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कश्मीरी पंडित : आखिर इस्लाम खतरे में है कहकर कब तक किया जाता रहेगा कश्मीरी पंडितों का नरसंहार?

अगर कश्मीर में रहना होगा, अल्लाहु अकबर कहना होगा।

कश्मीरी पंडित :जम्मू-कश्मीर के अंनतनाग जिले के कश्मीरी संरपच अजय पंडिता जोकि सन् 1996 में ही वापस कश्मीर लौटे थे। उनको आखिर किस बात की सजा मिली, इस बात कि वह कश्मीर के बागों में सेब और बादाम को पुनर्जीवित करने में लगे थे। या फिर इस बात कि वह सर्वसम्मति से अपनी नेतृत्व क्षमता के आधार पर सरपंच चुने गए थे। शायद उनकी हत्या के पीछे की कहानी साल 1990 से जुड़ी है। जब कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को बाहर निकालने का फरमान जारी किया गया था।

हालांकि अजय पंडिता की हत्या की जिम्मेदारी आंतकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन ने ली है। जिन्होंने पिछले दिनों अपने 14 साथियों की मौत का बदला कश्मीरी पंडित को मारकर लिया है। जिसपर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई के आदेश तो दिए है, लेकिन क्या यह घटनाएं इतिहास की दृष्टि से पुरानी है और न जाने कितने ही लोग इस तरह की निर्मम हत्याओं के शिकार हुए और आज तक इंसाफ की आस लगाए बैठे है। परंतु सरकारें बदली, साल बदले लेकिन कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की घटनाएं ज्यों की त्यों बनी हुई है।

हम क्या चाहते है आजादी……..आजादी का मतलब क्या इलाहा, इल्लाह।

यह जंग तो आजादी के बाद छिड़ी थी

Kashmiri Pandits
कश्मीरी पंडित

कश्मीर को लेकर तो भारत पाकिस्तान आजादी के समय से ही लड़ते आ रहे है। लेकिन कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के पीछे एक हद तक रूस और अफगानिस्तान के बीच होने वाली लड़ाई जिम्मेदार थी। क्योंकि रूस के सैनिकों को मारने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के वहशी औऱ अपराधी किस्म के लोगों को मुजाहिदीन बनाना शुरू कर दिया। जिसकी ट्रेनिंग पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए कश्मीर में हुआ करती थी।

अब कहते है ना जब अपराधी घर पर ही तैयार हो रहा हो तो उसके बुरे कर्मों का फल भी घर के लोगों को ही भुगतना पड़ता है। जिसके चलते पाकिस्तान के शासक जनरल जिया ने कश्मीर की जमीं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। पुलिस की कार्रवाई में निर्दोष मुलमानों पर भी आन पड़ी, जिसका फायदा धर्म के ठेकेदारों ने उठाया और कश्मीरी पंडितों को मुसलमानों का दुश्मन करार दिया गया।

उस वक्त तो लोगों की एकता भी जवाब दे गई जब सरेआम कत्ल किए जाने लगे और कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर करने के फरमान अखबारों के माध्यम से जारी होने लगे। होना क्या था कि इसी बीच सन् 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने एक पुराने मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाने का एलान कर दिया। कश्मीरी पंडितों ने जिसका विरोध किया तो कट्टरपंथियों ने इसे इस्लाम खतरे में है कहकर, कश्मीरी पंडितों का खुलेआम नरसंहार करना प्रारंभ कर दिया।

उस वक्त कश्मीरी पंडितों की हत्याएं औऱ उनकी औरतों के साथ बलात्कार बहुत आम हुआ करता था। भाजपा के नेता टीका लाल टपलू, टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल और रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू समेत अनगिनत लोगों के हत्यारों को आज तक इंसाफ न मिल पाया है।

कोई नयी बात नहीं है कश्मीरी पंडितों के शोषण की कहानी

Kashmiri Pandits
कश्मीरी पंडित

इतना ही नहीं 1990 के बाद 1997, 1998 और 2003 में जहां कश्मीर की घाटियों से मुस्लिम और कश्मीरी लोगों की इश्क की कहानियां सुनने को मिलती है, तो वहीं इसी दौर में कई कश्मीरियों की हत्याओं के दर्दनाक किस्से भी सामने आते है। आंकड़ों के मुताबिक करीब 4 लाख कश्मीरी पंडित विस्थापितों की तरह देश के अन्य राज्यों में रह रहे है। ऐसे में जो कश्मीरी पंडित अभी अन्य राज्यों में जीवन बसर कर रहे है या जिनके परिवार नरसंहार की घटना का शिकार हो गए है, उनको अपना हक कब मिल पाएगा क्योंकि सरकारें कश्मीरी पंडितों के पुर्नस्थापन के लिए योजनाएं तो ला रही हैं लेकिन क्या वह उन्हें उनकी जमीं पर वापस पहुंचा पाएंगी।

कश्मीरी पंडितों का दर्द अब नासूर बन चुका है, आए दिन होने वाली घटनाएं इस दर्द को बढ़ा रही है और पूछ रही हैं कि क्या बहुसंख्यक आबादी को ही जीने का अधिकार है। जिनको उनकी धरती से बेइज्जत करके निकला गया क्या वह दर दर की ठोकरें खाने के लिए ही जीवित है?  

Kashmiri Pandits
कश्मीरी पंडित

आखिर कौन है ये कश्मीरी पंडित

भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में मुस्लिमों के प्रभाव से पहले कश्मीरी पंडित ही घाटी में रहा करते थे, जोकि मूलतया कश्मीरी हिंदू है। लेकिन इस्लाम के बढ़ते प्रभाव के चलते काफी लोगों ने इस्लाम को अपना लिया। बाकी कश्मीर से निकाले जाने के बाद यह कश्मीरी पंडित देश के अलग-अलग राज्यों में विस्थापितों की भांति जीवनयापन कर रहे हैं।  

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Anshika Johari

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