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रक्षाबन्धन का त्योहार , इसका इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

यूं तो किसी भी रिश्ते को मनाने का कोई खास दिन नहीं होता लेकिन पौराणिक, ऐतिहासिक कथाओं और उनकी मान्यताओं को समझ कर हम अपने पिछले इतिहास को जानने के लिए और परंपराओं को बनाए रखने के लिए हम हर त्यौहार को उत्साह से मनाते हैं। उन्हीं में से एक त्यौहार है रक्षाबंधन- जो हिंदुओं का महत्व त्योहार भी है । यह त्यौहार हर  साल सावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को राखी या रक्षा सूत्र कलाई पर बांध कर उनसे यह वचन मांग की है कि भाई अपनी बहनों के हर परिस्थिति में रक्षा करेंगे। रक्षा सूत्र को बांधने का मतलब यही है कि बहनें अपने भाइयों से वजन लेकर उन वचनों की गांठ बांध रही है और अपने रिश्ते के अटूट रहने की कामना कर रही है। रक्षाबंधन शब्द का तात्पर्य यही है कि रक्षा मतलब सुरक्षा और  बंधन यानी  बाध्य अर्थात बहने अपने भाई को ऐसे बंधन में बांधती है कि भाइयों को उस रक्षा सूत्र की महत्वता बनाए रखनी होगी।

हिंदू ब्राह्मण परिवारों में पुत्री को अपने पिता, नंद को अपनी भाभी को भी राखी बांधने की परंपरा  देखी जाती है।

अब जैसे-जैसे जमाना आधुनिक होने लगा है हर त्यौहार को एक व्यापार जैसे बनाया जाने लगा है। अब के समय में हम हर चीज में आधुनिकता देख सकते हैं। पहले रक्षाबंधन में बहने राखी या रक्षा सूत्र के नाम पर एक लाल रेशमी धागा बांध दिया करती थी लेकिन अब बाजार में राखियों का मोल चलता है जितनी फैंसी राखी उतने ही उसके ऊंचे दाम होते हैं। इस दिन बाजारों में हर जगह बस राखियां और मिठाइयों की दुकान की भीड़ होती है। समय में बदलाव की वजह से हर परंपरा में कुछ उन्नयन तो जरूर दिखता है ठीक वैसे ही अब रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहनों को महंगे महंगे तोहफे भी देते हैं। रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के बीच असीम प्रेम को दर्शाता है और विश्वास कायम करता है।

यह त्यौहार भाई – बहन के समक्ष प्रेम को दर्शाता है। अभी नहीं बल्कि यह त्यौहार देव काल से मनाया जा रहा है|

ओम येन बद्धो बलीराजा दानवेंद्रो महाबला |

तेन त्वामपी बध्नामि रक्षे चल मा चल ||

अर्थात – जिस रक्षा सूत्र में महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था उसी वक्त सूत्र में मत में बांधता हूं यह रक्षे तुम अडिग रहना, अपनी रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना।

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युगों पुराना है रक्षाबंधन का त्योहार

जैसे हर त्योहारों के पीछे कुछ ना कुछ इतिहास रहता है ठीक वैसे ही रक्षाबंधन के पीछे भी काफी पौराणिक इतिहास छुपा है। पुराणों में तमाम घटनाओं का जिक्र किया गया है जिससे हम रक्षाबंधन के महत्व को समझ सकते हैं।

सुभद्रा और कृष्ण

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कृष्णा और सुभद्रा

वेसे तो सुभद्रा बलराम की बहन थी। वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्रा का जन्म हुआ था, लेकिन श्रीकृष्ण भी सुभद्रा को अपनी बहन से कम नहीं मानते थे।जब वासुदेव और देवकी एक साथ एक समय मे कंस के कारागार में बंदी थे उस समय रोहिणी नंद के घर पर रहती थी। कृष्ण, बलराम और सुभद्रा में अटूट प्रेम था जिससे हम इन तीनो के बीच घनिष्ठता देखते हैं।

कृष्णा और द्रोपदी 

हमें अपने पौराणिक इतिहास में भी त्योहारों का अस्तित्व मिलता है  ठीक वैसे ही राखी को लेकर महाभारत में भी यह कथा का जिक्र है। महाभारत के समय में जब श्री कृष्ण शिशुपाल के वध के लिए उद्धत  थे तब उनकी उंगली कट गई थी। जब द्रोपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली से खून निकलते हुए देखा तो वह घबरा गई और तुरंत उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया  तत्पश्चात खून का निकलना बंद हो गया।बदले में श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि भविष्य में संकट पड़ने पर वे द्रौपदी को अवश्य बचाएंगे, वह उस आंचल के एक- एक सूत का कर्ज उतारेंगे। फलस्वरूप उन्होंने अपने वचन को निभाया द्रौपदी के चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को संकट से मुक्त कराया। इस घटना के बाद लोगों को भाई बहन के समक्ष प्यार और भावना का अर्थ ठीक तरह से समझ आया।

देवकी और कंस

कंस राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती के पुत्र थे।वैसे तो कंस भी हर भाई की तरह अपनी बहन देवकी से अनन्त प्रेम करते थे लेकिन जब कंस अपनी बहन को शादी के बाद रथ में बिठाकर विदा कर रहे थे तब एक ब्राह्मण देबता द्वारा यह आकाशवाणी सुना गया कि देवकी का आठवां पुत्र कंस के मृत्यु का कारण बनेगा।जिससे कि कंस को देवकी से भय होने लगा और उसने देवकी और वासुदेव को काराग्रह में बंद कर दिया। कंस ने अपने मरने के डर से देवकी के छह पुत्रो की मृत्यु कर दी।परंतु अन्ततः देवकी के आठवे पुत्र कृष्ण  द्वारा कंस का वध हुआ।

कृपा और कृपी

ऋषि शरद्वान महर्षि गौतम के पुत्र थे। जिनका जन्म शरद्वान बाणों के साथ हुआ था।इसी कारण उनकी रुचि बाणों में ज्यादा थी और अन्य विद्याओं में वह उतने निपूण नही थे। उन्होंने अपनी तपस्या से सारे अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।देवराज इंद्र शरद्वान की तपस्या और अस्त्र सश्त्रो का ज्ञान देख कर चकित थे।और उनकी तपस्या भंग करने के लिए देव इंद्र ने स्वर्ग से एक अप्सरा को भेजा और उन्होंने शरद्वान को लोभित करने के लिए कहा। अप्सरा को देख कर शरद्वान ने अपने आपको काबू कर खुद पर नियंत्रण किया लेकिन उनका शुक्रपात हो गया।वह उसी समय आश्रम को छोड़ वहां से चले गए।

शुक्रपात से दो सन्तानो की उत्पत्ति हुई। जिसमे एक कन्या और एक बालक थे।तभी ही वहां से हस्तीनापुर के राजा शान्तनु वहां से जा रहे थे तो उनकी नज़र उन दोनों बच्चो पे पड़ी और उन्होंने उन दोनों को ईश्वर का आशीर्वाद  समझ कर दोनो को अपने महल ले गए और उन्होंने बालक का नाम कृपा और बालिका का नाम कृपी रखा।कृपा भी अपने पिता शरद्वान के समान धनुर्विद्या में बहुत पारंगत थे। बड़े होने के बाद कृपा को भीष्म पितामह द्वारा कौरवों और पांडवों की शिक्षा के लिए नियुक्त किया गया। इस प्रकार वह आचार्य बने और कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुए। प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त होने के पश्चात पांडवों और कौरवों को अस्त्रों और शस्त्रों की विशेष शिक्षा देने के लिए द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया। जिनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हुआ।

रावण और शूर्पणखा

जैसे कि हम इस बात से परीचित ही है कि रामयण काल के अति प्रतापि रावण और शूर्पणखा दोनो ही राक्षसी प्रवृत्ति के थे और इन दोनो में काफी समानताएं थी। दोनो ही हिंसा का सहारा थे, मायावी राक्षस तो थे ही साथ ही साथ बलवान भी थे। दोनो एक दूसरे पर प्राण न्यौछावर करने से पीछे नही हटते थे। रावण के पास बहुत सी शक्तियां थी जिसके कारण उसे कभी हार का सामना नही करना पड़ा। उन दिनो रावण को दक्षिण राज्य का अपराजित, अति-शक्तिशाली, और बलवानो का देवता माना जाता था। तो वहीं दूसरी ओर उसकी प्रिय बहन शूर्पणखा भेष बदलने में पारंगत थी। रावण और शूर्पणखा की माता का नाम कैकसी था जो एक राक्षशनी थी। जबकी उनके पिता ऋषी विश्रवा थे। जिसके कारण दोनों पर बुराई का अधिक प्रभाव परा बजाय की अच्छाई का बहुत ही कम।

हालांकि रावण बेहद ज्ञानी, विद्वान भी था परंतु दुराचारी और क्रुर प्रविर्ती का राजा भी था। एक दिन राजा दशरथ के पुत्र और राम के छोटे भाई लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान शूर्पणखा द्वारा भाई के अपमान किये जाने पर उसकी नाक काटी थी , यथापूर्व शूर्पणखा ने रावण से अपने अपमान की ज्वलन में सीता हरण करवाया। जिसके कारण राम और रावण के बीच महायुद्ध हुआ और रावण का परशुराम श्री राम के हाथ रावण का वध हुआ।

पुराने काल से चले आ रहे कथाओं से हम यह समझ सकते हैं कि भाई बहन का रिश्ता कितना महत्वपूर्ण है। जैसे हर रिश्ते में अच्छाई बुराई दोनों होती है वैसे इन कथाओं से भी हमें यह जान सकते है कि हर रिश्ते का अपना महत्व होता है।

अलग अलग प्रदेशों में हैं  श्रावण मास का विभिन्न महत्व

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भाई-बहन का प्यार और रक्षाबन्धन का त्योहार

“उत्तरांचल में इस महीने को श्रावणी कहते हैं।इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह त्यौहार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।”

“वहीं चारों धाम की अत्यंत पवित्र और अति विख्यात धार्मिक यात्रा में से अमरनाथ की यात्रा इस श्रावण महीने के पहले पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबन्धन के दिन पूर्ण होती है।इसी माह में कावड़िया कावड़ लेकर बाबा के धाम जाते हैं। प्रख्यात है कि अमरनाथ का हिमानी शिवलिंग भी इसी दिन अपने पूर्ण आकर में आता है।अमरनाथ धाम में सावन के महीने में हर साल बहुत आकर्षक मेले का आयोजन होता है।”

“महाराष्ट्र में रक्षाबन्धन के दिन लोग समुद्र या किसी नदी के घाट पर जाकर अपने जनेऊ बदलकर और वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए जल की पूजा करते हैं।और प्रसाद में नारियल का भोग भी लगाए जाने का रिवाज है।”

“राजस्थान में चूड़ा राखी या लुम्बा बांधने की परंपरा है।वहां के लोग इस दिन अपनी आस्था से भगवान को फुदने वाली राखी बांधते हैं। इस दिन लड़कियां अपनी भाभीयों को चूड़ाराखी बांधती है।जोधपुर में इस दिन रक्षाबन्धन मनाने के साथ ही लोग अपने दरवाजे या मिनकनाड़ी पर गाय के गोबर,मिट्टी और भस्मी से नहाकर अपने आप को शुद्ध करते हैं।इसके बाद लोग पूजा के लिए गणपति ,दुर्गा,सप्तऋषियों के दर्भ की चट बनाकर वहां पूजा तर्पण करके उनका ऋण चुकाते हैं।हर क्षेत्र में अलग अलग प्रथाएं है कुछ लोग राखी को कच्चे दूध में अभिमन्त्रित करके पहन कर उसके बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।”

रक्षाबंधन और आधुनिक तकनीकों का संबंध.

पहले के जमाने मे लोग एक साथ रहा करते थे और सारे त्योहारों को एक साथ मनाते थे लेकिन जैसे जैसे शहरीकरण में विकास हुआ और लोग गांवो को छोड़ शहर की ओर बढ़ते रहे ।लोगो मे सामान्यतः काफी दूरी बढ़ती गई और इसी तरह तकनीकी युग और सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव भी त्योहारों पर भी पड़ा है।बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं और वह अपने परिवार के लोगों से बहुत दूर है जो लोग भारत मे हैं।इंटरनेट के आने के बाद बहुत की व्यवस्थाएं सरल हुई हैं जैसे अब लोग कूरियर आसानी से कम समय मे भेज सकते हैं और ई कॉमर्स के माध्यम से लोग आजकल राखियो को ऑनलाइन आर्डर करके अपने सगे संबंधियों को भेज देते हैं और  इंटरनेट के ज़रिए वीडियो चैट पर एक साथ मनाने का प्रयास करते हैं।

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