं रख पाती कि उस पर हाई स्पीड ट्रेनें दौड़ सकें. आखिर ऐसा विकास क्यों नहीं हुआ. हाईस्पीड ट्रेन, मोनोरेल, डबल डेकर ट्रेन. टेक्नोल़ॉजी ने ट्रेनों को विस्तार दिया है लेकिन ये हमारे यहां नजर नहीं आता. भारतीय रेलवे आम लोगों की उम्मीदों को पूरा करते करते थका हुआ सा नजर आता है.
ऐसा नहीं है कि भारतीय रेलवे में दूरदृष्टि रखने वाले नेतृत्व की कमी रही…ऐसे कई लोग हुई जिन्होंने अपने वक्त में रेलवे का विकास किया…लेकिन ऐसे लोग अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं. कहीं ना कहीं राजनीति का एक पहलू रेलवे के विकास पर भारी पड़ता है…
रेल का सफर जारी है.. जारी रहेगा.. विकास के नए नए पैमाने गढ़े जाएंगे…जैसी जिंदगी में परेशानियां कम नहीं होती..वैसे रेलवे की परेशानियां कम नहीं होगी…क्योंकि ये सिर्फ एक सफर का जरिया नहीं..इसके साथ करोड़ों लोगों का जुड़ाव है…जुड़ाव एक सफर का..,जो चलती रहती है..दौड़ती रहती है…बिल्कुल जिंदगी की तरह…
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