आत्मनिर्भर भारत :राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि स्वदेशी भारत की स्वतंत्रता का एकमात्र उपाय है। स्पष्ट तौर पर देखें तो आत्मनिर्भर भारत से ही देश का स्वर्णिम भविष्य तय कर सकती है। लेकिन प्रश्न यह है कि आत्मनिर्भर भारत की यह नींव तैयार कैसे की जाएगी? क्योंकि जिस देश में लोग सुबह से लेकर शाम तक तकनीक के साथ जीवनयापन कर रहे हो तो वहां स्वदेशी का इस्तेमाल उपहास सा प्रतीत होता है। परंतु अब समय आ गया है कि गले में फंसी इस हड्डी को निकाल फेंकने का जोकि तभी संभव है जब हम चाइना के सामान का बहिष्कार करना शुरू कर देंगे।
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आप सोच रहे होंगे कि क्या यह किसी देश के साथ विद्रोह करने जैसा नहीं है जोकि हमारे नैतिक मूल्यों के खिलाफ है, लेकिन जिस देश की सत्ता अब तक अपने नागरिकों के मानवाधिकारों से उनका परिचय नहीं करवा पाई हो, जिसे हर वक्त यही डर लगता हो कि कहीं उसके नागरिक अपने अधिकारों के चलते सत्ता का तख्तापलट न कर दे।
वहीं जो देश तानाशाही के चलते हर देश को अपना गुलाम बनाने की ख्वाहिश रखता हो, जहां मंदिरों और मस्जिदों जैसे पवित्र स्थलों को तोड़ा गया हो, उसके साथ कैसा व्यवहार……..आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 4 जून 1989 में चीन की तानाशाही सरकार ने अपने यहां लोकतंत्र के सर्मथकों के ऊपर टैंक चढ़वा दिया था। ऐसे में चीन के युवा हमेशा से अपने देश में लोकतंत्र का सपना देखते आए है। इसलिए हमें यह समझना होगा कि हमारी लड़ाई चीनी भाईयों से नहीं बल्कि चीन की तानाशाही सरकार से है।
2020 की शुरूआत से ही दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में है जो सूत्रों के मुताबिक चीन से ही दुनियाभर में फैला है, वहीं इससे पहले भी सार्स जैसा खतरनाक वायरस भी चीन की सरहदों से ही दुनियाभर में पहुंचा, लेकिन हमेशा की तरह इस वक्त भी चीन खुद को बचाए हुए है और सभी देशों के साथ व्यापार को रफ्तार देने की कोशिशों में लगा हुआ है।
बात करें भारत और चीन के संबंधों की तो चीन ने 1962 में ही भारत में घुसपैठ की कोशिश की थी और वर्तमान में भी वह नहीं चाहता है कि भारत लद्दाख (एलएसी) से सटे बॉर्डर पर अपने इन्फास्ट्रक्चर को मजबूत करें जिसके लिए उसने बॉर्डर पर लड़ाई जारी रखी हुई है। लेकिन फिर भी हम आज उससे अपने व्यापारिक संबंध नहीं तोड़ना चाहते है। क्योंकि पूरी दुनिया में एक वहीं ऐसा देश है जो कम निवेश में तकनीक के नए-नए प्रयोगों से दुनिया की जंग को हमेशा से जीतता आया है।
इसलिए कोरोना में चीन की हालत भी बिगड़ गई है, वहां बेतहाशा बेरोजगारी के चलते इस वक्त गृहयुद्ध के हालात है। ऐसे में यही समय भारत और अन्य देशों को चीन के सामान का बॉयकॉट करने का उपयुक्त समय साबित हो सकता है।
दूसरी ओर वर्तमान में भारत और चीन के बीच व्यापारिक साझेदारी 4.6 करोड़ की है। तो ऐसे में चाइऩा के सामान का बहिष्कार करना चुनौती बन जाता है। आपको बता दें कि भारत निर्य़ात से अधिक माल तो चीन से आयात करता है, चाहे वह इलेक्ट्रानिक सामान हो या कृषि से जुड़े आर्गनिक केमिकल्स या फिर फटिलाइजर्स। इतना हीं नहीं सौंदर्य़ प्रसाधन, दवाइयों, रक्षा उपकरण यहां तक की वाहनों के छोटे-छोटे पुर्जों के लिए भी हम पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो चले है।
जिसके लिए भारत के औद्योगिक प्रगति की धीमी गति कारक है। ऐसे में मात्र दीवाली पर चाइनीज झालरें न खरीदकर हम #Made in china का टैग देश से नहीं मिटा सकते इसके लिए जरूरी है सरकार और जनता दोनों ही चीन के सामान का विकल्प तलाश करें। जिसकी शुरुआत आज से अभी से कर देनी चाहिए, अन्यथा जापान और दक्षिण कोरिया के बाद चाइना को सबसे बड़ा बाजार बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकती।
भारतीय स्वतंत्रता के नायक अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय और महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए स्वदेशी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य जनता द्वारा विदेशी चीजों का बहिष्कार करके देशी चीजों का इस्तेमाल करना था जोकि उस वक्त के सफल आंदोलनों में से एक था। जिससे प्रेरित होकर वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का दृढ़ सकंल्प लिया है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह संभव कैसे है तो इसका सीधा सा उत्तर है कि सरकार को देशी सामानों से लोगों को जोड़ने के लिए जनजागरूक अभियान चलाने होंगे। साथ ही कुटीर और लघु उद्योगों में खुलकर निवेश करना होगा। देशी चीजों का निर्माण करने के लिए फैक्ट्रियों और लघु व्यापारियों को कम ब्याज पर लोन की सुविधा मुहैया करानी होगी जिसके लिए देश के बड़े-बड़े व्यापारियों के सहयोग से रणनीति तैयार करनी होगी। इसके अलावा तकनीकी और यांत्रिकी आत्मनिर्भरता के लिए इसकी शिक्षा और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा।
जिस तरह से अभी चीन के सोशल मीडिया एप टिकटॉक के बहिष्कार को लेकर भारतीयों ने एकजुट होकर #TikTokBanned अभियान चलाया था और जिसका तुरंत परिणाम भी सामने आ गया था कि टिकटॉक की रेंटिग में भारी गिरावट आई थी। ठीक उसी प्रकार से सरकार के प्रयासों के अलावा हम #Made in china के सामान के बहिष्कार को लेकर एकजुटता का परिचय दे सकते है।
इसके लिए आवश्यकता है तो बस हमारी उस सोच की जिसमें हमें यह नहीं लगता कि हमारे अकेले के करने से क्या होगा लेकिन जैसे बूंद-बूंद से सागर भरता है तो वैसे ही हम अपने-अपने तरीकों से चाइना के सामान का बॉयकॉट कर सकते है। हमें देखना होगा हमारे आसपास कितनी चीजें ऐसी है जो #Made in china है और हम उनका क्या विकल्प ढूंढ सकते है।
क्योंकि नामुमकिन तो कुछ भी नहीं आज से पहले भी जिन्दगी चल ही रही थी और आगे भी चलेगी, बस जरूरत है तो यह समझने की देश ने तो हमारे लिए बहुत कुछ किया है लेकिन अब कुछ करने की बारी हमारी है। तो क्यों न सोचना शुरू कर दें कि कैसे होगा आसपास मौजूद चाइना चीजों का बहिष्कार……
एसईसीओएमएल( स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख) के संस्थापक सोनम वांगचुक जोकि एक आविष्कारक और शिक्षा सुधारवादी भी है उन्होंने हाल ही में एक वीडियो के माध्यम से देश की जनता से चाइना के सामान का बॉयकॉट करने की अपील की है।
वीडियो के द्वारा उन्होंने देश की जनता को जागो ग्राहक जागो का संदेश दिया और यह समझाया कि हमें बुलेट की ताकत से नहीं बल्कि अपने वॉलेट की ताकत से चीन को हराना होगा। योग गुरू रामदेव बाबा ने भी सोनम वांगचुक के स्वदेशी अभियान को अपना समर्थन दिया है। आपको बता दें बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म 3 इडियट्स सोनल वांगचुक पर ही दर्शायी गई थी।
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