विश्व में अनेक नदी-घाटी सभ्यताएं आईं और गई। प्राचीन काल में भोजन और पानी आदि का साधन नदियों के किनारे आसानी से हो जाता था इसलिए इन्हें नदी-घाटी सभ्यता भी कहा जाने लगा। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है – सिंधु घाटी सभ्यता, ये सभ्यता सिंधु नदी के किनारे पली बढ़ी।
सर जॉन मार्शल ने इसे हड़प्पा सभ्यता कहा था। लगभग 2500 ईसा पूर्व इस सभ्यता का विकास हुआ। सिंधु घाटी सभ्यता को चीन की मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी उन्नत माना जाता है। 1920 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी के उत्खनन से मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा जैसे प्राचीन नगरों की खोज की। 1924 में सर जॉन मार्शल ने इसे नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
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यह सभ्यता एक विस्तृत भू- भाग पर फैली थी जिसमेंं सिंध, पंजाब, घग्घर नदी के क्षेत्र प्रमुख थे। ये पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फैली हुई थी,जो आज पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार इसकी स्थिति को हम सिंधु नदी के पास ही पाते हैं। बाद में इस सभ्यता के अवशेष अन्य स्थानों जैसे – रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे।
इस सभ्यता के मुख्यतः तीन चरण माने जाते हैं –
1.प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
2.परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
3.उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
ये चरण विकास की दर और स्थल जानने के नज़रिए से बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
इस सभ्यता की खोज में अनेक महत्वपूर्ण स्थल मिलें जिनमें से कुछ का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार से है -मोहनजोदड़ो- इस शब्द का सिंधी भाषा में आशय ‘मृतको का टीला’ होता है, सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित सैन्धव सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ एक बड़ा स्न्नानागार, एक अन्नागार के अवशेष तथा पशुपतिनाथ महादेव की मूर्ती आदि मिले।
हड़प्पा- पहला स्थान जहाँ से इस सभ्यता के सम्बन्ध में प्रथम जानकारी मिली इसीलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा गया।सुत्कान्गेडोर- यह स्थान हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
अंन्य प्रमुख स्थल चन्हूदड़ों, आमरी, कलिबंगन,लोथल,सुरकोतदा,बनावली और धौलावीरा आदि हैं। इन सभी स्थलों से कई चीजें जैसे मनके, जौ, चावल की भूसी, अग्निवेदिका और जलकुंड आदि पाए गए जिनका ऐतिहासिक महत्व काफी अधिक है।
ये सभ्यता अपने नगरीय जीवन के लिए जानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इनका जीवन बहुत सुखद और शांतिपूर्ण था। लोग समझदार और अच्छे विचारों वाले थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने-अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।
यह सभ्यता अपने नगरों में घरों और सड़कों की संरचना के साथ-साथ इंटों के लिए भी जानी जाती है। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों के अंदर स्नानघर और आँगन होते थे साथ ही नगरों में पानी के निकासी की व्यवस्था भी थी। नगरों में अन्नागार पाए जाते थे। इस सभ्यता के लोग पकी इटों का प्रयोग करते थे। इस प्रकार इनका नगरीय जीवन वक्त के हिसाब से काफी उन्नत माना जा सकता है।
सिंधु घाटी सभ्यता का समाज विवेक की दृष्टि से उन्नत था। समाज में असमानताएं भी काफी थीं।अमीर लोग बड़े घरों में रहते थे, उनके पास कई कमरे वाले घर होते थे। गरीब लोग छोटे घरों और झोपड़ियों में रहते थे। उत्खनन में काफी नारी प्रतिमाएं पाइ गई हैं विशेषज्ञों का मानना है कि ये सभ्यता मातृसत्तात्मक सभ्यता थी।
इनके सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था। यहाँ के लोग आभूषणों के काफी शौकीन माने जाते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे। अनेक आभुषणों के अवशेष भी मिले। भोजन में हड़प्पाकालीन लोग गेंहूँ ,जौ आदि के अलावा जानवरों के दूध और संभवतः माँस का भी प्रयोग करते थे।
सिंधु घाटी में अपनी अर्थव्यवस्था के लिए लोग विभिन्न कार्य किया करते थे। खेती का कार्य भी उनमें से एक था। कालीबंगा से जुते खेत के साक्ष्य, धौलावीरा के जलाशय, रेशेदार जाऊ गोसीपिउस आवोसियस जाति का संकर प्रजाति का कपास, लोथल, रंगपुर से धान की भूसी के साक्ष्य, बनावली से मिले मिटटी के हल आदि के साक्ष्य मिले हैं।
खेती के अलावा पशुपालन और व्यापार भी आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख हिस्सा था। इनके व्यापार मध्य एशिया, फारस कि खाड़ी, ईरान, बहरीन द्वीप, मेसोपोटामिया, मिस्र आदि तक होते थे। मेसोपोटामिया और यहाँ पाए गए मोहरों में समानता भी इस बात को पुष्टि प्रदान करती है। इसके अलावा नगरों में भी चौड़ी सड़कों का होना व्यापार को सुगम बनाने की कोशिश लगती है।
हड़प्पा में एक मुर्ती मिलती है जिसमें देवी के गर्भ से एक पौधा निकलता दिखाई दे रहा है इससे यह माना जाता है कि सिंधु घाटी में लोग जमीन की उर्वरता की पूजा करते थे। साथ ही अनेक देवियों की भी पूजा करते थे। पुरुष देवता के रूप में भी अनेक मोहरें पाई गईं हैं। इसे पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है। यहाँ के लोग पशुओं की भी पुजा करते थे जिसमें गैंडा और बैल थे। साथ ही यहाँ से बड़ी मात्रा में तावीज़ भी प्राप्त किये गए। अतः जादू टोना आदि का प्रचलन भी माना जा सकता है साथ ही बलि प्रथा के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों को लेकर आज भी विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। कुछ लोगों का मानना है कि आर्यों के आक्रमण के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ वहीं अन्य विद्वान इसके पतन का कारण प्राकृतिक मानते हैं। इस सभ्यता का पतन मंद गति से हुआ माना जाता है। साथ ही इस सभ्यता के साक्ष्य तो आज भी हमारी संस्कृति में मिलते हैं अतः कुछ विद्वान इसके पूरी तरह पतन हो जाने को नकारते भी हैं।
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