1950 में लागू हुआ भारतीय संविधान विश्व के अन्य संविधानों की तुलना में बहुत विस्तृत,सम्पुर्ण और अनूठा है। इसमे शासन प्रणाली से जुड़े हुये सारे पहलुओं का उल्लेख है और सम्भवतः यही इसे विश्व का सबसे बड़ा संविधान बनाता है। भारतीय संविधान का निर्माण विश्व के अनेक संविधानो के अनुकरण करके बना है, और इसमे कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिये गये है। भारतीय संविधान के विभिन्न विशेषताएँ निम्नलिखित है जो इसे विश्व का अग्रणी दस्तावेज बनाती है।
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संविधान के भाग 3 में हर एक व्यक्ति और नागरिकों को कुछ मूल अधिकार दिये गये है, और ये मूल अधिकार उन्हें राज्य स्वयं संरक्षित करता है। मूल अधिकार संख्या में 6 है और वो समानता, स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक स्वतंत्रता, और संवैधानिक उपचारो का अधिकार देती है। मूल अधिकार मूलतः किसी व्यक्ति को उसके मानव होने की वजह से प्रदान किया जाता है, संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक ये अधिकार उल्लेखित है।ये न्यायालय में प्रवर्तनीय है और इनके उलन्घन की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से उपचार प्राप्त किया जा सकता है।
यह आयरलैंड के संविधान से लिया गया एक अप्रवर्तनीय प्रावधान है, जो राज्यो को उनकी नीतियों के निर्माण के सहायक है। ये निर्देशक तत्व राज्य को कल्याणकारी राज्य बनाने में सहायक होते है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व भाग 4 में निहित है और अनुच्छेद 36 से 51 तक दिये गये है। हालांकि ये प्रवर्तनीय नही है और ना ही राज्यो पर बाध्यकारी है।
भारतीय संविधान में संकट काल के लिये और विभिन्न हालातो में 3 प्रकार के आपातकाल घोषित करने का प्रावधान है। देश में किसी बाहरी आक्रमण,सशस्त्र विद्रोह या युद्घ की स्थिति में राष्ट्रिय आपातकाल लगाया जा सकता है। इसके अलावा राज्य आपातकाल और आर्थिक आपातकाल लगाया जाता है। राष्ट्रिय आपातकाल को अनुच्छेद 352, राज्य आपातकाल को 356 और अनुच्छेद 360 में लगाया जा सकता है।
भारतीय संविधान में 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश है। परन्तु किसी भी व्यक्ति की सिर्फ एक नागरिकता होती है और वो भी भारत की नागरिकता, अमेरिका के संविधान में दोहरी नागरिकता का प्रावधान है, वहा व्यक्ति राज्य और देश दोनो का नागरिक होता है।
भारतीय संविधान में न्यायपालिका को स्वंतंत्र और संविधान का संरक्षक बनाया गया है, जिससे परस्पर विभिन्न अंगो का तालमेल बना रहे और निरंकुशता पर रोक लगी रहे।
भारतीय संविधान में बदलाव या संशोधन न तो अमेरिका के संविधान की तरह जटिल और न ही ब्रिटेन की तरह बहुत ही आसान, बल्कि भारत के संविधान को कुछ प्रावधानो में बहुत आसानी से बदलाव किये जा सकते है जैसे राज्यो के नाम आदि तो वही कुछ प्रावधानो मे संशोधन की प्रक्रिया बहुत जटिल है।
विश्व में प्राय: दो ही तरीके की व्यवस्थाये है, जो या तो संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह राष्ट्रपति शासन या ब्रिटेन के संसद की तरह संसदीय कार्यप्रणाली। भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया, इसके दो कारण थे पहला भारतीय इस व्यस्था से परिचित थे पराधीनता के समय से ही, और दुसरा इस व्यवस्था में सरकार जनत को ज्यादा जवाबदेह होती है।
भारत में संसद का चुनाव समान व्यस्क मताधिकार के आधार पर होता है, जिसमें 18 वर्ष से उपर के सभी व्यस्क को मताधिकार का अधिकार मिला हुआ है। ये अधिकार पहले 21 वर्ष के उपर के व्यक्तियों को ही प्राप्त था पर 61वें संवैधानिक संशोधन से इसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। भारत में 18 वर्ष के बाद हरेक व्यक्ति इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है।
भारत के संविधान में इसके अलावा भी कई विशेषतायें है जैसे राज्यपालो की न्युक्ती, केंद्र और राज्यों के परस्पर सम्बंध, कर सामन्जस्य आदि। ये विशेषतायें भारत के संविधान को अनूठा और बेहतरीन संविधान बनाती है।
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