क्रांति की मसाल, छोटी उम्र में देश से प्यार, दिया जान का बलिदान. जी हा हम बात सहीद ए अज़ाम के खास क्रांतिकारी साथी सुखदेव थापर उर्फ़ (सुखदेव) की कर रहे हैं. जिन्होंने कभी भी उपनाम थापर लगाना नहीं चाहा. अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम करने वाले क्रांतिकारी सुखदेव का जन्म पंजाब के लुधियाना के नौघरा गाँव में 5 मई सन 1907 को हुआ, वहीँ कुछ लोगों का मानना है कि सुखदेव का जन्म लालयपुर में हुआ था. रामलाल थापर और रैली देवी के यहाँ जन्मे सुखदेव के माता पिता का इन्तेकाल जल्दी हो जाता है. जिसके कारण उनके चाचा लाला अनचित्रमन उनका पालम पोषण करते हैं.
बचपन से ही सुखदेव अंग्रेजों का अत्याचार देखते आ रहे थे. इस वजह से युवा अवस्था में आते ही सुखदेव क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य बन गए. वो शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद के ख़ास साथी थे.
देशभक्त क्रांतिकारी सुखदेव मातृभूमि से तहे दिल से प्यार करते थे. क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य बनते के साथ भगत सिंह, राजगुरु के साथ मिलकर सुखदेव ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था. लाला लाजपत राय की मौत के खिलाफ हुए प्रदर्शन और ब्रिटिश अफसर सॉन्डर्स की हत्या में हिस्सा दें. जिसके चलते सुखदेव को 23 मार्च 1931 में 23 साल की उम्र में भगत सिंह, राजगुरु समेत अंग्रेजों द्वारा मौत की सजा फांसी दे दी गई.
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सुखदेव बचपन से ही भारत में अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों सितम को देखते आ रहे थे. इसी के चलते उन्होंने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए क्रांतिकारी बनने का रास्ता अपनाया था.
सुखदेव ने शुरुवाती जीवन लायलपुर में बीता और यही इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की. आगे चलकर इन्होने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया. यहाँ इन्होने स्टूडेंट्स को भारत के गौरवशाली इतिहास के बारे में प्रेरित किया. नेशनल कॉलेज की स्थापना पंजाब क्षेत्र के काग्रेंस के नेताओं ने की थी, जिसमें लाला लाजपत राय प्रमुख थे. इस कॉलेज में अधिकतर उन विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था जिन्होंने असहयोग आन्दोंलन के दौरान अपने स्कूलों को छोड़कर असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था.
सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के खास सदस्य थे. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन जो पंजाब की तरफ भूख हड़ताल आयोजित करता था. जिसका निर्णय सुखदेव को लेना पड़ता था.
सुखदेव भूख हड़ताल और खास तौर से लाहौर कांस्पीरेसी केस के लिए जाने जाते हैं. सुखदेव को ज्यादा याद सौंडर्स के हत्या काण्ड में लीप होने में जाना जाता है. जिसके चलते लाला लाजपत राय की मौत हो जाती है.
नई दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में हुई बमबारी के बाद सुखदेव और उनके साथियों को अरेस्ट कर लिया जाता है. उन्हें इस घटना चलते दोषी पाते हुए मौत की सजा दे दी जाती है
लाहौर के केंद्रीय कारागार में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे फाँसी पर लटका दिया गया था. कई इतिहासकार मानते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था.
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