भारतीय संस्कृति में संस्कार
संस्कार शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक कृ-धातु से घञ् प्रत्यय करके निष्पन्न होता है।
“दुर्लभं भारते जन्म मानुष्यं तत्र दुर्लभम्।।”
सनातन धर्म में संस्कारों का विशेष महत्व है। इनका उद्देश्य शरीर, मन और मस्तिष्क की शुद्धि
और उनको बलवान करना है जिससे मनुष्य समाज में अपनी भूमिका आदर्श रूप में निभा सके।
संस्कार का अर्थ होता है-परिमार्जन-शुद्धीकरण। हमारे कार्य-व्यवहार, आचरण के पीछे हमारे संस्कार
ही तो होते हैं। ये संस्कार हमें समाज का पूर्ण सदस्य बनाते हैं।
भारत विश्वगुरु के पटल पर आसीन था है और रहेगा इसका मुख्य कारण भारत की संस्कृति सभ्यता परंपरा वैदिक
ज्ञान विज्ञान की अनुपम संगम एक मुख्य कारण रहा।
“भारतीय संस्कृतिः संस्कृताश्रिताः”
सोलह संस्कारों का उल्लेख गृह्य सूत्र में मिलता है। यह सोलह संस्कार निम्नलिखित हैं-
- गर्भाधान संस्कार,
- पुंसवन संस्कार,
- सीमंतोन्नयन संस्कार,
- जातकर्म संस्कार
- नामकरण संस्कार,
- निष्क्रमण संस्कार
- अन्नप्राशन संस्कार,
- मुंडन संस्कार,
- विद्यारंभ संस्कार,
- कर्णवेध संस्कार,
- उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार,
- वेदांरभ संस्कार,
- केशांत संस्कार,
- समावर्तन संस्कार,
- विवाह संस्कार,
- अंत्येष्टि संस्कार।
जन्म पूर्व चार संस्कार होते हैं
❖ गर्भाधान संस्कार
❖ पुंसवन संस्कार
❖ सीमंतोन्नयन संस्कार
❖ जातकर्म संस्कार
भारतीय संस्कृति सनातन परंपरा चार वर्णों में क्रमशः
● ब्राह्मण
● क्षत्रिय
● वैश्य
● शूद्र
प्रत्येक वर्ण चार आश्रमों में विभक्त है
⮚ ब्रह्मचर्य
⮚ गृहस्थ
⮚ वानप्रस्थ
⮚ संन्यास
भार्या त्रीवर्ग करणं शुभ शील युक्ता शीलं शुभं भवति लग्न वशेन तस्याः।
तस्माद् विवाह समयः परि चिन्त्यते हि तत् निघ्न ता मूपगताः सुत शील धर्माः।।
अर्थात्- भार्या तीन करण धर्म अर्थ काम की प्राप्ति में सहायक होती है।
उसके शील गुण सुशील गुण विवाह लग्न मुहूर्त के अधीन होता है अतः विवाह से
पूर्व ही विवाह लग्न के शुभाशुभ मुहूर्त का विचार करना चाहिए
भारतीय जीवन संस्कृति परंपरा दर्शन संस्कार विचार इत्यादि का मूल उद्देश्य आत्यन्तिक दुःख
निवृत्ती है। एवम् मोक्ष प्राप्ति है।