हम उस देश के निवासी है जिस देश से पीटी उषा ताल्लुक रखती है, जकार्ता के स्थानीय दुकानदारों को जब इस बात की खबर लगेगी तो वह आपसे इज्जत से पेश आएंगे। इतना ही नहीं दुनिया भर के देशों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली पीटी उषा ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही, राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं जीतकर यह साबित कर दिया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है।
मनु स्मृति में कहा गया है कि………..
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
अर्थात् जिस कुल में स्त्रियों की पूजा की जाती है। उस कुल से देवता भी प्रसन्न रहते है। वहीं जहां स्त्रियों का अपमान होता है वहां सभी ज्ञान, कर्म आदि निष्फल हो जाते है। सृष्टि की स्थापना के समय से ही महिलाओं को पुरुषों के सारथी के रुप में देखा गया है। ऐसे में चाहे प्राचीन समय की बात करें या आधुनिक समाज की, प्रारंभ से ही महिलाओं ने पुरुषों की भांति ही समाज के उज्जवल कल के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। एक ऐसा ही उदाहरण है भारतीय धावक पीटी उषा। 27 जून को उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर आइए जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
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भारत के केरल राज्य के कोजिकोड जिले के पय्योली गांव में 27 जून 1964 को पीटी उषा का जन्म हुआ था। जिनका पूरा नाम पिलावुल्लकंडी थेक्केपराम्बील उषा है। इनके पिता का नाम इ पी एम् पैतल और माता का नाम टी वी लक्ष्मी है। बचपन से ही पी टी उषा का स्वास्थ्य काफी खराब रहता था। लेकिन अपने स्कूल के प्राइमरी दिनों में वह जल्द ही स्वस्थ हो गई। और कुछ ही दिनों में उनके अंदर छुपे महान् खिलाड़ी की खोज कर ली गई। वर्तमान में वह दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत है। और पीटी उषा के पति का नाम वी श्रीनिवास और बेटे का नाम उज्जवल है।
पय्योली ट्रैक, फील्ड की रानी और भारतीय ट्रैक के नाम से जाने जानी वाली पी टी उषा भारतीय खेलों में सन् 1979 से है। जोकि भारत के महान् खिलाड़ियों में से एक है। इतना ही नहीं सन् 1984 के लॉस एंजेलेस ओलंपिक खेलों में चौथा स्थान पाने के बाद भी भारत में पी टी उषा युवा खिलाड़ियों की प्रेरणास्त्रोत है।
अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए पीटी उषा कहती है कि 1980 में हालात बिल्कुल अलग हुआ करते थे। उस दौरान उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह ओलंपिक में भाग लेंगी। पीटी उषा आगे बताती है कि स्कूल के दिनों से ही उनके चाचा उनको खेल के प्रति प्रोत्साहित किया करते थे। वहीं उन दिनों जब वह शार्टस् पहनकर दौड़ का अभ्यास करने जाया करती थी तो लोग भीड़ लगाकर उन्हें देखा करते थे। इतना ही नहीं पीटी उषा को देखते हुए केरल सरकार ने महिलाओं और लड़कियों के लिए केरल में खेल विद्यालय की स्थापना करवाई।
12 साल की उम्र में पीटी उषा ने श्री ओ पी नब्बियारका के निर्देशन में खेल प्रशिक्षण लिया। साथ ही साल 1978 में केरल में हुए अंतरराज्य प्रतियोगिता में पीटी उषा ने 3 स्वर्ण पदक हासिल किए। इसके अलावा 1982 के एशियाई खेलों में उसने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। वहीं कुवैत में उन्हें 2 स्वर्ण जीते थे। इतना ही नहीं 1984 के लॉस एंजेलस ओलंपिक खेलों में पीटी उषा को चौथा स्थान प्राप्त हुआ। ट्रैक एंड फिल्ड मुकाबलों में लगातार 5 बार स्वर्ण और 1 रजत पदक जीतकर पीटी उषा एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन गई। साथ ही भारतीय रेल के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय स्त्री या पुरुष को सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी सम्मान प्राप्त हुआ।
पीटी उषा ने अपनी प्रतिभा के दम पर देश ही नहीं बल्कि विदेश की जमीं पर भी काफी नाम कमाया। इसी कारण से इऩको साल 1984 में खेल में प्रख्यात अर्जुन पुरस्कार मिला। इसी साल इनको भारत सरकार की ओर से सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम् श्री दिया गया। वहीं साल 1984, 1985 और 1987 में इन्हें एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका घोषित कर दिया गया। इतना ही नहीं जकार्ता वर्ष 1985 में एशियाई दौड़ प्रतियोगिता की महानतम महिला धाविका के रूप में इन्होंने अपनी पहचान बनाई। साथ ही दौड़ में पीटी उषा को अब तक 101 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अलावा साल 1985 और 1986 में पीटी उषा को सर्वश्रेष्ठ धाविका के लिए विश्व ट्रॉफी से नवाजा गया।
केरल के युवा खिलाड़ियों को खेल में आगे बढ़ाने के लिए पीटी उषा का स्कूल ऑफ एथलीट एक बेहतरीन संस्थान है। जहां वह खेलों की दिशा में युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाने का कार्य़ करती है। इस संस्थान को लेकर पीटी उषा कहती है कि केरल के कोझीकोड जिले में किनालुर की पहाड़ियों के बीच बना यह खेल संस्थान उनका एक ख्वाब था, जिसे उन्होंने पूरा किया है।
पीटी उषा भारतीय खिलाड़ियों को संदेश देते हुए कहती है कि भारतीय खिलाड़ियों को अन्य देशों में काफी सम्मान मिलता है। ऐसे में भारतीय खिलाड़ियों को पूरी लगन के साथ खेलना चाहिए। क्योंकि सफलता मेहनत की कुंजी है। महिला खिलाड़ियों को संदेश देते हुए पीटी उषा कहती है कि लड़कियां किसी भी मामले में लड़कों से पीछे नहीं है, उन्हें देश के लिए खेलते देख मुझे गर्व की अनुभूति होती है।
पीटी उषा का पूरा नाम पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा है।
उषा किसी ओलंपिक स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। वह 16 साल की उम्र में 1980 के मास्को खेलों में ओलंपिक में भाग लेने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय धावक हैं और उन्होंने ट्रैक और फील्ड में 1982 के एशियाई खेलों का पहला पदक जीता था ।
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