Advertisment
Religion

अहोई अष्टमी 2022 – अहोई अष्टमी व्रत कथा, कैलेंडर,महत्व,आरती और शुभकामनाएं

Advertisment

अहोई अष्टमी 2022 – परंपरागत रूप से, अहोई अष्टमी एक त्योहार है जिसमें माताएं अपने बच्चों के खुशहाल जीवन के लिए उपवास रखती हैं। अहोई अष्टमी व्रत 2022 की तिथि 29 अक्टूबर  है। अहोई अष्टमी 2022 में दिवाली पूजा से 8 दिन पहले और करवाचौथ पूजा के 4 दिन बाद आती है। अहोई अष्टमी को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है और यह त्योहार उत्तर भारत में अधिक प्रसिद्ध है। अहोई अष्टमी 2022, अहोई अष्टमी 2022 कैलेंडर, अहोई अष्टमी व्रत 2022, अहोई अष्टमी व्रत कथा, और भी बहुत कुछ जानने के लिए आगे पढ़ें।

अहोई अष्टमी 2022

प्राचीन काल में, माताएँ अहोई अष्टमी पर अपने पुत्र के कल्याण के लिए सुबह से शाम तक उपवास रखती थीं। लेकिन आधुनिक समय में, माता का व्रत अहोई अष्टमी के दिन सभी संतानों और पुत्रियों सहित सभी के लिए उपवास रखते हैं। माँ सुबह से शाम तक उपवास रखती हैं और आकाश में तारे देखकर अपना उपवास तोड़ती हैं। अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा बहुत देर से उदय होता है, लेकिन कुछ महिलाएं आकाश में चंद्रमा को देखने के बाद अपना उपवास तोड़ती हैं।

  • अहोई अष्टमी 2022 तिथि 17 अक्टूबर  को है। अहोई अष्टमी 2022 में दिवाली पूजा से 8 दिन पहले और करवाचौथ पूजा के 4 दिन बाद आती है। अहोई अष्टमी व्रत को ‘अहोई कथा‘ के नाम से भी जाना जाता है और यह त्योहार देश के उत्तरी भाग में अधिक प्रसिद्ध है।

यह भी पढ़ें – दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं, संदेश और कोट्स

अहोई अष्टमी 2022 कैलेंडर

राधा कुंड स्नान
  • अहोई अष्टमी 2022 पूजा मुहूर्तसोमवार को सुबह 9 बजकर 29 मिनट पर अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी और संध्याकाल में व्रत पारायण के समय भी अष्टमी तिथि उपस्थिति रहेगी

अहोई अष्टमी 2022 -चंद्रमा का समय: रात के  11:21 बजे।

अष्टमी तिथिसोमवार, 17 अक्टूबर

यह भी पढ़ें – शरद पूर्णिमा 2020 तिथि, समय और महत्व

अहोई अष्टमी व्रत कथा

कथा– एक नगर में एक साहूकार रहा करता था, उसके सात लड़के थे। एक दिन उसकी स्त्री खदान में मिट्टी खोदने के लिए गई और ज्योंही उसने जाकर कुदाली मारी त्योंही सेई के बच्चे कुदाल की चोट से सदा के लिए सो गए। इसके बाद उसने कुदाल को स्याहू के खून से सना देखा तो उसे सेई के बच्चों के मर जाने का बड़ा दुःख हुआ परन्तु वह विवश थी और यह काम उससे अनजाने में हो गया था। इसके बाद वह बिना मिट्टी लिए ही खेद करती हुई अपने घर आ गई और उधर जब सेही अपने घर में आयी तो अपने बच्चों को मरा देखकर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चों को मारा है, उसे भी इसी प्रकार का कष्ट होना चाहिए।

तत्पश्चात सेही के श्राप से सेठानी के सातों लड़के एक ही साल के अन्दर समाप्त हो गए अर्थात् मर गए। इस प्रकार अपने बच्चों को असमय काल के मुंह में समाये जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुःखी हुए कि उन्होंने किसी तीर्थ पर जाकर अपने प्राणों को तज देना उचित समझा । इसके बाद वे घर-बार छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर चल दिए और खाने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति और साहस रहा तब तक वह चलते ही रहे और जब वे पूर्णतः अशक्त हो गए तो अन्त में मूर्छित होकर गिर पड़े। उनकी ऐसी दशा देखकर भगवान करुणा सागर ने उनको मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अन्त किया और इस अवसर पर आकाशवाणी हुई- हे सेठ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय ध्यान न देकर सेह के बच्चों को मार दिया, इसके कारण तुम्हें अपने बच्चों का दुःख देखना पड़ा। यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊ माता की सेवा करोगे और अहोई माता देवी का विधि-विधान से व्रत आरम्भ कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं दोगे, तो तुम्हें भगवान की कृपा से पुनः संतान का सुख प्राप्त होगा। इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर सेठ-सेठानी कुछ आशावान हो गए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए अपने घर को चले आये। इसके बाद श्रद्धा-भक्ति से न केवल अहोई माता का व्रत अपित गऊ माता की सेवा करना भी आरम्भ कर दिया तथा जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का सर्वथा परित्याग कर दिया। ऐसा करने के पश्चात भगवान की कृपा से सेठ-सेठानी पुनः सात पुत्र वाले होकर अगणित पौत्रों सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगने के पश्चात स्वर्ग को चले गए।

शिक्षा– बहुत सोच-विचार के बाद भली प्रकार निरीक्षण करने के पश्चात ही कार्य आरम्भ करो और अनजाने में भी किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो। गऊ माता की सेवा के साथ-साथ ही अहोई माता देवी भगवती की पूजा करो। ऐसा करने पर अवश्य संतान सुख के साथ-साथ सम्पत्ति सुख प्राप्त होगा।

अहोई माता की दूसरी कथा

एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएं तथा एक बेटी थी। दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी ननद के साथ जंगल में खदान में मिट्टी लेने गई। जहाँ से वे मिट्टी खोद रही थीं वहीं स्याहू (सेहे) की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेही का बच्चा मर गया। स्याहू माता बोली कि अब मैं तेरी कोख बाँधूंगी। तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममे से मेरे बदले कोई अपनी कोख बंधा लो। सब भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नहीं बंधवाऊंगी तो सासूजी नाराज होंगी ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। इसके पश्चात जब उसके जो लड़का होता तो सात दिन बाद मर जाता। एक दिन पंडित को बुलाकर पूछा कि क्या बात है मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पूजा करो सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा। इसके बाद से वह बहू प्रात:काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है? सो आज देखूँगी। गौ माता खूब तड़के उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली क्या माँगती है? तब साहूकार की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बांध रखी है सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा अच्छा, अब तो गौ माता समुद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी सो वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) का बच्चा था। सांप उसको डसने लगा तब साहूकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू के चोंच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने को 14 आया था, मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली कि माँग, तू क्या माँगती है? वह बोली सात समुद्र पार स्याऊ माता रहती हैं हमें तू उसके पास पहुँचा दे। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुँचा दिया।

स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली कि आ बहन बहुत दिनों में आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड़ गई हैं। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सलाई से उनकी जुएँ निकाल दीं। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तूने मेरे सिर में बहुत सलाई डाली हैं इसलिये तेरे सात बेटे और सात बहू होंगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं सात बेटे कहाँ से होंगे? स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी के कुण्ड पर कंकरी होऊँ। तब साहूकार की बहू बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है। यह सुन स्याऊ माता बोली कि तूने मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परन्तु अब खोलनी पड़ेगी। जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी तू जाकर उजमन करना। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करना। वह लौटकर घर आई तो वहाँ देखा सात बेटे सात बहुएँ बैठी हैं वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाईं, सात उजमन किए तथा सात कढ़ाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस में कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कहीं छोटी बच्चों को याद करके रोने लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं? बच्चों ने आकर कहा कि चाची तो कुछ माँड रही है, खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियाँ दौड़ी-दौड़ी उसके घर आईं और जाकर कहने लगी कि तूने कोख कैसे छुड़ाए ? वह बोली तुमने तो कोख बंधाई 16 नहीं सो मैंने कोख बंधा ली थी। अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो। कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार की कोख खोलियो।

यह भी पढ़ें – दुर्गा विसर्जन अनुष्ठान, तिथि , समय,महत्व और उत्सव

श्री अहोई माता की आरती

जय होई माता जय होई माता।

तुमको निशदिन सेवत हर विष्णु विधाता ।।जय०

ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।॥जय०

माता रूप निरन्जन सुख-सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल आता ।।

जय० तू ही है पाताल बसन्ती तू ही है शुभदाता।

प्रभाव कर्म प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।जय०

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।

कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।।जय०

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव तुम बिन नस जाता।॥ जय०

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता।

रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता॥जय०

श्री होई माँ की आरती जो कोई गाता।

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।॥ जय०

अहोई अष्टमी – महत्व

अहोई अष्टमी मूलत: माताओं का त्योहार है जो इस दिन अपने पुत्रों के कल्याण के लिए अहोई माता व्रत करती हैं। परंपरागत रूप से यह केवल बेटों के लिए किया जाता था, लेकिन अब माताएं अपने सभी बच्चों के कल्याण के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। माताएं अहोई देवी की पूजा अत्यंत उत्साह के साथ करती हैं और अपने बच्चों के लिए लंबे, सुखी और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करती हैं। वे चंद्रमा या तारों को देखने और पूजा करने के बाद ही उपवास तोड़ती हैं।

यह दिन निःसंतान दंपतियों के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। जिन महिलाओं को गर्भधारण करना मुश्किल होता है या गर्भपात का सामना करना पड़ता है, उन्हें धार्मिक रूप से अहोई माता व्रत का पालन-पोषण करना चाहिए। यही कारण है, इस दिन को ‘कृष्णाष्टमी’ के रूप में भी जाना जाता है। मथुरा का पवित्र स्थान ‘राधा कुंड’ में पवित्र डुबकी लगाने के लिए जोड़ों और भक्तों द्वारा लगाया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत विधि

अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ व्रत के समान है; फर्क सिर्फ इतना है कि करवा चौथ पतियों के लिए किया जाता है जबकि अहोई माता व्रत बच्चों के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं या माताएं सूर्योदय से पहले उठती हैं। स्नान करने के बाद, महिलाएँ अपने बच्चों के लंबे और सुखी जीवन के लिए धार्मिक रूप से व्रत रखती हैं और उन्हें पूरा करती हैं। ‘संकल्प ’के अनुसार, माताओं को भोजन और पानी के बिना व्रत करना पड़ता है और इसे सितारों या चंद्रमा को देखने के बाद ही तोड़ा जा सकता है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी पूजा की तैयारी सूर्यास्त से पहले की जानी चाहिए।

  1. सबसे पहले अहोई माता की एक तस्वीर दीवार पर लगाई जाती है। अहोई माता की तस्वीर के साथ आठ कोनों या अष्ट कोश के साथ होती है ।
  2. पानी से भरा एक पवित्र ‘कलश’ एक लकड़ी के मंच पर मां अहोई की तस्वीर के बाईं ओर रखा जाता है। ‘कलश’ पर एक स्वास्तिक बनाया जाता है और कलश के चारों ओर एक पवित्र धागा (मोली) बांधा जाता है।
  3. तत्पश्चात, अहोई माता के साथ चावल और दूध चढ़ाया जाता है, जिसमें पुरी , हलवा और पूआ शामिल होता है। पूजा में मां अहोई को अनाज या कच्चा भोजन (सीडा) भी चढ़ाया जाता है।
  4. परिवार की सबसे बड़ी महिला सदस्य, फिर परिवार की सभी महिलाओं को अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनाती है। प्रत्येक महिला को कथा सुनते समय अपने हाथ में 7 दाने गेहूं रखने की आवश्यकता होती है।
  5. पूजा के अंत में अहोई अष्टमी आरती की जाती है।
  6. पूजा के पूरा होने के बाद, महिलाएं पवित्र कलश से अपनी पारिवारिक परंपरा के आधार पर अरघा को सितारों या चंद्रमा को अर्पित करती हैं। वे अपने अहोई माता व्रत को तारे के दर्शन के बाद या चंद्रोदय के बाद तोड़ते हैं।

अहोई अष्टमी की शुभकामनाएं

अहोई माता के दरबार मैं हम सब अज्ञान है,
माता की दया से हम सब में प्यार है
माता की दया हम सब पर बारिश की तरह बरसे
यही मेरा विश्वास है …
हैप्पी अहोई अष्टमी

आपको अहोई अष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं,
आशा है कि इस वर्ष अहोई माता,
आपके जीवन में खुशियाँ लाएं ।

हैप्पी अहोई अष्टमी

अहोई का ये प्यारा त्यौहार ,

आपके जीवन मे लाये खुशियाँ अपार।

क्या हम अहोई अष्टमी व्रत में पानी पी सकते हैं

अहोई अष्टमी व्रत में महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं और पूरे दिन पानी से भी परहेज करती हैं

Advertisment
Gaurav jagota

Recent Posts

  • Indian culture

रक्षाबंधन 2024- कब, मुहूर्त, भद्रा काल एवं शुभकामनाएं

एक भाई और बहन के बीच का रिश्ता बिल्कुल अनोखा होता है और इसे शब्दों…

4 months ago
  • Essay

Essay on good manners for Students and Teachers

Essay on good manners: Good manners are a topic we encounter in our everyday lives.…

2 years ago
  • Essay

Essay on Corruption for Teachers and Students

Corruption has plagued societies throughout history, undermining social progress, economic development, and the principles of…

2 years ago
  • Essay

Speech on global warming for teachers and Students

Welcome, ladies and gentlemen, to this crucial discussion on one of the most critical issues…

2 years ago
  • Essay

Essay on Waste Management for Teachers and Students

Waste management plays a crucial role in maintaining a sustainable environment and promoting the well-being…

2 years ago
  • Analysis

Best Car Insurance in India 2023: A Comprehensive Guide

Best Car Insurance in India: Car insurance is an essential requirement for vehicle owners in…

2 years ago
Advertisment