इंसानियत की पहचान हैं जगजीत सिंह की ये गज़लें, यहाँ पढ़े…..


आईना सामने रखोगे तो याद आऊँगा, अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा ऐसी तमाम ग़ज़लों को अपनी आवाज़ से अमर कर चुके ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह के ग़ज़लों से, अगर कोई वाकिफ़ ना हो, तो मेरा माना है कि वो शख्स इंसान कहलाने लायक नहीं है. इनकी ग़ज़लों में वो सारे इंसानी भाव एक साथ मौजूद रहते हैं. जिसे हर एक इंसान होकर गुज़रता है. एक बार आप अगर सुनने बैठ जाए तो, फिर ये दुनिया बेगानी हो जाती है. आप किसी अलग दुनिया में अपने आप को पाते हैं. अगर आप इन भाव से गुज़र रहे होते हैं तो एक जगह रुकर मौन हो जाते हैं. और हलके होने लगते हैं. अगर नहीं भी गुज़रते तो कोई बात नहीं फिर भी दुनिया दूसरी लगाने ही लगाती है. इसके बाद अगर ना लगे तो भगवन ही मालिक है.

आइये ऐसी कुछ जगजीत सिंह के अमर ग़ज़लों को पढ़ते हैं… पढ़ते इसलिए क्योंकि पहले आप यहाँ इनको पढ़ेंगे तो इसके बाद सुनने बिना नहीं रह पायंगे यूट्यूब पर..समझे..
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है
अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है
ये वक्त जो तेरा है, ये वक्त जो मेरा
हर गाम पर पहरा है, फिर भी इसे खोना है
आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आंगन को
आकाश की चादर है धरती का बिछौना है
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो