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कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है : सामान्यतः यह माना जाता है कि कश्मीरी घाटी सदैव एकांत में रही हैं । आधुनिक खासकर कुछ विशेष विचारधारा के इतिहासकार ये मानते हैं कि कश्मीर संस्कृति भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से कभी भी भारत से नहीं जुड़ी थी । परंतु इस तरह के विचार और दृष्टिकोण गलत जानकारियों और सूचनाओं पर आधारित है । इस आधुनिक इतिहासकारों या विद्वानों को प्राचीन कश्मीर के एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में विकास का कोई भी ज्ञान नहीं हैं । इस गलत और भ्रामक जानकारियों का कारण कश्मीर की एक निर्मित राजनीतिक पहचान हैं जिसमें पिछले सौ सालों का इतिहास हैं । इस तरह के विचार और दृष्टिकोण एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया से बनी कश्मीरी संस्कृति पहचान की उपेक्षा करते हैं जिसमें कश्मीर का भारत के अन्य क्षेत्रों से सदैव एक मजबूत सांस्कृतिक संपर्क और संबंध रहा है
पिछले वर्ष इतिहासकार सोनालिका कौल ने यह विचार रखा था कि कश्मीर की ऐतिहासिक पहचान की उपेक्षा के कारण दो तरह के गलत दृष्टिकोणों ने जन्म ले लिया हैं एक , कश्मीर का कोई विशेष और महत्वपू्ण दर्जा हैं , दूसरा, कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं रहा परंतु, यह दोनों ही विचार बहुत अनैतिहासिक और गलत हैं । कश्मीर कभी भी अलग थलग नहीं रहा और इसकी संस्कृति सदैव से ही भारतीय रही हैं और यह सदैव भारत से जुड़ा रहा है ।
कश्मीर को घेरने वाले उच्चे उच्चे पर्वतों ने कभी भी इसको भारत से अलग थलग नहीं किया और ना ही कश्मीर के भारत के अन्य हिस्सों के साथ सांस्कृतिक संबंधो को रोका । पीएनके बाज़मी कहते हैं कि क्षेत्र अन्य भारत से जुड़ा हुआ था जिसके साक्ष्य यह के स्रोतों में स्पष्ट रूप से मिलते हैं।
कश्मीर के क्षेत्रीय इतिहास से संबंधी ग्रंथ राजतरंगिणी कश्मीर के अन्य भारत के क्षेत्रों से संबंधो पर स्पष्ट प्रकाश डालता है जैसे दरादास, खासास (गरवाल नेपाल) तक्कस (पंजाब)। इन क्षेत्रों के साथ कश्मीर का संबंध कभी विजय और सैन्य अभिया नों के द्वारा तो कभी कूटनीती और देश निकाला आदि के द्वारा जुड़ा रहा । राजतरंगिणी स्पष्ट रूप से बताती हैं कि यह महान मगध सम्राट अशोक महान का शासन रहा था और उन्होंने यह श्री नगर की स्थापना की और बौद्ध धर्म को फैलाया, उनके बाद उनका उतराधिकारी जलौक हुए जिन्होंने यह पर शासन किया । राजतरंगिणी गुप्तोत्तर काल में आक्रमण करने वाले हुनों को भी विदेशी नहीं मानती । मौर्य, कुषाण और हूनो ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसमें कश्मीर भी बाकि भारत के राज्यो के साथ शामिल था । इससे कश्मीर एक अखिल भारतीय राजनीति का अंग बना । राजतरंगिणी इस बात का भी जिक्र करती हैं कि जालौक और परशरव सेन जैसे राजाओं ने भारत के अन्य जिसको जो को अपने राज्य में मिला कर उसपर शासन किया । इन राजाओं में सबसे महत्वपूर्ण थे ललिता द्वितीय मुक्तापिड ।
महाभारत के युद्ध का वर्णन भी यह के क्षेत्रीय स्रोतों में मिलता है । निलमता पुराण बताती हैं कि उस समय यह एक बालक राजा का शासन था इसलिए कश्मीर ने महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया । आधुनिक विद्वान इसको इस बात का साक्ष्य मानते हैं कि कश्मीर खुद को गंगा घाटी के मामलों से अलग रखना चाहता था यह वर्णन मात्र राजनीतिक वैधता पाने का साधन मात्र था । परंतु यह तथ्य और विचार गलत हैं ।
इस क्षेत्र के लिखित स्रोतों से पता चलता है कि यह के लोगो ने बहुत सी कथाओं की रचना की जिससे कश्मीर को अखिल भारतीय पहचान से जोड़ा गया । और इस कड़ी में महर्षि कश्यप और कृष्ण को कश्मीर से जोड़ा गया । यह के लिखित स्रोतों हमें बताते हैं कि कृष्ण ने यह के राजा दामोदर का वध किया । हरिवंश पुराण बताती हैं कि कश्मीर मगध के राजा जरासंध का मित्र राज्य था । इसके अलावा इस बात का भी जिक्र करती हैं कि जब यादव द्वारका जा रहे थे तब कश्मीर के राजा ने उनको सहायता प्रदान की । महाभारत के सभा पर्व में इस बात का जिक्र हैं कि अर्जुन ने अपनी दिग्विजय के दौरान कश्मीर को भी जीता । इस सब बातो के संयुक्त अध्यन से जाहिर होता है कि कश्मीर की गंगा घाटी के मामलों में एक सक्रिय भूमिका रही थी ।
कश्मीर वैवाहिक संबंधो द्वारा भी अन्य भारतीय क्षेत्रों के साथ जुड़ा था । कई शताब्दियों तक इस क्षेत्र ने बहुत से ब्राह्मणों और और अन्य भारत के क्षेत्रों के अन्य जनो को अपनी और आकर्षित किया जो कि जिसकी जनसंख्या का महत्वपूर्ण अंग बने । कश्मीर के ऐतिहासिक स्त्रोत यह भी बताते हैं कि जब भी कश्मीर का कोई राजा राजकाज छोड़ता था या किसी को राज्य निकाला दिया जाता था तो वह भारत हो आता था ।
तीर्थ यात्रा संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग होते हैं जो लोगो की मनोवैज्ञानिक स्थिति से भी जुड़े होते हैं और इसी लिए कश्मीर के लोगो ने तीर्थ और तीर्थयात्रा द्वारा खुद को एक अखिल भारतीय पहचान से जोड़ा । भारतीय सनातन संस्कृति के बहुत से पवित्र स्थल यह स्थित हैं जैसे शंकराचार्य मंदिर और अमरनाथ गुफा । परंतु जैसा वाल्टर स्लाजे कहते हैं कश्मीर के लोग अपने भारत के अन्य तीर्थो के लिए दूर दूर नहीं जा सकते थे इसलिए उन्होंने इन क्षेत्रों की प्रतिकृति और प्रतिकृतिक कल्पना का निर्माण अपने ही क्षेत्र में किया । उत्तर भारत के बहुत से पवित्र स्थल जैसे प्रयाग पुष्कर, अयोध्या आदि कश्मीर में भी हैं । जिनको कथाओं द्वारा जोड़ा गया है जयापिडापुरा को कश्मीर में द्वारका के रूप में देखा जाता है । रामायण के तीर्थो को कल्पना भी यह की गई है । इसके अलावा कश्मीरियों ने भारत के अन्य स्थलों में भी तीर्थ को देख जैसे गया । वांकला में एक कश्मीरी आराम गृह का भी जिक्र मिला हैं । इसके अलावा भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थल शरदापीठ भी कश्मीर में ही स्थित हैं ।
अंततः यह बात जाहिर होती है कि कश्मीर सदैव ही भारत का और भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग राजा हैं और यह की संस्कृति पूर्णता भारतीय ही रही हैं और जो भी भ्रामक विचार और सूचनाएं आज कुछ लोगो द्वारा फैलाई जा रही है कि कश्मीर भारत से अलग और विशेष हैं तो वह मात्र एक एजेंडा हैं जिसका आधार झूठ और अज्ञानता हैं ।
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