योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया|
स जीवंश्च मृतश्चैव न क्वचित्सुखमेधते||
यो बन्धनवधक्लेशान्प्राणीनां न चिकीर्षति|
स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखमत्यन्तमश्नुते||
शास्त्रों में कहा गया है कि जीवों की हत्या करने वाला पापी होता है और जो व्यक्ति अपने सुख के लिए जीवों को मारता है, वह जन्म-जन्मान्तर कभी भी सुख नहीं पाता है और वहीं जीवों का हित चाहने वाला व्यक्ति अत्यन्त सुख भोगता है|
लेकिन वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो अभी हाल ही में, देश के केरल राज्य में एक गर्भवती हथिनी को पटाखा भरा अनानास खिलाने का मामला सामने आया है। मामला इतना गंभीर है कि लोगों में इस घटना को लेकर रोष उत्पन्न हो गया है और लोग हथिनी को इंसाफ दिलाने की मांग कर रहे है। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता मेनका गांधी ने इसे हत्या करार दिया है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई यह मामला सिर्फ एक हथिनी की मौत से जुड़ा है या कई तड़पती हुई चीखों की पुकार है?
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जानवरों के विकास की कहानी भी मानव जीवन के उद्गम से ही प्रारंभ हुई है। जैसे-जैसे मनुष्य ने प्रकृति पर विजय हासिल की, वैसे-वैसे ही उसने प्रकृति प्रदत्त चीजों को अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया। ऐसा नहीं था कि मनुष्य शुरू से ही जानवरों के प्रति हिंसक रहा है।
लेकिन कहते है ना कि अच्छाई के साथ-साथ बुराई भी पांव पसारती है। तो इसी क्रम में जहां एक ओर मनुष्य ने कृषि के लिए पशु पालन और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जानवरों की पूजा करना शुरू कर दी थी। तो वहीं दूसरी तरफ जब मनुष्य जाति और वर्ग में, राजा और रंक में विभाजित होने लगा तो उसने जीव हत्या भी शुरू कर दी और तब से यह पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलन में है।
कुछ समय तक तो अंधविश्वास और पांखड के चलते जीव बलि भी दी जाती रही लेकिन कहते है कि बुराई ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती ऐसे में जीव बलि सभ्य समाज के कुछ ही कोनों में की जाती है। देखा जाए तो यह सही नहीं है लेकिन यह भी सत्य है कि रीत बदलते समाज के साथ ही बदलती है।
जीव मति मारो बापुरा, सबका एकै प्राण।।
उपयुक्त साखी से कबीरदास जी का तात्पर्य़ था कि भगवान द्वारा बनाए गए सभी प्राणियों में जान होती है चाहे वह इंसान हो या जीव। सबको अपनी जान प्यारी होती है। सबको दुख होता है और सबको जीने का अधिकार है। जिसके चलते देश के संविधान में जानवरों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई कानून बनाए गए। लेकिन जिस देश के लोग हमेशा से चीजों को बांटते रहे है वहां जानवरों को भी उनकी उपयोगिता के अनुसार ही महत्व दिया जाता रहा है।
ऐसे में जानवर अगर शेर है तो वह जंगल का राजा कहलाएगा और अगर वह गधा है तो वह सामान ढोने के काम आएगा। काम तक तो ठीक था लेकिन किस धर्म में लिखा है कि जानवरों की हत्या करके ही मानव जीवन की तरक्की संभव है। अगर ऐसा है तो बहुरि लैत है कान।। जिससे तात्पर्य है कि हर जीव में बदला लेने की इच्छा जन्म-जन्मांतर तक रहती है।
समुत्पत्तिं च मांसस्य वधबन्धौ च देहिनाम्| प्रसमीक्ष्य निवर्तेत सर्वमांसस्य भक्षणात्|
ऋषि-मुनियों का कहना हैं कि मांस न खाने वाला व्यक्ति सदा ही सुख भोगता है।
लेकिन कहते है ना कि जब मनुष्य अपने जीवनकाल में हर चीज पर जीत हासिल कर लेता है तो वह अपने से कमजोर पर बल का प्रयोग करने लग जाता है। तो मांस के सेवन की कहानी का उद्गम मनुष्य के बल से ही हुआ है। जिसे स्वभाव और स्वाद के अनुसार चखने की परंपरा चल पड़ी है और शायद इसके पीछे मनुष्य ने विभिन्न प्रकार के मतों का भी सहारा ले लिया है जिसके चलते वह अपनी गलती को अपना हक मानने लगा है और जीव हत्या को मानवाधिकार मानने लगा है।
ऐसे में उन लोगों के लिए जीव हत्या बहुत आम हो जाती है जो कत्ल करने के बाद भगवान की पूजा करके पाप से छुटकारा पाने में आशा रखते है और जीव हत्या को धार्मिक मान्यताओं के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। सोचना यह है कि क्या किसी भी प्रकार से जीव हत्या उचित है?
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