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हमें आज़ाद हुए 73 वर्ष होने वाला है। आज भी भारत के सामने एक बड़ा मुद्दा उसी रूप में विद्यमान है जैसे वह पहले था, वह समस्या है- बेरोजगारी। भारत विश्व भर में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने का दम भरता है पर यहाँ संगठित और असंगठित क्षेत्रों में बेरोजगारी बहुत है। NSSO के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी का आंकड़ा 6.1% है।
अगर हम आंकड़ों की बात ही करें तो यह आंकड़ा पिछले 45 वर्षों में रहे बेरोजगारी के आंकड़ों से ऊपर है। ऐसे में यह देश की सरकार तथा सरकारी नीतियों पर गंभीर सवाल उठाता है। बेरोजगारी आज हमारे सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। क्या सरकार इसे खत्म करने या कम करने में असफल रही है? इस असफलता के कारण क्या रहे हैं ? क्या हमारे पास आज इससे निपटने का मौका है ? क्या हम बेरोजगारी को मात दे पाएंगे?
अप्रैल 2019 में आई रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष में बेरोजगारी दर 6.1% थी। इस रिपोर्ट की कुछ और प्रमुख बातें अग्रलिखित हैं।
• इस रिपोर्ट के मुताबिक केरल में बेरोजगारी दर सबसे अधिक 11.4 % रही।
• गुजरात में बेरोजगारी दर सबसे तेज गति से बढ़ रही है।
• पश्चिम बंगाल और बिहार ही मात्र ऐसे राज्य हैं जहाँ महिलाओं की बेरोजगारी दर में कमी आई है।
• शहरी इलाकों की बात करें तो झारखंड में 31% बिहार में 28.4% और दिल्ली में 22.4% युवा लड़के बेरोजगार हैं।
यह तथ्य और भी चिंताजनक है।
इस रिपोर्ट में यह गौर करने योग्य बात है कि ये सर्वे 11 राज्यों में ही कराए गए। ऐसे में अन्य राज्यों में बेरोजगारी की दर अभी भी अज्ञात है। ये वो आंकड़े हैं जो एक जनरल सर्वे में प्राप्त हुए हैं। हालिया आंकड़ों की माने तो बेरोजगारी दर लगभग 7.2% से ऊपर है।
इस रिपोर्ट में बेरोजगारी के बड़े कारण के रूप में नोटबंदी को बताया गया है। रिपोर्ट की माने तो लगभग 6 लाख लोग इस दौरान अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे थे। अगर हम हमेशा रहने वाले कारणों की बात करें तो अगर हम हमेशा और कारणों की बात करें तो वही सब कारण हैं जैसे जनसंख्या अधिक होना भी बड़ी वजह मानी जाती हैं।
इसके अलावा भारत में शिक्षा की प्रतिशतता और स्तर भी वास्तव में कम है। चौथी औद्योगिक क्रांति से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर आएगा। अतः इस समय हमें देश में सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में और भी अधिक लोगों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार ये सब बहुत बेसिक कारण हैं जिन्हें नियंत्रित कर पाने में सरकार अभी फिलहाल असफल रही है।
पहली बात तो यह कि बेरोजगारी का मुद्दा आज का नहीं है और न ही आज इसपर बातें हो रही हैं। शुरुआत से ही विभिन्न सरकारें इसे दूर करने के वादे करती हैं और प्रयास भी करती हैं।
मनरेगा योजना
पुरानी योजनाओं में से एक है जिसके अंतर्गत अकुशल श्रमिकों को किसी भी वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी प्रदान करती है। इस योजना में कम से कम 33% महिलाएं लाभार्थी होनी चाहिए।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन : के अंतर्गत हर एक ग्रामीण परिवार की कम से कम एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में लाना। इस मिशन में जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में उग्रवादियों तथा नक्सलियों से प्रभावित युवाओं के लिए ‘रोशनी’ योजना शुरू की गई।
कौशल विकास कार्यक्रम :
के अंतर्गत 2022 तक 500 मिलियन कुशल कर्मियों को तैयार करने का लक्ष्य है।
मेक इन इंडिया :
प्रोग्राम के तहत औद्योगिक विकास को सुनिश्चित किया जाएगा जिससे कि देश में व्यापार, आवागमन और लाइसेंस आदि की व्यवस्था में सुधार हो।
दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम :के अंतर्गत अनेक पोर्टल और कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के रोजगार की गुणवत्ता में सुधार का लक्ष्य है।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम :के अंतर्गत निर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिए 10 लाख – 25 लाख तक का ऋण प्रदान करना।
प्रधानमंत्री युवा योजना : के अंतर्गत सरकार 2021 तक 7 लाख से अधिक प्रशिक्षुओं को उद्यमशीलता प्रशिक्षण तथा शिक्षा उपलब्ध कराएगी।
हमने बेरोजगारी की बढ़ती संख्याओं और आंकड़ों के बारे में जाना साथ ही यह भी सरकार द्वारा इस दूर करने के लिए क्या उपाय अपनाए गए। हाल ही में कोरोना महामारी के कारण बेरोजगारी प्रतिशतता बढ़ने का अनुमान है ऐसे में हमारे देश के प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर’ भारत की शुरुआत की। हाल ही में इस कार्यक्रम के अंतर्गत एक पोर्टल का निर्माण किया गया जिसके माध्यम से कामगारों को काम तथा कंपनियों आदि को मजदूर आसानी से मिल जाएंगे। इस योजना में आगे और भी कार्यक्रम जुड़ने की आशा है। ऐसे में हमें आगे यह विश्वास है कि बेरोजगारी की जो दरें इतनी अधिक बढ़ गई हैं उन्हें नीचे लाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करेगी।
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