Table of Contents
‘स्वतंत्रता’ वास्तव में यह शब्द मात्र नहीं है यह भाव है विभिन्न जीव स्वतंत्रता चाहते हैं। स्वतंत्रता और स्वाधीनता दो शब्द हैं। देश और एक देश के नागरिकों के लिए यह दोनों होना अति आवश्यक है। इसी स्वतंत्रता की व्याख्या के लिए रूसो जैसे दार्शनिकों ने अपना सारा जीवन दे दिया। हर देश को अनेक चीजों से स्वतंत्रता चाहिए। पर पहले देश को स्वयं स्वाधीन होना आवश्यक है। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली 15 अगस्त 1947 को। आज हमारे लिए इस स्वतंत्रता के संग्राम को किताबों में चंद पन्नों में पढ़ना आसान है पर वास्तव में यह इतना सरल नहीं था। इस स्वतंत्रता तक पहुँचने में बहुत से पड़ावों को पार करना पड़ा। आज हम ऐसे ही दस महत्वपूर्ण दस घटनाओं को जानेंगे जिन्होंने हमारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की-
यह सर्वविदित बात है कि हमारी आजादी की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गई। हालाँकि इसे बेरहमी से कुचल दिया गया और इसीलिए इसे कुछ इतिहासकार विद्रोह का नाम देते हैं। यह विद्रोह मंगल पाण्डेय द्वारा बैरकपुर छावनी में शुरू किया गया। साथ ही बड़े पैमाने पर यह विद्रोह आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ा गया। लड़ाई में विभिन्न स्थानों के शासक शामिल हुए। दिल्ली से जनरल बख्त खान, कानपुर से नाना साहब, लखनऊ से बेग़म हजरत महल, बरेली से खान बहादुर, बिहार से कुवंर सिंह, फैजाबाद से मौलवी अहमदुल्ला, झांसी से रानी लक्ष्मीबाई, इलाहाबाद से लियाकत अली, ग्वालियर से तात्या टोपे तथा गोरखपुर से गजाधर सिंह ने अंग्रेजों से मोर्चा संभाला। इस क्रांति को भले दबा दिया गया पर इसके बड़े दूरगामी परिणाम निकले। इससे भारतीयों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और आगे की लड़ाई के लिए अब जमीन तैयार हो गई थी क्योंकि अब हमें हमारी गलतियों और कमजोरियों का पता चल चुका था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने भी हमारी आजादी के संग्राम को आगे बढ़ने में सहायक बनी। ऐसा क्यो? इसके लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हम ब्रिटेन के उपनिवेश थे। उपनिवेश अर्थात हम सैन्य शासन के अंतर्गत नहीं बल्कि राजनीतिक शासन से गुलाम थे। इसी लिए हमें भी अब ऐसे संगठन की आवश्यकता थी। 28 दिसम्बर 1885 को गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके संस्थापक ए. ओ. ह्यूम(एलन आक्टेवियन ह्यूम) थे तथा अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी बने। इसका राजनीतिक परिणाम यह हुआ कि अब भारतीय संगठित होकर अपनी माँग रखने लगे। इस संगठन से हमारी आजादी के लिए लड़ने वाले संघर्षशील नेता जुड़े। इस प्रकार हमने आज़ादी की ओर एक और कदम बढ़ाया।
अगर हम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से अब तक की घटनाओं का काल देखें तो लगभग आधे से अधिक शताब्दी के बाद गाँधीजी का प्रवेश भारत के स्वतंत्रता संग्राम में होता है तो फिर वो कौनसी बाते थीं जिसकी वजह से इनका नाम प्रमुखता से आता है। इसकी ढेर सारी वजह थीं। सबसे पहले हम उपनिवेश थे और हमें स्वाधीन होना था। इसके बीच में आता है पड़ाव ‘डोमिनियन स्टेटस’ का। तो गाँधीजी ने जब 1920 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कमान संभाली तो उन्होंने यह रास्ता अपने तरीके से लोगों को समझाया और धीरे-धीरे हमें प्रॉविंसियल ऑटोनॉमी में सहभागिता मिलने लगी और आख़िर में हम स्वतंत्र हुए। दूसरी महत्वपूर्ण बात कि गाँधीजी अतिवादी नहीं थे। उन्होंने भारत के समन्वयवाद की आत्मा थी जो तुलसीदास से लेकर बुद्ध तक में दिखी उसको गाँधीजी हमेशा साथ लेकर चले और हमें स्वदेशी के प्रति जागृत किया। इस तरह गाँधी के आगमन ने कई प्रकार से हमें मजबूत किया।
यह भयावह हादसा भले ही कोई आन्दोलन या सत्याग्रह नहीं था पर यह उन सभी आन्दोलनों, जो आगे हुए के लिए चिन्गारी बना। इसी ने अनेक क्रांतिकारियों और सत्याग्रहियों को जन्म दिया। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल ई.एच. डायर के आदेश पर बेरहमी ने से निहत्थी भीड़ पर गोलियां चलाई गईं। इस घटना में हजारों लोग मारे गए। आज भी वहाँ की दीवारों पर गोलियों के निशान मौजूद हैं। इस घटना ने ऊधमसिंह और भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों को जन्म दिया। इस तरह इस घटना के परिणाम दूरगामी हुए।
असहयोग आंदोलन को भारतीय स्वंतत्रता संग्राम का बहुत ही प्रमुख पड़ाव माना जाना चाहिए। यह आंदोलन जलियांवाला बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट के विरोध में गाँधीजी के नेतृत्व में 1920 में शुरू किया गया। इस आंदोलन ने पूरे भारतवर्ष में स्वदेशी के प्रति जागरूकता के साथ-साथ अंग्रेजों की संस्थाओं में कार्य करने का बहिष्कार किया। लोग अपनी नौकरियों को छोड़ दिए थे, बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने अंग्रेजी हुकूमत के विद्यालयों में जाना बन्द कर दिया था। लोगो ने अब हाथ से काते गए सूत के बुने हुए वस्त्रों को पहनना शुरू किया। लोग भारतीय मूल्यों के प्रति जागरूक हुए।इसी आंदोलन के वक्त प्रिंस ऑफ वेल्स 1921 में जब भारत आए तो उनका स्वागत काले झण्डे दिखाकर किया गया। दुर्भाग्य से चौरी चौरा हत्याकांड के बाद यह आंदोलन वापस लेना पड़ा क्योंकि गाँधीजी की माँग थी कि यह आंदोलन अहिंसक रहे। इस वजह से उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी पर उनका उद्देश्य आजादी के साथ नैतिकता के प्रति भी था इसलिए वह अपने सिद्धांतों पर टिके रहे।
1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा ब्रिटिश एसेम्बली के चेम्बर में दो बम धमाके किए गए। हालाँकि बम ऐसे नहीं बनाए गए थे जिससे कि किसी की जान जाए। उनका मकसद था अपनी आवाज को सुनाना इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत पड़ती है।’ यह छोटी घटना इसलिए महत्वपूर्ण बनी क्योंकि इसके बाद जब भगत सिंह के कोर्ट में ट्रायल हुए और उन्होंने जो वैचारिक भाषण वहाँ दिए वह इतिहास में दर्ज हो गए। इसने आजादी के लिए लड़ने वाले युवकों की नई पीढ़ी तैयार की।
12 मार्च 1930 को नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में महात्मा गाँधी ने साबरमती आश्रम से लेकर दांडी तक पैदल यात्रा की। वह अपने आश्रम से 79 स्वयंसेवकों के साथ निकले थे। जैसे-जैसे उनका काफिला आगे बढ़ता गया लोग जुड़ते गए और हजारों की संख्या में लोग जुड़े। सबसे खास बात थी कि इस यात्रा के लिए कांग्रेस ने भी अपना हाथ पीछे खींच लिया था। इस यात्रा में 384 किलोमीटर की यात्रा गाँधी और उनके अनुयायियों ने पैदल चलर 24 दिनों में पूरा किया और आख़िर में समुद्र तट पर पहुँचकर नमक बनाया। नमक हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसीलिए नमक यहाँ पर हमारे जीवन के मूल अधिकार का प्रतीक बना। इस आंदोलन को सविनय अवज्ञा आंदोलन भी कहा जाता है। इस आंदोलन की महत्ता यह थी कि करों के लिए अंग्रेजी सरकार को भारतीय जनता की स्वीकार्यता आवश्यक है।
भारत सरकार अधिनियम,1935 भारतीय इतिहास में इस वजह से महत्वपूर्ण है कि हमारे आज के संविधान का अधिकांश भाग यहाँ से लिया गया है। इस अधिनियम द्वारा भारत में अंग्रेज भारतीयों को विधायिका में शामिल होने का मौका दे रहे थे साथ ही उन्होंने प्रशासन के लिए भी कानून बनाएं। हम 1947 में जब आजाद हुए, यहाँ से 1950 यानी संविधान लागू होने तक इसी अधिनियम के सहारे भारत में नियंत्रण और कानून व्यवस्था बनाए रखा गया था।
यह घटना भी भारत के स्वतंत्रता के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुई। इंग्लैंड के इस युद्ध में भाग लेने की वजह से ब्रिटिश साम्राज्य काफी कमजोर हुआ। इसी वक्त सुभाषचंद्र बोस की आई.एन.ए सेना ने भी भारत के बाहर ही ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर करने की भरपूर कोशिश की। इस युद्ध में ब्रिटिश सरकार की ओर से भारतीय सैनिकों ने भी जापान और हिटलर के खिलाफ लड़ाई की। इस आशा से कि इसके बाद हमारी सत्ता हमारे हाथ में होगी पर जीत के बाद ब्रिटिश सरकार के सुर बदल गए और तब शुरू हुआ अगला महत्वपूर्ण आंदोलन – ‘भारत छोड़ो आंदोलन’।
सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक यह था। इस आंदोलन की शुरुआत ऐसी थी कि उसी समय कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। ऐसे वक्त में जब देश की जनता के पास कोई बड़ा नेतृत्वकर्ता नेता नहीं था। देश की जनता ने इस आंदोलन का दारोमदार उठाया और व्यापक स्तर पर अंग्रेजी हुकुमत का विरोध किया गया। इस आंदोलन के लिए गाँधीजी ने नारा दिया था ‘करो या मरो’। इस नारे को सूत्र वाक्य बनाकर देश की जनता ने अंग्रेजी शासन का विरोध किया। इस आंदोलन में ही जयप्रकाश नारायण जैसे प्रमुख नेता उभरकर सामने आए। इस आंदोलन के व्यापक फलक की वजह से आख़िर में सरकार को घुटने टेकने ही पड़े और हमारी आजादी की कार्यवाहियाँ शुरू हुई।
इस तरह इन प्रमुख घटनाओं और आंदोलनों की बदौलत आज हम स्वयं को एक आजाद और लोकतांत्रिक राष्ट्र बन सके। इसलिए हमें भारत की आजादी और इस देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए ताकि यह संघर्ष कभी व्यर्थ न जाए। हम भारत के सामने खड़ी हर चुनौती का सामना मिलजुल कर करें और भारत को और भी बेहतर राष्ट्र बनाएं।
#सम्बंधित:- आर्टिकल्स
एक भाई और बहन के बीच का रिश्ता बिल्कुल अनोखा होता है और इसे शब्दों…
Essay on good manners: Good manners are a topic we encounter in our everyday lives.…
Corruption has plagued societies throughout history, undermining social progress, economic development, and the principles of…
Welcome, ladies and gentlemen, to this crucial discussion on one of the most critical issues…
Waste management plays a crucial role in maintaining a sustainable environment and promoting the well-being…
Best Car Insurance in India: Car insurance is an essential requirement for vehicle owners in…