अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास : इतिहास में सर सय्यद अहमद खां का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। समाज-सुधारक एवं राजनीतिज्ञ सर सय्यद अहमद खां के प्रयत्नों से ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। 1857 के स्वंतत्रता अन्दोलन के पश्चात् उन्होंने ये अनुभव कर लिया था कि भारत में मुसलमानों को शिक्षा प्राप्त करना एवं सरकारी सेवाओं तथा सार्वजनिक जीवन में भाग लेना आवश्यक है। विश्वविद्यालय की स्थापना में राजा जय किशन ने सर सय्यद का सहयोग किया था। और आज पूरी दुनिया में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एलुमनाई मौजूद हैं।
इतिहास में एक घटना ऐसी हुई कि सन 1842 में जब सरकारी रोज़गार तथा न्यायालय की भाषा के रूप में फारसी के प्रयोग के बदलने के निर्णय पर उपमहाद्वीप के मुसलमानों में काफी आक्रोश था। सर सय्यद को आभास हो गया था कि यदि मुस्लिम समुदाय के लोग विशेष रूप से उत्तरी भारत में सामाजिक एवं राजनैतिक अस्तित्व बनाये रखना चाहते हैं तो उन्हें अंग्रेजी भाषा एवं आधुनिक विज्ञान में निपुणता प्राप्त करनी होगी। इसीलिए उन्होंने गाज़ीपुर (1863) एवं मुरादाबाद (1858) में स्कूलों को आरंभ कर मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए आधारशिला रखनी आरंभ कर दी थी। वहीं 1864 को अलीगढ़ में ‘साईंटिफ़िक सोसायटी’ की स्थापना का उद्देश्य मुस्लिमों में साईंटिफ़िक भावनाएं जगाने तथा पश्चिमी शिक्षा अपनाने के लिए समुदाय को तैयार करने में प्रस्तावना के रूप में पश्चिमी कार्यों को भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना था। कुछ समय बाद उनकी मेहनत रंग लाई।
माना यह भी जाता है कि जब 1877 में अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान ऑक्सफ़ोर्ड एवं कैंब्रिज विश्वविद्यालयों के भ्रमण के पश्चात् उन्होंने इनकी भांति अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य इस्लामिक मूल्यों से समझौता किये बिना ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली से सामंजस्य बैठाना था। सर सैयद के पुत्र, सैयद महमूद ने, जो कैम्ब्रिज के एक पूर्व छात्र थे, 1872 में इंग्लैंड से लौटने पर एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय के प्रस्ताव को “मुहम्मद एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज फंड समिति” के समक्ष प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया तथा बाद में संशोधित किया गया और सय्यद महमूद कॉलेज निर्माण में अपने पिता के साथ कार्य करते रहे। उन्हीं की जी तोड़ मेहनत आज देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बानी हुई है।
जहाँ यह भारत में सरकार या जनता द्वारा स्थापित पूर्ण रूप से प्रथम आवासीय शैक्षिक संस्थानों में से एक था। वहीं वर्षो तक इस संस्था ने भारतीय मुसलमानों को नया शिक्षित वर्ग प्रदान किया, जो ब्रिटिश राज की राजनैतिक प्रणाली में सक्रिय थे। 1901 में जब भारत के वायसराय लार्ड कर्ज़न ने विद्यालय का भ्रमण किया तब उन्होंने यहाँ किये जा रहे कार्यों की प्रशंसा की और इसको “संप्रभु महत्व” बताया। आरंभ में, विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था एवं बाद में 1885 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त की। शताब्दी के अंत तक, विद्यालय ने ‘द अलीगेरीयन’ नाम से अपनी पत्रिका प्रकाशित करनी आरंभ कर दी थी तथा विधि विद्यालय की स्थापना की। व्यावहारिक तौर पर ये एक नया अनुभव था।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि यह लगभग वही समय था जब इसको विश्वविद्यालय बनाने के लिए आन्दोलन आरंभ हुआ। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, विद्यालय का विस्तार किया गया एवं विद्यालय के पाठ्यक्रमों में और अधिक पाठ्यक्रम जोड़े गये। 1907 में, लड़कियों के लिए एक विद्यालय स्थापित किया गया। 1920 तक, विद्यालय ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके बाद इसके संस्थापक सर सय्यद अहमद खां का 27 मार्च 1898 को देहांत हो गया तथा उनको अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सर सय्यद हॉल की मस्ज़िद में दफ़नाया गया। उनकी पहचान ऐसी बनी कि आज भी लोग उनके काम और जज़्बे को सलाम करते हैं।
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