21 मई 2020 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 29वीं पुण्यतिथि है। ये देश के लिए हानि थी कि 21 मई 1991 को राजीव गांधी को देशवासियों ने वक्त से पहले ही खो दिया था। आपको जानना चाहिए कि श्रीपेंरबदूर में एक धमाके में राजीव गांधी की मौत हो गई थी। यहाँ हम आपको बताएंगे कि राजीव गांधी की हत्या की साज़िश को कब, कैसे, कहां और किसने अंजाम दिया गया था।
उस दौरान घने जंगलों के बीच एक आतंकी ठिकाने में प्रभाकरण बैठा था। और उसके साथ बैठे थे उसके चार साथी, जिनके नाम हैं- बेबी सुब्रह्मण्यम, मुथुराजा, मुरूगन और शिवरासन। वहाँ एक बड़ी साजिश बन रही थी। उस दौरान घंटों तनाव के बीच बैठक चली और प्रत्येक आदमी अपना पक्ष रख रहा था। बेहद गोपनीय इस बैठक में तनाव इतना था कि हवा भी बम की आवाज की तरह लग रही थी। उमस और गर्मी के के दिन थे उस बीच प्रभाकरण बहुत तेजी से सुन और बुन रहा था। आखिर साजिश पूरी हो गई। प्रभाकरण ने राजीव गांधी की मौत के प्लान पर मुहर लग गई थी। इस प्लान को पूरा करने की जिम्मेदारी चार लोगों को सौंपी गई थी।
बेबी सुब्रह्मण्यम को लिट्टे आइडियोलॉग और हमलावरों के लिए ठिकाने का जुगाड़ करना था।
मुथुराजा प्रभाकरण का खास था, जिसे हमलावरों के लिए संचार और पैसे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। मुरुगन जो एक विस्फोटक विशेषज्ञ था, उसे आतंक गुरू कहा जाता था, हमले के लिए जरूरी चीजों और पैसे का इंतजाम इसको करना था।
शिवरासन लिट्टे को जासूसी का काम सौंपा गया।जोकि विस्फोटक विशेषज्ञ था, और इसे राजीव गांधी की हत्या की पूरी जिम्मेदारी मिली थी।
ये दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी प्रभाकरण से राजीव की हत्या का फरमान लेने के बाद बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा 1991 की शुरूआत में चेन्नई पहुंचे थे। इनके जिम्मे था बेहद अहम और शुरूआती काम। इनमें बेबी और मुथुराज को चेन्नई में ऐसे लोग तैयार करने थे जो मकसद से अंजान होते हुए भी डेथ स्क्व्यॉड की मदद कर सके। मतलब खासतौर पर राजीव गांधी के हत्यारों के लिए हत्या से पहले रुकने का घर और हत्या के बाद छिपने का ठिकाना दे सकें।
जब बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा चेन्नई में सीधे शुभा न्यूज फोटो एजेंसी पहुंचे। तो एजेंसी का मालिक जोकि शुभा सुब्रह्मण्यम इलम समर्थक था। वो शुभा सुब्रह्मण्यम के पास दोनों की मदद का पैगाम बेबी और मुथुराजा के पहुंचने से पहले ही आ चुका था। उसको साजिश के लिए लोकल सपोर्ट मुहैया कराना था। यहां पहुंच कर बेबी और मुथुराजा ने अपने अपने टारगेट के मुताबिक अलग-अलग काम करना शुरू कर दिया था। बेबी सुब्रह्मण्यम ने सबसे पहले शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले भाग्यनाथन को अपने चंगुल में फंसाया। राजीव हत्याकांड में सजा भुगत रही नलिनी इसी भाग्यनाथन की बहन है जो उस वक्त एक प्रिंटिंग प्रेस में काम किया करती थी। भाग्यनाथन और नलिनी की मां नर्स बताई जाती थी। और उसे इसी समय अस्पताल से मिला घर खाली करना था। मुश्किल हालात में घिरे भाग्यनाथन और नलिनी को आतंकी बेबी ने पैसे और मदद के झांसे में लिया था।तभी बेबी ने एक प्रिंटिंग प्रेस भाग्यनाथन को सस्ते में बेच दिया। इससे हुआ ये कि परिवार सड़क पर आने से बच गया। जिसके बदले में नलिनी और भाग्यनाथन बेबी के प्यादे हो चुके थे। इस साजिश का पहला चरण था समर्थकों का नेटवर्क बनाना जो शातिर दिमागों में बंद साजिश को धीरे-धीरे अंजाम तक पहुंचाने में मददगार साबित हों।
जहाँ एक तरफ बेबी सुब्रह्मण्यम चेन्नई में रहने के सुरक्षित ठिकाने बना रहा था तो वहीं मुथुराजा बेहद शातिर तरीके से लोगों को अपनी क्रूर साजिश के लिए चुन रहा था। चेन्नई की शुभा न्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले इन शैतानों के लिए वरदान बन गए थे। यहीं से मुथुराजा ने दो फोटोग्राफर रविशंकरन और हरिबाबू चुने थे।
जोकि रविशंकरन और हरिबाबू दोनो शुभा न्यूज फोटोकॉपी एजेंसी में बतौर फोटोग्राफर काम करते थे। यह बात सही है कि हरिबाबू को नौकरी से निकाल दिया गया था। और मुथुराजा ने हरिबाबू को विज्ञानेश्वर एजेंसी में नौकरी दिलाई। श्रीलंका से बालन नाम के एक शख्स को बुला कर हरिबाबू का शागिर्द बनाया। इससे हरिबाबू को काफी पैसा मिलने लगा और उसका झुकाव मुथुराजा की तरफ बढ़ने लगा। मुथुराजा ने अहसान के बोझ तले दबे हरिबाबू को राजीव गांधी के खिलाफ खूब भड़काया कि अगर वो 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत कर सत्ता में आए तो तमिलों की और दुर्गति हो जाएगी।
बात यहाँ तक आ गई थी कि राजीव की हत्या के लिए साजिश की एक-एक ईंट जोड़ी जा रही थी। श्रीलंका में बैठे मुरूगन ने इस बीच जय कुमारन और रॉबर्ट पायस को चेन्नई भेजा गया। ये दोनों पुरूर के साविरी नगर एक्सटेंशन में रुके। यहां जयकुमारन का जीजा लिट्टे बम एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन 1990 से छिप कर रह रहा था। इन दोनों को श्रीलंका से चेन्नई भेजने का मकसद था अर्से से चुपचाप पड़े कंप्यूटर इंजीनियर और इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट अरीवेयू पेरूलीबालन को साजिश में शामिल करना ताकि वो हत्या का औजार बम बना सके। आगे चलकर पोरूर का यही घर राजीव गांधी हत्याकांड के प्लान का हेडक्वार्टर बन गया। और यहीं से चलकर पूरी साजिश श्रीपेरंबदूर तक पहुंची थी।
यहाँ शातिर सूत्रधार जुड़ने वाले हर शख्स के दिमाग में राजीव गांधी के खिलाफ भीषण नफरत भी पैदा कर रहा था। उन्हें पता था कि भयंकर नफरत के बिना भीषण घिनौनी साजिश अंजाम तक नहीं पहुंच पाएगी। जब बेबी और मुथुराजा ने अपने अपने चार लोग जोड़ लिए तो साजिश में मुरूगन की एंट्री हो गई।
कहा जाता है कि मुरुगन ने चेन्नई पहुंच कर बहुत रफ्तार में साजिश को अंजाम की ओर लाने की कोशिशें तेज कीं थी। मुरूगन के इशारे पर जयकुमारन और पायस। नलिनि-भाग्यनाथन-बेबी-मुथुराजा के ठिकाने पर पहुंच गए। राजीव गांधी विरोधी भावनाएं लोगों के दीमाग में भरी जाने लगीं। नलिनी राजीव गांधी के खिलाफ पूरी तरह तैयार हो गयी थी। नलिनि जिस प्रिटिंग प्रेस में नौकरी करती थी वहां छप रही एक किताब सैतानिक फोर्सेस ने उसके ब्रेनवॉश में अहम भूमिका निभाई। ब्रेनवॉश के साथ मुरूगन ने हत्यारों की नकली पहचान तैयार करने के लिए जयकुमारन और पायस की मदद से फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था।
मुरूगन, मुथुराजा और बेबी ने मिलकर चेन्नई में छिपने के तीन महफूज ठिकाने खोज लिए थे और अरिवू के तौर पर एक बम बनाने वाला तैयार था। राजीव के खिलाफ नफरत से भरे नलिनी पद्मा और भाग्यनाथन की ओट तैयार थी। शुभा सुब्रह्मण्यम जैसा आदमी मुहैया कराने वाला तैयार था। अब शिवरासन को संदेशा भेजा गया। मार्च की शुरूआत में वो समुद्र के रास्ते चेन्नई पहुंचा। वो पोरूर के इसी इलाके में पायस के घर में रुक गया।
पोरूर ही राजीव गांधी की हत्या की साजिश का कंट्रोलरूम बन चुका था। शिवरासन के पोरूर पहुंचते ही जाफना के जंगलों की साजिश का जाल पूरा हो गया। शिवरासन ने पूरी कमान अपने हाथ में ले ली थी। बेबी औऱ मुथुराज को श्रीलंका वापस भेज दिया गया। चेन्नई में नलनी,मुरूगन और भाग्यनाथन के साथ शिवरासन ने मानवबम खोजा पर वो नहीं मिला। शिवरासन ने अरीवेयू पेरुली बालन के बम की डिजायन को चेक किया, शिवरासन खुद अच्छा विस्फोटक एक्सपर्ट था। सारी तैयारी को मुकम्मल देख मानवबम के इतंजाम में शिवरासन फिर समुद्र के रास्ते जाफना वापस गया वहां वो प्रभाकरण से मिला। उसने प्रभाकरन को बताया कि भारत में मानवबम नहीं मिल रहा है। इसपर प्रभाकरन ने शिवरासन की चचेरी बहनों धनू और शुभा को उसके साथ भारत के लिए रवाना कर दिया था। जब धनू और शुभा को लेकर शिवरासन अप्रैल की शुरूआत में चेन्नई पहुंचा तो धनू और शुभा को वो नलिनी के घर ले गया। यहां मुरूगन पहले से मौजूद था। शिवरासन ने बेहद शातिर तरीके से पायस- जयकुमारन-बम डिजायनर अरिवू को इनसे अलग रखा और खुद पोरूर के ठिकाने में रहता रहा। वो समय-समय पर सबको सही कार्रवाई के निर्देश देता था। अब चेन्नई के तीन ठिकानों में राजीव गांधी हत्याकांड की साजिश चल रही थी। शिवरासन ने टारगेट का खुलासा किए बिना बम एक्सपर्ट अऱिवू से एक ऐसा बम बनाने को कहा जो महिला की कमर में बांधा जा सके।
अब शिवरासन के कहने पर अरिवू ने एक ऐसी बेल्ट डिजाइन की थी कि जिसमें छह आरडीएक्स भरे ग्रेनेड जमाए जा सकें। हर ग्रेनेड में अस्सी ग्राम C4 आरडीएक्स भरा गया। हर ग्रेनेड में दो मिलीमीटर के दो हजार आठ सौ स्पिलिंटर हों। सारे ग्रेनेड को सिल्वर तार की मदद से पैरलल जोड़ा गया। सर्किट को पूरा करने के लिए दो स्विच लगाए गए थे। इनमें से एक स्विच बम को तैयार करने के लिए और दूसरा उसमें धमाका करने के लिए था और पूरे बम को चार्ज देने के लिए 9 एमएम की बैटरी लगाई गई। ग्रेनेड में जमा किए गए स्प्रिंटर कम से कम विस्फोटक में 5000 मीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से बाहर निकलते यानी हर स्प्रिंटर एक गोली बन गया था। बम को इस तरह से डिजायन किया गया था कि आरडीएक्स चाहे जितना कम हो अगर धमाका हो तो टारगेट बच न सके और हुआ भी वही जैसा सोच था। यानी कहानी अब यहाँ थी कि शिवरासन के हाथ में बम भी था और बम को अंजाम तक पहुंचाने वाली मानवबम धनू भी। अब इतंजार था तो बस राजीव गांधी का पर इससे पहले वो अपनी साजिश को ठोक बजाकर देख लेना चाहता था।
उस दौरान जयललिता और राजीव की रैली में शिवरासन राजीव की सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचा था। यहां उसने राजीव की जनता से खुल कर मिलने और लचर सुरक्षा की खामियों को भांप लिया पर वनआइड जैक शिवरासन यहीं नहीं रुका था। इसी रैली के अनुभव को पक्का करने के लिए वो एक और सियासी रैली में मानवबम धनू को साथ लेकर पहुंचा था।
तभी की बात है कि 12 मई 1991 को शिवरासन-धनू ने पूर्व पीएम वीपी सिंह और डीएमके सुप्रीमो करूणानिधि की रैली में फाइनल रेकी की जिसमें तिरुवल्लूर के अरकोनम में हुई इस रैली में धनू वीपी सिंह के बेहद पास तक पहुंची उसने उनके पैर भी छुए लेकिन बम का बटन नहीं दबाया। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की रैली में सुरक्षा का स्तर राजीव की सुरक्षा के बराबर न सही तो कम भी नहीं था पर शिवरासन और धनू के शातिर इरादे कामयाब रहे। इससे शिवरासन के हौसले बुलंद हो गए और उसे अपना प्लान कामयाब होता दिख रहा था।
उस दौरान लोकसभा चुनाव का दौर था राजीव गांधी की मीटिंग 21 मई को श्रीपेरंबदूर में तय हुई और शिवरासन ने पलक झपकते ही तय कर लिया कि 21 को ही साजिश पूरी हो जाएगी। 20 की रात शिवरासन नलिनि के घर रैली के विज्ञापन वाला अखबार लेकर पहुंचता है और तय हो गया कि अब 21 को ही साजिश पूरी हो जाएगी। नलिनी के घर 20 मई की रात धनू ने पहली बार सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए चश्मा पहना था और शुभा ने धानू को बेल्ट पहना कर प्रैक्टिस की। इसके साथ ही श्रीपेरंबदूर में किस तरह साजिश को अंजाम तक पहुंचाना है इसकी पूरी तैयारी मुकम्मल कर ली गई थी। सभी पूरी तरह शांत और मकसद के लिए तैयार थे और 20 मई की रात को सभी ने साथ मिलकर फिल्म देखकर सो गए। जब सुबह हुई तो पांच लोग शिवरासन-धनू-शुभा-नलिनी और हरिबाबू साजिश को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार थे।
एक तरफ श्रीपेरंबदूर में रैली की गहमागहमी थी तो दूसरी तरफ राजीव गांधी के आने में न जाने क्यों देरी हो रही थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि राजीव किसी भी वक्त रैली के लिए पहुंच सकते हैं। पिछले छह महीने से पक रही साजिश अपने अंजाम के बेहद करीब थी। एक महिला सब इंस्पेक्टर ने उसे दूर रहने को कहा पर राजीव गांधी ने उसे रोकते हुए कहा कि सबको पास आने का मौका मिलना चाहिए। काश वो जानते कि वो जनता को नहीं मौत को पास बुला रहे थे। फिर क्या था उधर नलिनी ने उन्हें माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और बस उनसब की साजिश पूरी हो गई।
एक भाई और बहन के बीच का रिश्ता बिल्कुल अनोखा होता है और इसे शब्दों…
Essay on good manners: Good manners are a topic we encounter in our everyday lives.…
Corruption has plagued societies throughout history, undermining social progress, economic development, and the principles of…
Welcome, ladies and gentlemen, to this crucial discussion on one of the most critical issues…
Waste management plays a crucial role in maintaining a sustainable environment and promoting the well-being…
Best Car Insurance in India: Car insurance is an essential requirement for vehicle owners in…