भारत की कुल आबादी 135.26 करोड़ है। भारत विभाजन के समय कई लोगों ने पाकिस्तान की जगह भारत में शरण लेने का सोचा, ऐसे में भारत ने उन सभी शरणार्थियों को सिर्फ पनाह ही नहीं दी बल्कि अपने दिल में भी जगह दी। आज भारत में हर तरह के धर्म,जाति,लिंग के लोग एक साथ एक परिवार की तरह रहते हैं, इसीलिए भारत को विविधताओं का देश भी कहा जाता है।, भारत वसुधैव कुटुंबकम जैसे विचारों पर अमल करता है, जिसका अर्थ है धरती ही परिवार है यह पंक्ति भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी लिखी हुई है।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||
उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्। ।
अर्थ – यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे हृदय वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।
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विश्व शरणार्थी दिवस हर साल 20 जून को मनाया जाता है, शरणार्थियों की साहस, शक्ति और संकल्प के सम्मान में हर वर्ष बनाया जाता है, जो व्यक्ति हिंसा,संघर्ष, युद्ध जैसी घटनाओं से पीड़ित होकर अपने देश को छोड़ने तक को मजबूर हो जाते हैं उनके लिए यह दिवस मनाने की आश्यकता है क्योंंकि इस गंभीर समस्या पर विचार करने की ज़रूरत है इससे पहले कि शरणार्थियों स्थिति और दयनीय और भयावह हो जाए। विश्व शरणार्थी दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा 2000 में किया गया था और और इस दिन को मनाने का सबसे मुख्य कारण यह है कि लोगों के अंदर जागरूकता फैलाई जाए शरणार्थियों को लेकर तथा यह बताया जाए कि कोई भी व्यक्ति अमान्य नहीं होता चाहे वह किसी भी देश का हो। UNHCR इनके लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, यह पूरी कोशिश करता है की शरणार्थियों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े और इसका स्थाई समाधान निकालने की कोशिश करता है।
आज मोदी सरकार के द्वारा नागरिकता संशोधन कानून देश में लागू किया जा चुका है, कई सारे बुद्धिजीवी और प्रसिद्ध व्यक्ति इस कानून को पुराने सनातन धर्म से जोड़ रहे हैं उनका कहना है कि भारत शुरू से ही “शरणागत वत्सल ” की परंपरा मानता आया है, जिसमें हम शुरू से ही पीड़ित समाज को शरण देते आए है। भारत के नज़र में हर शरणार्थी अतिथि के समान है और भारतीय सभ्यता के अनुसार अतिथि को भगवान के समान माना जाता है, भारतीय संस्कृति में एक श्लोक भी है अतिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवो के समान है।
हिन्दुत्व,जो सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है,हिन्दू धर्म सारी दुनिया मे फैली है कि इसकी लंबे समय की निरंतर एवं अटूट परम्परा है इस धर्म को बनाने में आध्यात्मिक चिंतन,सांस्कृतिक परिवेश और सभ्यतापरक इतिहास का योगदान है। पारसी,यहूदी हिन्दुस्तानियों की एक विशेष श्रेणी भारत आए जिनका हिन्दुओं ने स्वागत किया,क्योंंकि वे अपने देश में सताए जाने की वजह से भारत चले आए और यहां शरण मांगी और इन्होंने अपनी इच्छा अनुसार हिन्दुओं के रीति रिवाजों को स्वीकार कर उनके अनुरूप रहना मान लिया था। पारसी इस बात के लिए आदर के पात्र है की उन्होंने अल्संख्यक के विशेषाधिकार कभी नहीं मांगे।
दूसरी धार्मिक आस्थाओं वाले लोगो ने,जिन्होंने अपने देश से धार्मिक हिंसा के कारण भागकर भारत में शरण ली, हिंदी परिवेश को सुरक्षित जगह और अपना घर समझा। पारसी और यहूदियों वे धार्मिक समूह है,जिन्होंने भारत में शरण ली और वे आज इसीलिए बच पाए है क्योंकि हिन्दुओं ने उनकी देखभाल की
यूएनएचसीआर (United Nations High Commissioner for Refugees) ने 2014 के अंत में अनुमान लगाया कि भारत में 109,000 तिब्बती शरणार्थी, 65,700 श्रीलंकाई, 14,300 रोहिंग्या, 10,400 अफगानी, 746 सोमाली और 918 दूसरे शरणार्थी हैं. ये वो हैं जो भारत में एजेंसी के साथ पंजीकृत हैं. इनके अलावा ऐसे भी लाखों शरणार्थी हैं, जिनका पंजीकरण नहीं हुआ है,भारत शुरु से ही उदार हृदय का है इसीलिए शरणार्थियों को जब कहीं शरण नहीं मिलता तो वो विशाल दिल वाले देश भारत आ जाते है।
शरणागत कहु जे तजहि, निज अनहित अनुमानि।
ते नर पांवर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि।।
अर्थात् यहां शरणागत को त्यागने वाले को अच्छा नहीं माना जाता है । ऐसी सभ्यता पूरे विश्व में भारत के अलावा कहीं देखने को नहीं मिलती,भारत अपने शरणार्थियों को केवल भौगोलिक रूप से स्थान नहीं देता बल्कि अपने दिल में भी भी स्थान देता है।
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