भारत और चीन की लड़ाई : इस बार चीन को भारत का बॉर्डर पर सड़क बनाना रास नहीं आया। जिसके कारण पिछले एक महीने से लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं बॉर्डर पर मोर्चा संभाले हुए हैं। चीन का कहना है कि भारत बॉर्डर पर सड़क नहीं बना सकता औऱ भारत कह रहा है कि वह सड़क बॉर्डर से दूर अपने इलाके में बना रहा है। या शायद वह चीन को यह बताना चाह रहा है कि यह 1962 का नहीं बल्कि 20वीं सदी का भारत है। जिसे अब अपने व्यापारिक और औद्योगिक निवेशों को स्थापित करने के लिए किसी की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
हालांकि 6 जून को चूसूल-मोल्डो में दोनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों की बैठक सौहर्दपूर्ण और सकारात्मक माहौल में संपन्न हुई। जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने जारी एक बयान में कहा कि इस वर्ष भारत और चीन के राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ है। तो ऐसे में सीमावर्ती इलाकों में शांति सुनिश्चित करने के लिए सैन्य एवं राजनयिक संपर्कों के माध्यम से बातचीत जारी रखेंगे।
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चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस का कहर अभी थमा नहीं है। इसलिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत चीन के युद्ध को लेकर बदले बदले से बयान देते नजर आ रहे है। जहां पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बॉर्डर पर सेना को युद्ध की तैयारी को कहा था, तो वहीं बाद में चीन से भारत आए राजदूत ने बातचीत करने को कहा। साथ ही चीन के विदेश मंत्रालय से एक बयान आता है कि भारत और चीन जोकि दोनों ही कोरोना से लड़ने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, दोनों देशों को बॉर्डर की स्थिति को लेकर बातचीत के लिए आगे आना चाहिए।
साल 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी एस भगत के साथ मिलकर एक समिति बनाई। जिसमें दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में युद्ध में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को दोषी बताया गया जोकि उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने ही हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा दिया था।
जानकारी के लिए बता दें कि आजादी के बाद से ही भारत चीन के साथ दोस्ती निभाता आया है। वहीं देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तो चीन की अंतर्राष्ट्रीय देशों की सूची में स्थायी सदस्यता के लिए उस वक्त हर संभव प्रयास करने में लगे थे, लेकिन लौह पुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल चीन की मंशा से भली भांति परिचित थे। ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को आगाह भी किया था। लेकिन पंडित नेहरू से किसी की एक न सुनी। साथ ही सैनिकों की कमी, सही तालमेल औऱ योजना के अभाव, इजराइल के साथ शर्त रखकर, आधुनिक युद्ध उपकरणों की कमी भी भारत के युद्ध में हारने की मुख्य वजह बनी।
वहीं चीन के एक शीर्ष रणनीतिकार वांग जिसी ने साल 2012 में दावा किया था कि चीन के बड़े नेता माओत्से तुंग ने ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ आंदोलन की असफलता के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर नियंत्रण कायम करने के लिए वर्ष 1962 का युद्ध भारत के साथ छेड़ा था।
साल 1962 के युद्ध के दो साल बाद 1967 में भी भारत चीन के बीच बॉर्डर पर झड़प हुई। जिसमें कुल आठ चीनी औऱ चार भारतीय सैनिकों की जान चली गई थी। इसके बाद अभी हाल ही में डोकलाम विवाद के जरिए भी चीन ने मोदी सरकार को युद्ध की चेतावनी दी थी। जिसमें चीनी अखबार ने साफ-साफ लिखा था कि यदि भारतीय सैनिक डोकलाम से पीछे नही हटे तो युद्ध हो सकता है।
कोरोना काल ने जहां एक ओर हमें स्वदेशी चीजों का महत्व समझाया तो वहीं अब भारत आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने जा रहा है। ऐसे में यह उपयुक्त समय हो सकता है, चीन को मुंहतोड़ जवाब देने का। जिसके लिए जरूरी है जन जागरूकता की और सरकार द्वारा औद्योगिक निवेश करने की। जिसके बल पर ही हम चीनी सामानों का बहिष्कार कर पाएंगे और चीन की तानाशाही सरकार के लिए उनके ही देश में गृह युद्ध की स्थिति बना पाएंगे।
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