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International Democracy day in hindi
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2020 :अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अनुसार, लोकतंत्र जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिए बनाया गया शासन है। विस्तृत शब्दों में समझने का प्रयास करें तो जिस देश के सभी नागरिकों को एक समान राजनीतिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त हो, वह देश असल में लोकतांत्रिक देश कहलाता है।

ऐसे में सम्पूर्ण विश्व में लोकतांत्रिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए हर साल 15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस (International Democracy day in hindi )मनाने की शुरुआत की गई। इस दौरान विभिन्न लोकतांत्रिक देश मिलकर अपने देश के नागरिकों से लोकतंत्र में सक्रिय, सार्थक और सशक्त सहयोग और सम्मान की अपील करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2020:nternational democracy day
अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है : संयुक्त राष्ट्र संघ ने लोकतंत्र के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए 15 सितंबर 2007 में सर्वसम्मति से अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने की घोषणा की। जिसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर के देशों में प्रचलित लोकतंत्र की वैश्विक स्थिति की समीक्षा मात्र करना है। क्योंकि किसी भी लोकतंत्र का सबसे पहला कर्तव्य देश के नागरिकों को धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समानता प्रदान करना है। इसके अभाव में लोकतंत्र का कोई महत्व नही होता। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र नागरिकों और सरकारों के बीच की एक साझेदारी है, जिसमें सरकार द्वारा नागरिकों को विभिन्न अधिकार दिए जाते है। जिनके माध्यम से देश के नागरिक देश की तरक्की में अपना योगदान जोड़ते है। इस प्रकार हर साल की तरह इस वर्ष भी 15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह दिवस मनाया जाएगा। आपको बता दें कि बीते साल अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की थीम (international democracy day theme in hindi) थी सहभागिता।
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लोकतंत्र का क्या अर्थ है

लोकतंत्र का अर्थ एवं परिभाषा : लोकतंत्र शब्द संस्कृत भाषा के लोक यानि जनता और तंत्र यानि शासन से मिलकर बना है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली है, जिसके अंतर्गत जनता अपनी मर्जी से वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है। और वह प्रतिनिधि जनता और देश के हित के लिए कार्य़रत रहता है। तो वहीं डॉ बेनीप्रसाद ने लोकतंत्र को जीवन का एक ढंग माना है। साथ ही डाय़सी ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लिखा है कि लोकंतत्र के माध्यम से जनता यह निर्धारित करती है, कि फलां राज्य में किस प्रकार का शासन सूत्र स्थापित किया जाए। इसके अलावा मैक्सी ने बताया है कि लोकतंत्र का अभिप्राय मात्र शासन प्रणाली से ही नहीं। अपितु मनुष्य की स्वतंत्र और एच्छिक बुद्धिमता के आधार पर समाज में अनुरूपता लाने का एक मार्ग है।
लोकतंत्र के प्रकार
लोकतंत्र के कितने प्रकार हैं
लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं : लोकतंत्र की शासन प्रणाली दो प्रकार से वर्णित की गई है, पहला प्रत्यक्ष औऱ दूसरा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के अंतर्गत किसी भी देश की जनता को यह अधिकार प्राप्त होता है, कि वह शासन प्रशासन के तौर तरीकों और नियमों के किर्यान्वन में सीधे तौर पर प्रतिभाग कर सकती है। साथ ही जनता के फैसलों के बिना कोई नियम और कानून लागू नही किया जाता है। शुरुआत में रूसी दार्शनिकों ने लोकतंत्र के इस प्रकार को सर्वश्रेष्ठ माना था। आपको बता दें कि प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रणाली सर्वप्रथम यूनान के शहरों में अपनाई गई। और वर्तमान समय में स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र के माध्यम से सरकार का नेतृत्व किया जाता है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली को प्रतिनिधि लोकतंत्र के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रणाली के माध्यम से जनता मतदान करके अपने निर्वाचित सदस्य को चुनती है। और निर्वाचित सदस्य जनता की आवाज को सरकार के मध्य रखती है। इस व्यवस्था के अनुसार, जनता को सीधे शासन प्रणाली में प्रतिभाग करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसमें जनता निर्वाचन करके अपना प्रतिनिधि चुनती है और वह प्रतिनिधि जनता के अधिकारों के प्रति प्रयत्नशील रहती है।
लोकतंत्र की विशेषताएं क्या है
लोकतंत्र की विशेषताएं : प्राचीन समय में राजाओं के राज के दौरान समाज में ऊंच नीच की खाई जब बढ़ने लगी थी। तब समाज में लोकतंत्र की क्रांति हुई। लोकतंत्र समाज में फैली आर्थिक औऱ सामाजिक असामनताओं को कम करने का एक जरिया है। इसके माध्यम से देश की जनता को मौलिक अधिकारों की प्राप्ति होती है।
लोकतंत्र का महत्व : साथ ही लोकतंत्र में जनता को बेवजह किसी शाक्ति को नहीं झेलना पड़ता है बल्कि उसे यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अपने खिलाफ हो रहे जुल्मों को न सहे। और अपने प्रतिनिधि को मतदान के अधिकार के माध्यम से बदल सके। लोकतंत्र ही वह एकमात्र ताकत है, जिसके माध्यम से जनता सरकार से अपने हक की लड़ाई लड़ सकती है। इसी के माध्यम से समाज में व्याप्त लिंग, धर्म औऱ जाति के भेदभाव को कम किया जा सकता है।
लोकतंत्र के दोष क्या है

लोकतंत्र में मतों की संख्या को गुणों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है। जहां मत गिने जाते हैं, तोले नही जाते।
लोकतंत्र के नुकसान : जिस कारण से अरस्तु ने लोकतंत्र को अयोग्य शासन माना है। तो वहीं कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि लोकतंत्र की वजह से प्रतिनिधियों में राजनीतिकरण की भावना का विकास होता है। जिस कारण वह सत्ता के लोभ में अंधे होकर कुछ भी कर गुजरने को तैयार होते है। साथ ही लोकतंत्र में शासन से लेकर प्रशासन तक भ्रष्टाचार व्याप्त होने की संभावना रहती है। इसके अलावा लोकतंत्र में पूंजीवाद और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है।
लोकतंत्र की कमियां : इतना ही नहीं जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि राजनीति का फायदा अपने हितों को साधने के लिए करते है। लोकतंत्र को खर्चीली व्यवस्था माना जाता है और कभी-कभी मतदान के माध्यम से ऐसे प्रतिनिधि चुनकर सामने आते है। जोकि जनता के अधिकारों का हनन करके अपने आपको लाभ पहुंचाते है। इसके अतिरिक्त यदि किसी देश की जनता अशिक्षित है तो लोकतंत्र का परिणाम भयावह हो सकते है।
लोकतंत्र और गणतंत्र में क्या अंतर है
लोकतंत्र व गणतंत्र में अंतर : प्रजातंत्र और लोकतंत्र का सही मायनों में अर्थ होता है कि जनता द्वारा जनता के लिए शासन। लोकतंत्र के माध्यम से जनता मतदान करके अपनी सरकार के लिए प्रतिनिधि चुनती है। यह प्रतिनिधि एक निश्चित समय के लिए चुने जाते है, जोकि 5 साल की अवधि के पश्चात् काम के अनुरूप बदल दिए जाते है।
लोकतंत्र और गणतंत्र में अंतर : लोकतंत्र में देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त होते है। और उनपर एक समान कानून लागू होते हैं। तो वहीं गणतंत्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा शासकों को चुना जाता है। और वह शासक मिलकर कानून के आधार पर सरकार का निर्माण करते हैं। जहां एक ओर लोकतंत्र में बहुमत के आधार पर निर्णय लिए जाते है, तो वहीं गणतंत्र में संविधान को आधार मानकर निर्णय लिया जाता है। लोकतांत्रिक देशों की श्रेणी में ब्रिटेन, जापान, सऊदी अरब और गणतांत्रिक देशों में अमेरिका औऱ भारत आदि सम्मिलित है।
भारत में लोकतंत्र का इतिहास
भारत में लोकतंत्र कब आया :अंग्रेजी हुकूमत से आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 में भारत में संविधान लाया गया। जिसके बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बन गया। इसी दौरान भारत के नागरिकों को मतदान देने का अधिकार प्राप्त हुआ। तो वहीं भारत में हर 5 साल में संसदीय और राज्य विधानसभा के चुनाव आयोजित किए जाते हैं। और भारत में चुनावों को उत्सव की भांति मनाया जाता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आज हर व्यक्ति को अपनी मर्जी से जीवन जीने का हक मिला है, और इस लोकतंत्र की परिपाटी से हमने काफी प्रगति की है।
धर्मनिरपेक्ष होने के साथ-साथ भारत में नागरिकों को मौलिक अधिकार भी प्राप्त है। लेकिन आज 21 वीं सदी के इस युग में भारत की गिनती विकासशील देशों में की जाती है और यहां तमाम प्रयासों के बाद भी गरीबी, भूखमरी और बेरोजगारी को ठोस उपाय अब तक नहीं मिल पाया है। तो वहीं चुनाव प्रक्रिया में नागरिकों की भूमिका कम होने की वजह से यह केवल एक कर्तव्य मात्र रह गई है। ऐसे में आवश्यक है कि लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के साथ-साथ बुनियादी समस्याओं के हल पर पूर्णतया मेहनत की जाए। तभी हमारा एक पूर्ण रूप से सभ्य और विकसित समाज का सपना साकार हो सकेगा।
लोकतंत्र पर विचार
अरस्तू के अनुसार, लोकतंत्र में गरीबों के पास अमीरों की तुलना में अधिक शाक्ति होगी। क्योंकि उनकी संख्या अधिक होगी और इच्छा सर्वोपरि।
महात्मा गांधी के अनुसार, लोकतंत्र में कमजोर व्यक्ति के पास भी उतने ही अवसर होने चाहिए, जितने की ताकतवर व्यक्ति के पास मौजूद होते है। तभी लोकतंत्र की परिभाषा तार्किक सिद्ध होगी।
डॉ. भीमराव आंबेडकर के अनुसार, लोकतंत्र में सामाजिक लोकतंत्र राजनैतिक लोकतंत्र से कहीं अधिक आवश्यक है। क्योंकि इसमें जीने का तरीका समान, बराबरी और भाई चारे के सिद्धांत को महत्ता दी जाती है।
ए. पी. जे अब्दुल कलाम के अनुसार, लोकतंत्र में सम्पूर्ण राष्ट्र की शांति, समृद्धि और खुशहाली और एक-एक नागरिक की खुशी परिलक्षित होनी चाहिए।
एडवर्ड बेलामी के अनुसार, लोकतंत्र का प्राथमिक सिद्धांत है व्यक्ति का मूल्य और उसकी गरिमा।
बता दें कि भारतीय लोकतंत्र के चार स्तंभ है- न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया।
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