भारत-चीन संबंध : विश्व भर में आज भारत और चीन विकासशील देशों में उभरती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से हैं। भारत और चीन के बीच इसीलिए प्रतिद्वंदी का भाव लगातार बना रहता है। आज भी वही भाव बना है जो दोनों देशों में तनाव को जन्म देता है। भारत जहाँ एक लोकतांत्रिक देश है वहीं चीन में लोकतंत्र सिर्फ नाम के लिए है। आज ही नहीं चीन में शुरुआत से ही लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रख दिया गया था। शुरुआत में चीन की जो विचारधारा मार्क्स की थी वह आगे जाकर माओ की विचारधारा हो जाती है। भारत ने हमेशा से ही पूंजीवादी और समाजवादी विचारधारा के संतुलन को अपना आधार बनाया है। इस प्रकार वैचारिक रूप से भी इन दो देशों के बीच मतभेद बहुत अधिक रहे हैं। इनके वर्तमान रिश्तों की जड़ इनके इतिहास में मिलता है।
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हाल में भारत और चीन के बीच का विवाद इतना बढ़ गया था कि दोनों देशों की सेनाएं न केवल सीमाओं पर आ गई थी बल्कि गलवान घाटी की एक झड़प में भारत ने लगभग अपने 20 सैनिकों की जान भी गंवा दी। चीन ने हालाँकि अपनी तरफ से कोई आंकड़ा नहीं जारी किया फिर भी सूत्रों का मानना है कि वहाँ के भी लगभग 40-45 सैनिकों की जान गई। दोनों देशों के बीच का यह तनाव लगभग युद्ध की स्थिति तक आ पहुँचा था। हालाँकि अब स्थितियाँ फिर से पूर्व स्थिति में आ गई हैं पर अभी भी लगातार दोनों देशों में एक दूसरे को कमजोर करने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इन सब में चीन के सामान का बहिष्कार करने की माँग और चीन के अनेक ऐप पर बैन जैसे कार्य किए गए।
चीन और भारत के बीच प्राचीन काल में संबंध के कम साक्ष्य ही मिलते हैं। चूंकि भारत और चीन के बीच पहले तिब्बत का क्षेत्र आता था। अतः हमारे बीच सीमा विवाद भी नहीं था। हालाँकि चीन और भारत दोनों जगहों से प्राचीन समय में विद्वान, यात्री और तीर्थयात्री एक देश से दूसरे देश की यात्रा करते थे जिनका जिक्र हमें उनके यात्रा वृत्तांत में मिलता है।
1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया और उसे कब्जा कर लिया। इस तरह से भारत और चीन एक दूसरे के पड़ोसी बन जाते हैं। इनके बीच जो रिश्ते बने वो लगभग एक दशक तक अच्छे से चले। एक दशक के बाद इन रिश्तों में दरार आनी शुरू हुई। 1954 में नेहरू और झाऊ एनलाई के बीच ‘पंचशील सिद्धांत‘ को लेकर समझौता हुआ। इसी वक्त “हिन्दी चीनी भाई-भाई” का नारा भी काफी मशहूर हुआ। 1959 में दलाई लामा और उनके साथ अन्य शरणार्थी तिब्बत से भागकर भारत में आकर बस जाते हैं। यहीं से चीन और भारत के रिश्ते बिगड़ने शुरू हुए।
1962 में चीन ने भारत पर अचानक हमला कर दिया। जिससे भारत और चीन के बीच रिश्ते और बिगड़ते चले गए। इस युद्ध ने न केवल भारत के मनोबल को तोड़ा बल्कि उनके बीच चल रहे द्विपक्षीय समझौते को भी तोड़ दिया। यह भी माना जाता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को इससे झटका लगा जो उनके मृत्यु का कारण बना।
1976 से बातों का सिलसिला फिर शुरू हुआ। 1992 में समकालीन भारतीय राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन भारत की स्वतंत्रता के बाद चीन का दौरा करने वाले प्रथम भारतीय राष्ट्रपति बने। 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चीन का दौरा किया तथा रिश्तों को मजबूत बनाने की कोशिश की। वर्ष 2011-12 को चीन-भारत मैत्री एवं सहयोग वर्ष के रूप में मनाया गया। 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चीन का दौरा किया। 2018 में चीन के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में ‘भारत चीन औपचारिक शिखर सम्मेलन’ आयोजित किया गया तथा 2019 में इसी का दूसरा सम्मेलन चेन्नई में आयोजित किया गया।
आज भारत और चीन के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत करने के लिए 50 संवाद तंत्र हैं। इनके बीच अनेक उच्चस्तरीय यात्राएं और दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किये गए। भारत और चीन के मध्य लगभग 100 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है। चूंकि चीन एक बहुत बड़ा मैन्युफैक्चरिंग देश है अतः उनके सामान भी हमारे देश मे धड़ल्ले से बिकते हैं। भारत में आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ चीन का सामान न मिलता हो। व्यापारिक संबंधों के अलावा एक दूसरे देश की फिल्में भी दोनों देशों में खूब देखी जाती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत और चीन के बीच काफी आदान प्रदान है। दोनों ही देश के विद्यार्थी दोनों देशों में पढ़ने के लिए जाते हैं।
जैसा कि हमने ऊपर जिक्र किया कि भारत और चीन के मध्य विवाद भी कम नहीं रहे। हाल ही में जो विवाद गलवान घाटी में हुआ वह तो बहुत ही बड़ा लगा था। इसके अलावा भी कुछ और विवाद हैं जिन्हें जानना आवश्यक है। बेल्ट एंड रोड पहल पर भारत का रुख चीन के पक्ष में नहीं है क्योंकि वह पाक अधिकृत कश्मीर से होकर जा रहा है जिसके लिए चीन ने भारत से कोई बातचीत नहीं की। इसी प्रकार पाकिस्तान द्वारा आतंकी गतिविधियों पर जब भारत पाकिस्तान को घेरता है तो चीन उसका बचाव करता है। चीन द्वारा हिंद-प्रशांत महासागर पर भारत की भूमिका पर भी असंतोष ज़ाहिर किया है। दो वर्ष पूर्व डोकलाम मुद्दा भी एक प्रमुख विवाद रहा है।
हमें पता है कि भारत और चीन दोनों एशिया ही नहीं विश्व भर में ऊभर रहे एक महत्वपूर्ण देशों में से एक है। दोनों के पास जन और धन की भी कमी नहीं है। विश्व के बड़ी पाँच अर्थव्यवस्थाओं में इन दोनों का नाम आता है। अतः दोनों देश एक दूसरे से आगे जाने के लिए लगे हुए हैं। दोनों देशों में सीमा विवाद ज़रूर हैं पर दोनों ही देश का एक धड़ा इसे मैत्रीपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहता है। इस प्रकार अगर दोनों देश सहयोग करके आगे बढ़े तो दोनों विकास करेंगे।
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