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पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस से जूझ रही है, तो इसके चलते भारत में इस साल होने वाले कई आयोजनों को या तो टाल दिया गया है या फिर उनमें कई बड़े फेरबदल किये गए हैं। ऐसे में अगले साल मार्च महीने में हरिद्वार में होने वाले महाकुंभ को लेकर भी बातें होनी शुरू हो चुकी हैं। वहां के कुछ संतों का मानना है कि इस विश्वव्यापी आयोजन को एक साल के लिए टाल देना ही उचित होगा। वहीं, इस घातक वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड सरकार ने भी महाकुंभ से जुड़े कार्यों पर अभी रोक लगा दी है।
लेकिन यहाँ लोगों को इस बात को लेकर उलझन है कि आस्था का बहुत बड़ा केंद्र माने जाने वाले इस महाकुंभ का आयोजन कब होगा। हालांकि, इस पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सनातन परंपरा का हवाला दिया है और कहा है कि कुंभ मेला आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके पीछे उन्होंने कोरोना महामारी को एक बड़ा कारण बताया है।
यहाँ हम आपको हरिद्वार में रहने वाले संतों के हवाले से बताएंगे कि मेले को एक साल आगे बढ़ने की क्या वजह है उनके अनुसार कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण मेले का निर्माण कार्य स्थगित है। इस अवस्था में इस भव्य आयोजन को एक साल के लिए टाल दिया जाना उचित है। इस पर स्वामी विश्वात्मानंद पुरी ने भी कहा है कि विशेष परिस्थितियों में कुंभ को टाला जा सकता है, इसलिए इस घातक वायरस के कहर को देखते हुए हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले का आयोजन 2022 में किया जाना चाहिए। लेकिन यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि अखाड़ा परिषद का विचार इससे इतर क्यों है। आइये जानें…
यहाँ अखाड़ा परिषद के अध्यत्र महंत नरेंद्र गिरि ने पूरे मामले का संज्ञान करते हुए कहा है कि हरिद्वार कुंभ मेले को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा क्योंकि ये सनातन परंपरा का मामला है। साथ ही उन्होंने कहा कि हरिद्वार कुंभ के आयोजन में अभी करीब 7 महीने का समय बाकी है तब तक हालात में सुधार आ सकता है। लेकिन वक्त ही बता पायेगा कि तबतक हालात कितने सुधरते हैं…
माना जा रहा था कि इस बार करीब 5 करोड़ भक्त हरिद्वार कुंभ मेले के दर्शन के लिए आ सकते हैं। लेकिन हालात ऐसे बने कि कोरोना वायरस के प्रभाव के कारण अब कम भक्त आने की उम्मीद जताई जा रही है। दूसरी तरफ देखें तो वहीं, विदेशी पर्यटकों के आंकड़ों में भी इस बार कटौती आने की संभावना नज़र आ रही है। इस पर माना जा रहा है कि राज्य सरकार लोकल श्रद्धालुओं की संख्या को भी कम करने पर विचार कर करेगी। इसके साथ ही जहाँ श्रद्धालुओं ने हरिद्वार कुंभ की तैयारी शुरू की थी, वहीं सरकार भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से भी क्रमशः 365 करोड़ रुपये और 1200 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान था
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