जहां सजोएं स्वप्न सलौने उस धरती का हाल सुनो,
जगत पुकारे पानी-पानी घर-घर घोर अकाल सुनो।
बिन जंगलों के कैसे होगा विकास सुनो।
वन महोत्सव :प्रारंभ से ही मनुष्य के जीवन में प्राकृतिक गैसों, पर्य़ावरण, पेड़-पौधे, वनों और जीव जन्तुओं आदि की महत्ता बनी हुई है। ऐसे में मानव सभ्यता की शुरुआत से ही धरती पर विभिन्न तरह के प्राकृतिक बदलावों को भी देखा जाता रहा है। लेकिन जब प्रकृति प्रदत्त किसी चीज को मनुष्य द्वारा नुकसान पहुंचाया जाता है तो उसका सबसे पहले प्रभाव मानव जीवन पर ही पड़ता है।
अब चाहे बात करें ब्राजील में स्थित अमेजन जंगलों में लगने वाली आग की या जलवायु परिवर्तन की। दोनों ही परिस्थितियों में मानव जीवन को खतरा पहुंचा है, ऐसे में जरूरी है कि हम अभी से प्राकृतिक चीजों के प्रति करूणा का भाव अपनाएं। अन्यथा ऐसा न हो कि मानव जीवन का अस्तित्व ही खत्म होने की कगार पर आ जाए। तो आइए इस वन महोत्सव पर प्रण लें कि जिस धरती पर हमने सजोएं स्वप्न सलौने, उन्हें हम साकार कर पाएं।
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भारत में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1950 में भारत के कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव की शुरुआत की थी। जिसे पेड़ों का त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। हर साल भारत सरकार जुलाई के प्रथम सप्ताह में सम्पूर्ण देश में विस्तृत तरीके से वन महोत्सव का आयोजन करती है। इस दौरान स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी व प्राइवेट संस्थानों द्वारा पौधारोपण किया जाता है। साथ ही वनों की महत्ता के प्रति सामान्य लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाते है।
तडागकृत् वृक्षरोपी इष्टयज्ञश्च यो द्विजः।
एते स्वर्गे महीयन्ते ये चान्ये सत्यवादिनः॥
अर्थात् तालाब बनवाने, वृक्षारोपण करने और यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है, इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्व मिलता है।
पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान्।
वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च॥
फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को संतुष्टि प्रदान करते हैं। साथ ही वृक्षारोपण करने वाले व्यक्ति का परलोक में तारण भी वृक्ष ही करते हैं।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों, वनों, पौधों और पत्तों को भगवान मानकर पूजा जाता रहा है। साथ ही हमारे धर्मशास्त्रों में ऋषि मुनियों ने वृक्षारोपण को किसी यज्ञ के पुण्य से कम नही माना है। जहां हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण में वृक्षों को काण्ड, महाभारत में पर्व और श्रीमद् भागवत् में स्कन्ध शब्दों कहा गया है जिसका अर्थ तना, पोर और प्रधान शाखा से हैं।
धार्मिक कहानियों की मानें तो रामायण काल में भगवान श्रीराम का वनों में निवास करना और वृक्षों को अपना आश्रय बनाना ही उनके लिए प्रकृति प्रेम था। तो वहीं कण्व की पुत्री शकुन्तला का पूरा बचपन वृक्षों की छाया में ही व्यतीत हुआ। साथ ही विष्णु पुराण में उल्लेख किया गया है कि एक वृक्ष लगाना और उसका पालन पोषण करना सौ पुत्रों की प्राप्ति से भी बढ़कर पुण्य माना गया है। इसके अलावा चरक संहिता में भी वृक्ष का प्राकृतिक औषधियां व जड़ी बूंटियों के रूप में चिकित्सकीय दृष्टि से उपयोग बताया गया है।
जैसा कि विदित है कि वन हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में मदद करते है। साथ ही पर्यावरण पर पड़ने वाले कार्बन के प्रभाव को कम करने में भी सहायक होते है। वहीं वन काफी हद तक बारिश कराने के लिए जिम्मेदार होते है। इसी वजह से एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को वन क्षेत्रों की वृद्धि करने में टॉप 10 देशों की सूची में 8वां स्थान प्राप्त है। हालांकि पिछले 30 वर्षों में भारत और पूरी दुनिया में वनों की कटाई बढ़ी है। जिसके चलते भारत सरकार के वन विभाग ने पेड़ गिरने पर, इसके नुकसान की भरपाई के लिए दस पेड़-पौधे लगाने की अपील की है।
आइए इस बार वन महोत्सव पर जनसंख्या और भौतिकवादी व्यवस्थाओं के चलते वृक्षों की अन्धाधुंध हो रही कटाई को रोकने का हर संभव प्नयास करें। साथ ही पुराने वृक्षों के स्थान पर नए वृक्षारोपण पर ध्यान दें। अन्यथा वह दिन दूर नही कि जब प्रकृति के प्रकोप से हर मनुष्य प्रभावित होगा और अपने जीवन को खतरे में डाल लेगा।
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