अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस हर साल 12 अगस्त को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 17 दिसम्बर, 1999 को युवा विश्व सम्मलेन के दौरान की पारित प्रस्तावों के अनुसार प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की और यह वर्ष 2000 में पहली बार मनाया गया। वर्ष 2020 के युवा दिवस की थीम Youth Engagement for Global Action (वैश्विक कार्यों के लिए युवाओं की वचनबद्धता) है। 2018 में द गार्जियन में छपे एक लेख के अनुसार भारत की जनसंख्या के आधे से ज्यादा लोग युवा हैं और वो दुनिया को बदलने का जज़्बा रखते हैं। पर क्या सचमुच भारत का युवा आज दुनिया को बदलने की चाह रखता है? आज भारत के युवाओं के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? क्या उन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत तैयार है? भारत में बैठे करोड़ों बेरोजगार युवाओं का भविष्य अंधेरे में तो नहीं जा रहा है? ये सभी प्रश्न हमारे समक्ष उभरकर आते हैं। जिनका जवाब देने के लिए हमें आज भारत में उपस्थित सामाजिक और राजनैतिक जानना पड़ेगा।
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अनेक रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में युवाओं में बेरोजगारी की दर निरंतर बढ़ रही है। इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन के अनुसार 2019 में यह दर 23.34 प्रतिशत थी। एसिया -पैसिफिक क्षेत्र में भारत युवाओं में बेरोजगारी के मामले में मध्य स्थिति में है। अर्थात न तो इसकी स्थिति बहुत अच्छी है और न ही बहुत ख़राब। परन्तु अगर हम भारत को वैश्विक नज़रिए से एक बड़े पर्दे पर उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में देखें तो ये आंकड़े काफी परेशान करने वाले साबित हो सकते हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत का 33% स्किल्ड युवा आज बेरोजगार है।
युवाओं को उभरने में रोजगार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है पर ये चुनौती इतनी ही नहीं है। भारत के जो युवा कहीं अच्छी शिक्षा भी प्राप्त कर लेते हैं तो वह अपना रास्ता विदेश की ओर ले जाते हैं। ऐसे में हमारे पास स्किल्ड लोगों की तथा बौद्धिक लोगों की भी कमी हो जाती है। आज विश्व की बड़ी कम्पनियों जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि में हम भारतीयों का नाम सुनते हैं पर भारत में यह सब क्षेत्र काफी पिछड़े हुए हैं। सुंदर पिचाई की शिक्षा यहीं भारत में हुई पर वो जाकर गूगल में नौकरी कर रहे हैं। भारत सरकार द्वारा शिक्षा पर दी जा रही सब्सिडी का यह बड़ा नुकसान था। यह तो मात्र एक उदाहरण था पर वास्तव में युवाओं के पलायन का आँकड़ा बहुत बड़ा है।
इन सभी आंकड़ों की ज़िम्मेदारी किसकी बनती है? क्या हम इसके लिए पूरी तरह से सरकार को दोषी ठहराएं या फिर युवाओं को। हम इस समस्या का एक मध्यम मार्ग लेते हैं और यह समझने कि कोशिश करते हैं कि आज भारत के युवाओं के समक्ष बड़ी चुनौती है वह है भारत के जनसंख्या की। हाँ यह समस्या वास्तव में गंभीर समस्या है। इस समस्या के कारण युवाओं को एक बड़ी प्रतियोगी समाज में भाग लेना होता है जहाँ वह औरों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ता है। इस भाग दौड़ में युवाओं का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। यह सब न हो पाने के कारण युवा अगर एक क्षेत्र में पीछे हुआ तो उसके लिए अन्य क्षेत्रों में आगे जाने के रास्ते लगभग बंद हो जाते हैं।भारत विश्व की उभरती अर्थव्यवस्था ज़रूर है पर आज भी भारत के 40-45% जनता के पास इंटरनेट जैसी सुविधा नहीं उपलब्ध है। इंटरनेट आज एक ज़रूरी संसाधन के रूप में हमारे पास होना अति आवश्यक है।
भारत चौथी औद्योगिक क्रांति का केंद्र बनने जा रहा है।
ऐसे समय युवाओं के पास एक सुनहरा अवसर है कि वह अपनी प्रतिभा का उपयोग करे। जिसके लिए उसके पास बेसिक संसाधन उपलब्ध होने चाहिए।जैसा कि हमने ऊपर चर्चा की कि एक युवा वर्ग अच्छी शिक्षा पाने के बाद अच्छी नौकरी न पाने की वजह से विदेश की ओर पलायन करता है। अतः हमारी सरकार को चाहिए कि उन्हें भारत में ही रोजगार देने के अवसर तैयार किए जाएं ताकि वह भारत को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। कोरोना के वक्त में ही ना जाने कितने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले युवा बेरोजगार बैठ गए हैं।
युवाओं से जुड़ा मुद्दा मात्र रोजगार ही नहीं है। हमें अधिक से अधिक शोधों को भी बढ़ावा देना चाहिए। भारतीय युवाओं का महत्वपूर्ण शोधों में ज़िक्र नहीं आता।
शोध न केवल हमें शैक्षणिक रूप से मजबूत करते हैं वरन् सामाजिक और आर्थिक रूप से भी मजबूत करते हैं।
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि किसी देश का विकास मात्र तकनीकी शिक्षा से ही नहीं होता बल्कि उसे सामाजिक रूप से भी बढ़ने की आवश्यकता होती है।
भारतीय युवा का एक बड़ा वर्ग आज भी जाति , धर्म के मुद्दे पर लड़ रहा है। इन युवाओं में स्त्रियों का एक बड़ा वर्ग भी है जो आज के युग में अपने अधिकारों से लड़ने के अलावा पुरुषवादी सामाजिक सोच से भी लड़ रही है। हमें यहाँ यह समझने की आवश्यकता है कि यह सभी बातें युवाओं के साथ-साथ देश के विकास में भी बाधक सिद्ध होती हैं। अगर आज का युवा विश्व में चल रही दौड़ में आगे बढ़ने की बजाय वह सड़क पर जा रही महिलाओं पर टिप्पणियाँ करता है या धर्म के नाम पर हथियार उठा लेता है तो निश्चय ही वह गर्त में जा रहा है।
समाज में चलने के लिए हमें दोनों पैरों का प्रयोग करना पड़ेगा, पुरुष भी स्त्री भी।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
राजनैतिक स्तर पर युवाओं की जो भागीदारी नेताओं के पीछे चाटुकारिता करने की है वह वास्तव में भारत को राजनैतिक रूप से कमजोर ही बनाता है। हमें यह समझना होगा –
युवाओं की राजनीति में भागीदारी का अर्थ चुनाव लड़ना ही नहीं है बल्कि उसे अपने राजनीतिक और संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूक होना भी है।
भारत की राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर उसके एक मूल विचार होने आवश्यक हैं अन्यथा वह अपने अधिकारों के विपरीत काम करने वाली सरकार को चुन सकता है। राजनीति में आज जितना शिक्षित युवाओं की भागीदारी देखने को मिलती है उससे कई गुना और जागरूकता अभी हमें पाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार हमारे देश के युवाओं के पास दोतरफा चुनौतियाँ हैं एक बाहरी दुनिया में विकसित देशों द्वारा तथा दूसरा देश के अंदर की समस्याओं द्वारा। विवेकानंद को याद करने मात्र से हम एक सजग युवा नहीं कहलाएंगे बल्कि हमें यह भी समझना पड़ेगा कि समाज को बढ़ाने के लिए हमें युवाओं को उनके मन में बने बंधन को खोलना पड़ेगा साथ ही हमें उन्हें अवसर भी प्रदान करना होगा। हमें सिर्फ तकनीकी शिक्षा के पीछे ही नहीं जाना चाहिए अन्यथा हम एक खोखले समाज का निर्माण करेंगे। भारत के युवाओं को भारत को सामाजिक और राजनैतिक रूप से भी विकास करने की आवश्यकता है। तभी वास्तव में भारत का युवा विकास करेगा।
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