लॉकडॉउन में भारत सरकार को करना क्या था…..और वास्तव में हो क्या रहा है ?
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
यह अपना है और यह पराया है, इस तरह की बातें छोटे चित वाले लोग करते है क्योंकि उदार हृदय वालों के लिए सम्पूर्ण धरती एक परिवार है।
भारत देश इसी तरह की मान्यताओं के चलते विश्व गुरु माना जाता रहा है। लेकिन यह सोने की चिड़िया अपने मूल अस्तित्व से दूर हो गई है। वर्तमान में भारत के पास एक मौका है जिससे वह अब खुद को पुनः स्थापित कर सकता है। आइए जानते है कैसे…..
2020 की शुरुआत से ही दुनिया भर में कोविड-19 का खतरा मंडराने लगा। और जैसे जैसे समय बीतता गया, कोरोना वायरस ने दुनिया भर के शक्तिशाली मुल्कों को अपनी चपेट में ले लिया। जिससे हमारा भारत देश भी अछूता नहीं रहा है। 20 मार्च से भारत की जनता कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप की वजह से अपने अपने घरों में कैद है। हालांकि भारत में अभी भी अन्य देशों के मुकाबले कोरोना संक्रमण के मामले खासकर इससे मरने वालों की संख्या की गति धीमी है। और इस बात में कोई शक नहीं कि इसके पीछे भारत के लोगों का शुद्ध खान पान और बची कुची सात्विकता है।
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भारत की सड़कों पर उमड़ा मजदूरों का हुजूम
देश में सम्पूर्ण लॉकडॉउन के चलते जिस वर्ग को सबसे अधिक परेशानी हुई वह थे प्रवासी मजदूर… राज्यों की सरकारों ने उनको अपने अपने घर लौट जाने को कहा। जिस कारण वह भूखे प्यासे पैदल ही निकल पड़े। ना जाने कितने घर वापस आए और ना जाने कितने रास्ते में ही दफन हो गए। हालांकि सरकार ने श्रमिक ट्रेनें चलाई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सरकार को करना क्या था और एक इंसान होने के नाते हमारी यानि कि उन प्रवासी मजदूरों के मालिकों की क्या नैतिक जिम्मेदारी थी? एक उदाहरण के तौर पर समझिए कि किसी फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की सारी जानकारी उनके मालिकों के पास होती है। ऐसे में अगर वह अपने मजदूरों के प्रति थोड़ी इंसानियत दिखाते तो सरकार से आगे आकर अपने लोगों के लिए जिसे वह कागजों में अपना परिवार बताते है उसके लिए रोटी और सोने के लिए दो गज जमीन की व्यवस्था की जा सकती थी। हमने उन्हें लावारिस सड़कों पर छोड़ दिया। सरकार क्या कर सकती थी वह अपने स्थानीय नेताओं की मदद से प्रवासी मजदूरों को जहां थे वहीं आसरा दिलवा सकती थी।
भारत के मिडिल क्लास को झेलनी पड़ रही दोहरी मार
एक तरफ देश में लॉकडॉउन की वजह से आम आदमी से लेकर खास तक अपनी बचत पर निर्भर है। तो वहीं बहुत सारी कंपनियां लोगों को नौकरी से निकाल रही है। सरकार ने राहत पैकेज का एलान तो किया है लेकिन ओद्यौगिक विकास के लिए किसी भी तरह का कोई मॉडल प्रस्तुत नहीं किया है तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार पहले से ही विकासशील समाज की स्थापना करने में सफल हो पाएगी।
भारत आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने की बात कर तो रहा है लेकिन जिस देश में एक बड़ा वर्ग आज भी बहुत ही संघर्ष पूर्ण जिंदगी व्यतीत कर रहा हो वहां आकर आत्मनिर्भरता खत्म सी हो जाती है।
देश का भविष्य तभी बदलेगा जब देश के हर वर्ग को आगे ले जाने की तरफ सरकार प्रयासरत होगी। जिसके लिए हमें दलगत राजनीति और मिश्रित अर्थव्यवस्था के पैमानों को बदलने की जरूरत है। जरूरत है नीतियों में बदलाव की और जरूरत है समाज के आधुनिक पलायन को रोकने की।