गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार
मनुष्य की स्वतंत्रता ही उसके सम्मानपूर्ण जीवन का आधार है। किसी भी मनुष्य को एक सम्मानित, आजाद और मनोवान्छीत जीवन जीने का अधिकार है। सम्भवतः यही अधिकार विश्व के तमाम क्रांतियो की प्रेरणा और उददेश्य भी रहा। भारत भी करीब 200 वर्ष पराधीन था। परिणामस्वरूप जब भारत का संविधान निर्मित हुआ तब ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्ति को जीवन और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।दुसरी तरफ विधि के संचालन के लिये और समाज में विधि का शासन स्थापित करने के लिये, अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेना भी अनिवार्य है। किसी भी अपराध के रोकथाम के लिये या दण्डित करने के लिये,राज्य द्वारा स्थापित विधिपूर्ण तरीके से व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है।
गिरफ्तारी विधि के अनुरूप हो या विधिसम्मत हो इसके लिये गिरफ्तार व्यक्ति को कई संवैधानिक ( संविधान मे प्रदत्त) अधिकार और कई विधिक अधिकार प्रदान किये गये है।किसी गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार निम्न है-
1. गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जायेगा।
2. गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार के सदस्य अथवा किसी मित्र को उसकी गिरफ्तार के बारे में सूचीत किया जायेगा।
3. गिरफ्तार व्यक्ति के अनुरोध पर उसे उसके पसंद के अधिवक्ता से विधिक सलाह लेने का अधिकार दिया जाता है।
4. गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घन्टे के अन्दर किसी मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाना चाहिये।
5. अगर किसी महिला की गिरफ्तारी की जा रही है तो गिरफ्तारी सुबह 6 से शाम 6 बजे तक ही की जाए ।
6. गिरफ्तार व्यक्ति की सरकारी या अधिकृत चिकित्सक द्वारा जांच करायी जाए।
7. गिरफ्तार व्यक्ति को कोई भी यातना ना दी जाए और पूछताछ के समय किसी परिजन या मित्र को समीप रखा जाए।8. गिरफ्तार व्यक्ति को कहा हिरासत में रखा गया है और किस अधिकारी ने गिरफ्तार किया है उसके भी नाम और पद की जानकारी साझा की जाए।
माननीय उच्च न्यायालय ने डी.डी.बसु बनाम बंगाल राज्य के वाद में गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकारो पर स्पष्ट विचार व्यक्त किये और तमाम अधिकारों को निर्देशित किया। व्यक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्ति का महत्वपुर्ण अधिकार है और इसकी संरक्षा विधिपूर्वक और विधि द्वारा स्थापित प्रकिया का अनुसरण करके ही पूरा किया जा सकता है। यह अधिकार संरक्षित करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के उपर है। किसी भी व्यक्ति की अविधिक गिरफ्तारी के सम्बंध में हिरासत में लिया गया व्यक्ति या उसके उपलक्ष्य में कोई भी व्यक्ति अनुच्छेद 32 मे सर्वोच्च न्यायालय या अनुच्छेद 226 मे उच्च न्यायालय में रिट का वाद लेकर जा सकता है।