महाकालेश्वर मंदिर : इतिहास साक्षी है सन् 1235 में इल्तुत्मिश के द्वारा विध्वंस किए जाने के बाद, सन् 1728 में मराठों के शासनकाल के दौरान मध्यप्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर का पुननिर्माण हुआ था। तो वहीं आज के महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने कराया था।
मुख्यता काल के दो अर्थ होते है, पहला समय और दूसरा मृत्यु। ऐसे में महाकाल को महाकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय में यही से संपूर्ण जगत का मानक समय निर्धारित होता था। इसलिए 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर रखा गया।
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।
अर्थात् आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
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न्याय के राजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में पुण्य सलिला के तट पर भगवान शिव का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विद्यमान है। मान्यता है कि महाकालेश्वर में भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। क्योंकि स्वयंभू, भव्य औऱ दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की मह्ता अत्यंत पुण्यदायी है।
जिसका वर्णन महाकवि कालिदास ने अपनी रचना मेघदूत में भी किया है। इतना ही नहीं धार्मिक रूप से विख्यात इस नगरी में हिंदू धर्म में वर्णित 33 करोड़ देवी-देवताओं के छोटे बड़े मंदिर स्थापित है। इस प्रकार कहा जाता है कि उसका कोई क्या बिगाड़ पाया है जिसने महाकाल का आशीर्वाद पाया है, ऐसे में इस नगरी पर भगवान शिव की असीम कृपा बनी रहती है।
शिवपुराण की मान्यताओं के मुताबिक महाकालेश्वर की स्थापना द्वापर युग में हुई थी। साथ ही वर्णित कथा के अनुसार, उज्जयिनी (उज्जैन) के निवासी जब दूषण नामक राक्षस के अत्याचार से परेशान हो गए थे। तब उऩ लोगों ने अपनी रक्षा के लिए शिव जी की आराधना की थी। कहा जाता है कि भक्तों की आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने राक्षस का अंत किया और उज्जयिनी में ही प्रतिष्ठित हो गए।
तो वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार, उज्जैन के राजा चंद्रसेन जोकि शिव भक्त थे। एक दिन उनके मित्र मणिभद्र ने उनको एक मणि प्रदान की। जिसको धारण करने के बाद राजा चंद्र सेन का मान सम्मान बढ़ गया।
ऐसे में उनकी इस मणि को पाने के लिए कई राजाओं ने उनपर आक्रमण कर दिया। जिनसे बचने के लिए राजा भगवान शिव की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गए। तभी वहां एक विधवा अपने पांच साल के पुत्र के साथ दर्शन के लिए पहुंची। वह छोटा बालक राजा को ध्यानमग्न देखकर प्रेरित हुआ। और घर जाकर वह भी भक्तिभाव से शिवलिंग की पूजा करने लगा।
इतना ही नहीं वह बालक शिव भक्ति में इतना लीन हो गया कि माता के कई बार पुकारने पर भी वह नहीं गया, जिस पर क्रोधित माता ने पूजा का सारा सामान उठाकर फेंक दिया। जिससे बच्चे को मन को गहरा आघात पहुंचा। तभी देखते ही देखते वहां एक सुंदर मंदिर का निर्माण हुआ। ऐसे में राजा को जब जानकारी हुई तो वह उस बच्चे से मिलने आए।
अन्य राजा भी वहां पहुंचे। तभी एकाएक वहां राम भक्त हनुमान प्रकट हुए, और उस बच्चे को गोद में लेकर वहां उपस्थित लोगों को प्रवचन सुनाने लगे कि शिव के अलावा प्राणियों की कोई गति नहीं है। साथ ही इस नन्हें से बालक ने शिव भक्ति का जो उदाहरण मनुष्यों के समक्ष पेश किया है, इससे यह मोक्ष प्राप्त करेगा। और माना जाता है कि तब से ही भगवान महाकाल उज्जैन में विराजमान हैं।
इसके अलावा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के शासन के बाद कोई राजा उज्जैन में शासन नही कर सका। जिसके बाद माना गया कि उज्जैन का राजा एक ही हैं वो है बाबा महाकाल।
कहा जाता है कि उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है। इसका महत्व तब अधिक बढ़ जाता है जब इस दिन यहां दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे- वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष और पूर्णिमा आदि। इस दौरान उज्जैन में देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्त पधारते है औऱ महाकालेश्वर के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं।
कहते है कि महाकालेश्वर के दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर गर्भगृह तक काफी दूरी तय़ करनी पड़ती है। ऐसे में भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर में पक्की सीढ़ियों का रास्ता बना हुआ है।
इस दौरान भक्तों को शिव परिवार के दर्शन प्राप्त होते है। इसके अलावा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन खंडों में विभाजित है, जिसमें निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। तो वहीं गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमाएं स्थापित है। जिसके सामने एक विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विद्यमान है।
इसके बाद गर्भगृह में महाकाल शिवलिंग के रूप में दक्षिणमुखी विराजमान है। इसके अतिरिक्त मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर कर्ख रेखा गुजरती है, इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है।साथ ही उज्जैन नगरी में चिंतामण गणेश मंदिर, कालभैरव, गोपाल मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, त्रिवेणी संगम, सिद्धवट, मंगलनाथ औऱ इस्कॉन आदि मंदिर स्थापित हैं। जहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
महाकाल के दर्शन के दौरान कहा जाता है कि यदि आपने महाकाल की यात्रा के दौरान भस्म आरती न देखी, तो आपका दर्शन अधूरा माना जाएगा। ऐसे में भस्म आरती का महत्व औऱ अधिक बढ़ जाता है। इस दौरान सुबह सबसे पहले मंहत द्वारा महाकाल को भस्म आरती के माध्यम से जगाया जाता है, तत्पश्चात् उनका पूजन और रूद्राभिषेक के बाद रीति रिवाज से श्रृंगार किया जाता है। आपको बता दें कि भस्म आरती देखने के लिए महीनों पहले बुकिंग शुरू कर दी जाती है। तो वहीं हर सोमवती अमावस्या पर उज्जैन में भक्तगण पुण्य सलिला शिप्रा स्नान के लिए पधारते है।
इस प्रकार कहा जाता है कि सावन के इन दिनों में महाकाल के दर्शन करने से कई प्रकार के कष्ट दूर हो जाया करते हैं। साथ ही श्रावण मास में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती है।
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