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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है।
इसका ओपचारिक रूप से गठन 27 सितम्बर, 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ।
इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा-प्रत्यास्थ (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है। आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह एक शीर्ष निकाय है।
एक समग्र, अग्रसक्रिय तकनीक संचालित और संवहनीय विकास रणनीति के द्वारा एक सुरक्षित और आपदा-प्रत्यास्थ भारत बनाना, जिसमें सभी हितधारकों की मौजूदगी हो तथा जो रोकथाम, तैयारी और शमन की संस्कृति का पालन करती हो।
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को राष्ट्रीय प्राथमिकता का महत्त्व देते हुए भारत सरकार ने अगस्त 1999 में एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी और वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप के बाद एक राष्ट्रीय कमेटी का गठन आपदा प्रबंधन योजनाओं पर तैयारी की सिफ़ारिश करने और प्रभावी शमन सुझाने हेतु किया।
दसवीं पंचवर्षीय योजना के अभिलेख में भी प्रथम बार आपदा प्रबंधन पर एक विस्तृत अध्याय है। बारहवें वित्त आयोग को भी आपदा प्रबंधन हेतु वित्तीय प्रबंध की समीक्षा हेतु अधिदेश दिया गया था।
23 दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया जिसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), और संबद्ध मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की स्थापना की परिकल्पना भारत में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने और उसके प्रति एक समग्र व एकीकृत दृष्टिकोण कार्यान्वित करने हेतु की गई।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को स्वीकृति देना।
आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ तैयार करना।
राष्ट्रीय योजना के अनुसार केंद्र सरकार के मंत्रालयों या विभागों द्वारा बनाई गई योजनाओं को स्वीकृत करना।
ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करना जिनका अनुसरण कर राज्य के प्राधिकारी राज्य योजना तैयार कर सकें।
ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करना जिनका अनुसरण केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों या विभागों द्वारा आपदा रोकथाम के उपायों को एकीकृत करने या आपदा प्रभावों के शमन हेतु अपनी विकास योजनाओं ओर परियोजनाओं में किया जा सके।
आपदा प्रबंधन नीति एवं योजना के प्रवर्तन और कार्यान्वयन में समन्वय करना।
शमन के लिये निधियों के प्रावधान की सिफ़ारिशें करना।
अन्य ऐसे देशों को जो कि बड़ी आपदाओं से प्रभावित होते हैं, ऐसी सहायता देना जो केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की गई है ।
भयावह आपदा स्थितियों या आपदाओं से निपटने हेतु रोकथाम या शमन या तैयारी और क्षमता निर्माण के ऐसे अन्य उपाय अपनाना जिन्हें वह आवश्यक समझे।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंध संस्थान की कार्यपद्धति हेतु व्यापक नीतियाँ और दिशा-निर्देश तैयार करना।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने भारत में आपदा प्रबंधन हेतु कानूनी और संस्थागत संरचना का प्रावधान राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर किया है। भारत की संघीय राजनीति में आपदा प्रबंधन का प्राथमिक उत्तरदायित्व राज्य सरकारों में निहित है। केंद्र सरकार योजनाएँ, नीतियां और दिशा-निर्देश तैयार करती है और तकनीकी, वित्तीय और संभरण सहायता देती है जबकि जिला प्रशासन केंद्रीय और राज्य स्तर की एजेंसियों के साथ मिलकर अधिकांश कार्यों को सम्पन्न करता है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 8 के तहत राष्ट्रीय प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया जाता है।
केंद्रीय गृह सचिव इसका पदेन अध्यक्ष होता है।
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति को आपदा प्रबंधन हेतु समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने और राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के पास NDMA द्वारा सृजित व्यापक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अधीन आपदा प्रबंधन के लिये मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण का अधिदेश है।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) आपदा मोचन हेतु एक विशेषीकृत बल है और यह NDMA के समग्र पर्यवेक्षण और नियंत्रण में कार्य करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1 जून, 2016 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) जारी की थी। देश में पहली बार इस तरह की राष्ट्रीय योजना तैयार की गई है।
NDMP आपदा जोखिम घटाने के लिये प्रमुखतः सेंडाई फ्रेमवर्क में तय किये गए लक्ष्यों और प्राथमिकताओं के साथ तालमेल करता है।
योजना का विज़न भारत को आपदा मुक्त बनाना, आपदा जोखिमों में पर्याप्त रूप से कमी लाना, जन-धन, आजीविका और संपदाओं (आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय) के नुकसान को कम करना है। इसके लिये प्रशासन के सभी स्तरों और साथ ही समुदायों की आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया गया है। प्रत्येक खतरे के लिये, सेंडाई फ्रेमवर्क में घोषित चार प्राथमिकताओं को आपदा जोखिम में कमी करने के फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है। इसके लिये पाँच कार्यक्षेत्र निम्न हैं:
जोखिम को समझना
एजेंसियों के बीच सहयोग
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction-DRR) में सहयोग– संरचनात्मक उपाय
DRR में सहयोग– गैर-संरचनात्मक उपायक्षमता विकास
योजना के कार्यकारी हिस्से की पहचान 18 बड़े कार्यों के रूप में की गई है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं :
पूर्व चेतावनी, मानचित्र, उपग्रह इनपुट, सूचना प्रसार
पशुओं और लोगों को हटाना
पशुओं और लोगों को ढूंढना और बचाना
स्वास्थ्य सेवाएँ
पेयजल/निर्जलीकरण पंप/स्वच्छता सुविधाएँ/सार्वजनिक स्वास्थ्य
खाद्य और आवश्यक आपूर्ति
संचार
आवास और झोपड़ियाँ
बिजली
ईंधन
परिवहन
राहत रसद और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन
पशु के शवों का निपटान
प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के लिये चारा
पुनर्वास एवं पशुधन और अन्य जानवरों के लिये पशु चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करना
डेटा संग्रह और प्रबंधन
राहत रोज़गार
मीडिया संपर्क
योजना में आपदा जोखिम की बेहतर शासन प्रणाली के लिये एक अध्याय भी शामिल किया गया है। केंद्र और राज्यों की संबंधित भूमिकाओं वाली विशेष एजेंसियों की सामान्यीकृत ज़िम्मेदारियाँ इस खंड में दी गई हैं। छह क्षेत्रों में केंद्र और राज्य सरकारें आपदा जोखिम शासन प्रणाली को मजबूत करने के लिये कार्रवाई करेंगी :
मुख्यधारा और एकीकृत DRR और संस्थागत सुदृढ़ीकरण
विकास क्षमता
भागीदारीपूर्ण नज़रिये को बढ़ावा देना
चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ काम करना
शिकायत निवारण प्रणाली
आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये गुणवत्ता वाले मानकों, प्रमाणीकरण, आदि को बढ़ावा देना
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना आपदा प्रबंधन चक्र के सभी चरणों के लिये सरकारी एजेंसियों को रूपरेखा और दिशा प्रदान करता है।
यह संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में SDMA राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये नीतियाँ और योजनाएँ तैयार करता है।
यह राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय, आपदा के शमन के लिये तत्पर रहने के उपायों और राज्य के विभिन्न विभागों की योजनाओं की समीक्षा के लिये उत्तरदायी है ताकि रोकथाम, तैयारी और शमन उपायों का समेकन सुनिश्चित हो सके।
इसका नेतृत्व राज्य का मुख्य सचिव करता है। SEC आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रावधानित राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना और राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय और निगरानी के लिये उत्तरदायी है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 25 राज्य के प्रत्येक जिले के लिये एक DDMA के गठन का प्रावधान करती है।
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट/डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर/डिप्टी कमिश्नर अध्यक्ष के रूप में इसका प्रमुख होता है, इसके अलावा स्थानीय प्राधिकरण का निर्वाचित प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होता है, उन जनजातीय क्षेत्रों को छोड़कर जहां स्वायत्त ज़िले की ज़िला परिषद का मुख्य कार्यकारी सदस्य सह-अध्यक्ष नियुक्त हो।
इसके अलावा उन ज़िलों में जहाँ ज़िला परिषद मौजूद है, में इसका अध्यक्ष DDMA का सह- अध्यक्षहोगा।
ज़िला प्राधिकरण आपदा प्रबंधन के लिये योजना बनाने, समन्वय करने और कार्यान्वयन करने तथा आपदा प्रबंधन के लिये ऐसे उपाय अपनाने के लिये उत्तरदायी है जो दिशा-निर्देश में दिये गए हैं।
ज़िला प्राधिकरण के पास ज़िले में किसी भी क्षेत्र में निर्माण की जाँच करने, सुरक्षा मानकों को लागू करने और राहत उपायों की व्यवस्था करने तथा ज़िला स्तर पर आपदा के प्रति प्रतिक्रिया करने का अधिकार है।
कुछ समय पहले आया चक्रवात फणि पिछले दो दशकों में भारत भूमि से टकराने वाला सर्वाधिक तीव्र चक्रवात था।
ओडिशा की तैयारी, प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली, समयानुकूल कार्रवाई और सुनियोजित वृहद् स्तर की अस्थायी विस्थापन प्रक्रिया ने 1.2 मिलियन लोगों को लगभग 4000 चक्रवात आश्रय स्थलों में सुरक्षित पहुँचाने में सहायता की और इस तरह संवेदनशील समुद्री क्षेत्र में खतरे में पड़े लोगों के जीवन की रक्षा की।
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिज़ास्टर रिस्क डिडक्शन (UNISDR) और अन्य संगठनों ने उन सरकारी और स्वैच्छिक प्रयासों की सराहना की जिनसे विनाश के स्तर को न्यूनतम रखा जा सका।
इसी तरह वर्ष 2014 में हुदहुद चक्रवात के दौरान आंध्र प्रदेश ने भी लाखों लोगों के लिये समान रूप से इसी प्रकार की अस्थायी विस्थापन रणनीति पर अमल किया गया था।
इस प्रकार की रणनीतियाँ अपनाने से चक्रवात के दौरान होने वाली मौतों में भी कमी आई। वर्ष 1999 में ओडिशा में सुपर साइक्लोन के दौरान 10000 लोगों की मौत की तुलना में वर्ष 2019 में फणि चक्रवात के दौरान मौतों का आँकड़ा दही अंकों में सिमट गया।
NDMA गहन भूकंप और अतिरेकपूर्ण मौसमी घटनाओं के संबंध में जागरूकता अभियान चलाता है और प्राकृतिक तथा मानव निर्मित आपदाओं के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करता है।
NDMA ने स्कूल सुरक्षा, अस्पताल सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश और राहत शिविरों में आश्रय, भोजन, पानी, स्वच्छता और मेडिकल सुविधा के लिये न्यूनतम मानक तय किये हैं। प्राधिकरण ने हीट वेव के असर को कम करने के लिये भी राज्यों के साथ निकटता से कार्य किया है, जिससे मौतों की संख्या में काफी कमी आई है।
आपदा के दौरान बेहतर संकट प्रबंधन के लिये NDMA समय-समय पर मॉक ड्रिल का आयोजन भी करता है।
वर्ष 2013 में उत्तराखंड की बिशन प्राकृतिक आपदा के दौरान NDMA की भूमिका के बारे में प्रश्न उठाए गए जहाँ यह अचानक की बाढ़ और भूस्खलनों के बारे में लोगों को समय रहते सूचित करने में असफल रहा। आपदा के बाद राहत कार्यों की स्थिति भी समान रूप से खराब रही। विशेषज्ञों ने इसके लिये NDMA की खराब योजना को दोषी बताया जिसकी वजह से बाढ़ और भूस्खलन रोकने की परियोजनाएँ पूरी न हो सकीं।
CAG की एक रिपोर्ट में बताया गया कि बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों के तहत परियोजनाओं के पूरा होने में देरी हुई। परियोजनाओं को एक एकीकृत ढंग से नहीं लिया गया और खराब बाढ़ प्रबंधन के लिये संस्थागत असफलता हेतु उसने NDMA को दोषी माना। इसने पाया कि नदी प्रबंधन कार्यों और सीमावर्ती क्षेत्र परियोजनाओं को पूरा करने में काफी देरी की गई, जो असम, उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की बाढ़ समस्याओं के दीर्घावधि समाधान थे।
वर्ष 2018 में केरल और वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ के दौरान हुआ विनाश आपदा स्थितियों के संबंध में तैयारी के बारे में संस्थाओं के लिये आँखें खोलने वाला था।
वर्ष 2015 की चेन्नई की बाढ़ को CAG की रिपोर्ट ने मानव निर्मित आपदा कहा और इस विनाश के लिये तमिलनाडु की सरकार को उत्तरदायी बताया।
NDRF कर्मियों के पास संकट की स्थितियों से निपटने हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण, उपकरणों, सुविधाओं और आवासीय सुविधा का अभाव है।
निधियों का दुरुपयोग: आपदाओं से निपटने के लिये सरकार ने राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि और राज्य आपदा मोचन निधि की स्थापना की है। इनके लेखा परीक्षणों से पता चला है कि कुछ राज्यों ने उन व्ययों हेतु निधि का दुरुपयोग किया है, जिन्हें आपदा प्रबंधन के लिये स्वीकृत नहीं किया गया था। कुछ मामलों में निधि जारी करने में बहुत देरी की गई। इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों ने निधियों का निवेश नहीं किया और इस तरह ब्याज की काफी हानि हुई। यह निधि प्रबंधन के मामले में राज्यों में वित्तीय अनुशासनहीनता दर्शाता है।
वृहद् स्तर पर नीति दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है जो सभी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की तैयारी और कार्यान्वयन तथा विकास योजनाओं को सूचित और निर्देशित कर सकें।
आपदा प्रबंधन व्यवहारों को विकास के साथ एकीकृत करने और आपदाओं की रोकथाम तथा शमन हेतु विशिष्ट विकास योजनाओं के लिये संचालन दिशानिर्देशों की रचना की जानी चाहिये।
मज़बूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली के साथ-साथ ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रतिक्रिया हेतु योजनाएँ होनी चाहिये।
आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में समुदायों, NGO, CSO और मीडिया को शामिल किया जाना चाहिये।
अनुकूलन और शमन के ज़रिये जलवायु जोखिम प्रबंधन का समाधान किया जाना चाहिये।
अनुसंधान में समुचित निवेश द्वारा एक आपदा-प्रत्यास्थ अवसंरचना के विकास हेतु गतिशील नीति की आवश्यकता है। ISRO, NRSA, IMD और अन्य संस्थाओं को सामूहिक रूप से तकनीकी समाधान उपलब्ध कराने चाहिये ताकि आपदाओं से निपटने की क्षमताओं को बढ़ाया जा सके।
भारत को सर्वोत्तम वैश्विक प्रक्रियाओं से सीखना चाहिये। हांगकांग, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने टाइफून तथा अन्य आपदाओं से प्रभावी तरीके से निपटने के लिये मज़बूत अवसंरचना का निर्माण किया है।
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