जिन्हें माना जाता है वात्सल्य रस का सम्राट ..जानिए विस्तार से सूरदास जी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के बारे में।
15 वीं सदी को अपनी रचनाओं से प्रभावित करने वाले कवि, महान् संगीतकार और संत थे सूरदास जी। सूरदास सिर्फ एक सदी को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपने काव्य से रोशन किया है। सूरदास जी की रचना की प्रशंसा करते हुए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि काव्य गुणों की विशाल वनस्थली में सूरदास जी का एक अपना सहज सौन्दर्य है। सूरदास जी उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिनका सौन्दर्य पद पद पर माली के कृतित्व की याद दिलाता हो। बल्कि उस अकृत्रिम वन भूमि की तरह है, जिसका रचयिता स्वंय रचना में घुलमिल गया हो।
यह भी पढ़ें – कालिदास: जीवन और रचनायें
Table of Contents
सूरदास जी संबंधित तथ्य
जन्म तिथि: 1478
मृत्यु: 1583
जन्म-स्थान : रुनकता ग्राम
मृत्यु का स्थान: ब्रज
पिता: पंडित रामदास
माता: जमुनादास
गुरु :आचार्य बल्लभाचार्य
सूरदास कौन थे- वात्सल्य रस के सम्राट महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ईसवी में रुनकता नामक गांव में हुआ था। हालांकि कुछ लोग सीही को सूरदास की जन्मस्थली मानते है। इनके पिता का नाम पण्डित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे और इनकी माता का नाम जमुनादास था। सूरदास जी को पुराणों और उपनिषदों का विशेष ज्ञान था।
सूरदास जी अंधे थे- सूरदास जी जन्म से अंधे थे या नहीं। इस बारे में कोई प्रमाणित सबूत नहीं है। लेकिन माना जाता है कि श्री कृष्ण बाल मनोवृत्तियों और मानव स्वभाव का जैसा वर्णन सूरदास जी ने किया था। ऐसा कोई जन्म से अंधा व्यक्ति कभी कर ही नहीं सकता। इसलिए माना जाता है कि वह अपने जन्म के बाद अंधे हुए होंगे। तो वहीं हिंदी साहित्य के ज्ञाता श्यामसुन्दर दास ने भी लिखा है कि सूरदास जी वास्तव में अंधे नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार और रूप-रंग आदि का जो वर्णन महाकवि सूरदास ने किया वह कोई जन्मान्ध व्यक्ति नहीं कर सकता है।
सूरदास का विवाह- कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनके विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी इनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।
यह भी पढ़ें – श्री कृष्ण की बाल लीलाएं और सूरदास के कृष्ण
अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात् सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे। तभी सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य़ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे। साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्रीनाथ के मंदिर में भजन कीर्तन किया करते थे। महान् कवि सूरदास आचार्य़ वल्लभाचार्य़ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। और यह अष्टछाप कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे।
श्रीकृष्ण गीतावली- कहा जाता है कि कवि सूरदास से प्रभावित होकर ही तुलसीदास जी ने महान् ग्रंथ श्री कृष्णगीतावली की रचना की थी। और इन दोनों के बीच तबसे ही प्रेम और मित्रता का भाव बढ़ने लगा था।
सूरदास का राजघरानों से संबंध- महाकवि सूरदास के भक्तिमय गीतों की गूंज चारों तरफ फैल रही थी। जिसे सुनकर स्वंय महान् शासक अकबर भी सूरदास की रचनाओं पर मुग्ध हो गए थे। जिसने उनके काव्य से प्रभावित होकर अपने यहां रख लिया था। आपको बता दें कि सूरदास के काव्य की ख्याति बढ़ने के बाद हर कोई सूरदास को पहचानने लगा। ऐसे में अपने जीवन के अंतिम दिनों को सूरदास ने ब्रज में व्यतीत किया, जहां रचनाओं के बदले उन्हें जो भी प्राप्त होता। उसी से सूरदास अपना जीवन बसर किया करते थे।
यह भी पढ़ें – महाभारत से सीख : महाभारत से सीखिए नैतिकता की परिभाषा
माना जाता है कि सूरदास जी ने हिन्दी काव्य में लगभग सवा लाख पदों की रचना की। साथ ही सूरदास जी द्वारा लिखे पांच ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं, सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो। तो वहीं दूसरी ओर सूरदास जी अपनी कृति सूर सागर के लिए काफी प्रसिद्ध हैं, जिनमें उनके द्वारा लिखे गए 100000 गीतों में से 8000 ही मौजूद हैं। उनका मानना था कि कृष्ण भक्ति से ही मनुष्य जीवन को सद्गति प्राप्त हो सकती है।
इस प्रकार सूरदास जी ने भगवान कृष्ण की भक्ति कर बेहद ही खूबसूरती से उनकी लीलाओं का व्याख्यान किया है। जिसके लिए उन्होंने अपने काव्य में श्रृंगार, शांत और वात्सल्य तीनों ही रसों को अपनाया है। इसके अलावा काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में सूरदास जी द्वारा रचित 25 ग्रंथों की उपस्थिति मिलती है। साथ ही सूरदास जी के काव्य में भावपद और कलापक्ष दोनों ही समान अवस्था में मिलते है। इसलिए इन्हें सगुण कृष्ण भक्ति काव्य धारा का प्रतिनिधि कवि कहा जाता है।
सूरदास जी ने अपनी काव्यगत रचनाओं में मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। साथ ही उन्होंने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तो वहीं सभी पद गेय हैं और उनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इसके अलावा सूरदास जी ने सरल और प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है।
सूरदास जी को हिंदी काव्य का श्रेष्ठता माना जाता है। उनकी काव्य रचनाओं की प्रशंसा करते हुए डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। और उपमाओं की बाढ़ आ जाती है और रूपकों की बारिश होने लगती है। साथ ही सूरदास ने भगवान कृष्ण के बाल्य रूप का अत्यंत सरस और सजीव चित्रण किया है। सूरदास जी ने भक्ति को श्रृगांर रस से जोड़कर काव्य को एक अद्भुत दिशा की ओर मोड़ दिया था। साथ ही सूरदास जी के काव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य़ का भी जीवांत उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं सूरदास जी ने काव्य और कृष्ण भक्ति का जो मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया, वह अन्य किसी कवि की रचनाओं में नहीं मिलता।
यह भी पढ़ें – क्या पुराणों को मिथ्या माना जाना चाहिए?
चरण कमल बंदो हरि राई।
जाकी कृपा पंगु लांघें अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।
भावार्थ- सूरदास के अनुसार, श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ लांघ सकता है। अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है। बहरे को सब कुछ सुनाई देने लगता है और गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है। साथ ही एक गरीब व्यक्ति अमीर बन जाता है। ऐसे में श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कोई क्यों नहीं करेगा।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।
भावार्थ- उपयुक्त दोहे से तात्पर्य़ है कि श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें यह कहकर चिढ़ाते हैं, कि आपने मुझे पैसे देकर खरीदा है। और अब बलराम के साथ खेलने नहीं जाऊंगा। ऐसे में श्री कृष्ण बार-बार माता यशोदा से पूछते है कि बताओ माता मेरे असली माता पिता कौन है। माता यशोदा गोरी हैं परंतु मैं काला कैसे हूं। श्रीकृष्ण के इन सवालों को सुनकर ग्वाले सुनकर मुस्कुराते हैं।
अबिगत गति कछु कहत न आवै।
ज्यो गूंगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै।
भावार्थ- जिस प्रकार से एक गूंगा व्यक्ति मीठे फल का स्वाद चख तो सकता है लेकिन उसके स्वाद के बारे में किसी से जिक्र तक नहीं कर सकता। ठीक उसी प्रकार से निराकार ब्रह्मा की गति के विषय में कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
भावार्थ- यशोदा जी भगवान श्री कृष्ण को पालने में झूला रही है। कभी उन्हें झूला झूलाते है और कभी उन्हें प्यार से पुचकारती है। कभी गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू आकर इसे क्यों नहीं सुलाती है।
मैया मोहि मैं नही माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायौ।।
भावार्थ- सूरदास के अनुसार, श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा से कहते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया है। आप सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हैं। और जिसके बाद में शाम को ही लौटता हूं। ऐसे में मैं कैसे माखन चोर हो सकता हूं।
मां भारती का यह पुत्र 1583 ईसवी में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में सदैव के लिए दुनिया से विदा हो गया। सूरदास जी ने काव्य की धारा को एक अलग ही गति प्रदान की। जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगाार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है। और हिंदी काव्य के क्षेत्र में उनकी रचनाएं एक अलग ही स्थान रखती है। साथ ही ब्रज भाषा को साहित्यिक दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास को ही जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार संत सूरदास का जन्म 1478 सी.ई. में सीही, फरीदाबाद, हरियाणा में हुआ था, जबकि कुछ का दावा है कि उनका जन्म आगरा (यूपी) के पास रुनकता में हुआ था। सूरदास का जन्म सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके पिता का नाम रामदास था।
ब्रज
ब्रज, जिसे व्रज, व्रज, बृज या बृजभूमि के नाम से भी जाना जाता है, यमुना नदी के दोनों किनारों पर भारत का एक क्षेत्र है जिसका केंद्र उत्तर प्रदेश में मथुरा-वृंदावन में है।
श्री वल्लभाचार्य
श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास को हिंदू दर्शन और ध्यान का पाठ पढ़ाया और उन्हें आध्यात्मिकता के मार्ग पर रखा।
सूरदास 15वीं सदी के अंत के अंधे संत, कवि और संगीतकार थे, जिन्हें भगवान कृष्ण को समर्पित उनके भक्ति गीतों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि सूरदास ने अपनी महान कृति सूर सागर में एक लाख गीत लिखे और संगीतबद्ध किए, जिनमें से लगभग 8,000 ही वर्तमान में हैं।
सूरदास 16वीं शताब्दी के एक अंधे हिंदू भक्ति कवि और गायक थे, जो भगवान कृष्ण की प्रशंसा में लिखे गए अपने कार्यों के लिए जाने जाते थे।
#सम्बंधित:- आर्टिकल्स
एक भाई और बहन के बीच का रिश्ता बिल्कुल अनोखा होता है और इसे शब्दों…
Essay on good manners: Good manners are a topic we encounter in our everyday lives.…
Corruption has plagued societies throughout history, undermining social progress, economic development, and the principles of…
Welcome, ladies and gentlemen, to this crucial discussion on one of the most critical issues…
Waste management plays a crucial role in maintaining a sustainable environment and promoting the well-being…
Best Car Insurance in India: Car insurance is an essential requirement for vehicle owners in…