इस्लाम से पूर्व का अरब जगत
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इस्लाम पूर्व अरब
इस्लाम पूर्व अरब :इस्लामिक इतिहास की आज की इस प्रथम श्रृंखला में हम जानने का प्रयास करेंगे कि पूर्व अरब जगत की संस्कृति किन मान्यताओ, रीति रिवाज, जीवन आर्थिक सामाजिक परिवेश, स्त्रियों की स्थिति, और मानसिकता पर किन गुणों का प्रभाव था,
पृष्ठभूमि
इस्लाम से पूर्व का अरब जगत मोहम्मद को पूर्व अरब जगत की धार्मिक मान्यताओं के खंडनकर्ता रूप में जानता है, उन्होंने इस्लामिक धर्म के उदय के साथ, पूर्व के धार्मिक मान्यताओं के समापन का भी मार्ग प्रशस्त किया, पूर्व की अरब संस्कृति ने बहु देवता वाद का सिद्धांत अपने पूर्वजों मेसोपोटामिया से विरासत में प्राप्त किया, समाज में, व्याप्त स्तर पर असामाजिक रिश्ते जिनका वर्णन बुखारी करती है देखने को मिलता है, बलि प्रथा पूर्व की भांति ही आगे भी चलती रही किंतु बलि के प्राप्तकर्ता देव बदल गए थे, पूर्व में यह बलिया,अल-उज्जा,मनात,हुबल,लात इत्यादि को समर्पित थी किंतु इस्लाम के बाद यह बलिया अल्लाह को समर्पित होने लगी, पूर्व की भांति यह समाज लंबे समय तक व्यापार पर टिका रहा, अपराध से जुड़े मामले पूर्व के कानूनों की भर्ती, कुछ परिवर्तनों के साथ जैसे कि कबिले के स्थान पर उम्मत के लिए वफादारी के सिद्धांत के साथ जस के तस बने रहे इस दौर को, इस्लामिक तारीख में दौरे जहिलियत के नाम से जाना जाता है, ध्यान देने वाली बात यह है कि उपरोक्त सभी सूचनाएं इस्लामिक तारीख के आधार पर हमें प्राप्त होती है क्योंकि पूर्व अरब जगत से जुड़ी सूचनाओं का व्याप्त खालीपन वर्तमान को भरे हुए,
समाज में स्त्रियों की स्थिति
पूर्व इस्लामिक जगत में कई ताकतवर महिलाएं देखने को मिलती हैं इन्हीं में से एक हिन्द-बिन-उत्बह समाज में महिलाओं की स्थिति को समझने में हमारी मदद कर सकती है, हिंद ने कुल 3 शादियां थी इनमें से दो शादी है मुगिरा के पुत्रो हफ्स और अल फक्ह के साथ , लकिन उसे अबू सुफियन-इब्ने-हर्ब से प्रेम था जब रंगे हाथों पकड़ी गई तो उसके पति हफ्स ने उसे तलाक दे दिया इस प्रकार अबू सुफियान से उसका निकाह हुआ, हिंद के पिता और भाइयों की हत्या इस्लाम के शुरुआती महत्वपूर्ण लड़ाईयों का हिस्सा रही, अपने पिता और भाइयों की हत्या का बदला लेने के लिए, हिंद ने प्रमुख विरोधियों की हत्या का प्रयास किया, एक प्रयास में सफल रही और उहद 624 की लड़ाई के दौरान उसने मोहम्मद के चाचा हमजा की हत्या करवा दी, हिंद ने इस्लाम और इस्लाम के मानने वालों के प्रति व्याप्त घृणा, इस्लाम की लोक कथाओं में बहुत प्रसिद्ध है, वह एक अमीर कबीले से संबंध रखती थी, उसने वह सब किया जो इस्लामिक मान्यताओं में खंडित है, उसने औरत होते हुए भी युद्ध भूमि में सेना का नेतृत्व किया,इस्लाम के मक्का विजय के बाद उसने और उसके पति ने इस्लाम को अपना लिया,
बलि प्रथा
इस्लाम से पूर्व और और बाद दोनों ही कालों में बलि प्रथा समाज में व्यापक स्तर पर थी, इन्ही में से एक उदाहरण के तौर पर मोहम्मद के दादा, अबू-मुतलिब द्वारा मोहम्मद के जन्म की खुशी में सो ऊँटो की बलि का प्रसंग हमे बुखारी से प्राप्त होता है, यह बली मनात को समर्पित थी, बाद के दौर में बलि अल्लाह को समर्पित होने लगी
सामाजिक-आर्थिक जीवन
सामाजिक जीवन ज्यादातर व्यापार पर केंद्रित था, इसमें रेशम मार्ग ने भूतकाल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, बाद के काल में इसी रेशम मार्ग के बचे हुए, कुछ अवशेष, हमें पूर्व अरब जगत के व्यापार मार्गों की सूचना देते हैं, ज्यादातर यह मार्ग क्षेत्रीय थे, किंतु कुछ मार्ग अति विशालकाय थे इनका संबंध भारत चीन यूरोप सीरिया ईरान इराक लेबनान यमन इत्यादि से था, विद्वानों के अनुसार इस मार्ग का केंद्र बिंदु तत्कालीन मक्का शहर था, इस प्रकार मक्का में ज्यादातर लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत व्यापार ही था, इसके अतिरिक्त समाज अभी भी अपनी आदिम खानाबदोश रीति-रिवाजों में जकड़ा हुआ था, इसलिए समाज ने, कृषि अनुपयुक्त क्षेत्र का प्रयोग, पशुपालन के लिए किया, क्योंकि समाज में आजीविका का कोई अन्य साधन नहीं था, इसलिए समाज में कई व्यक्तियों के लिए जानवरों के रेवडो पर हमला, व्यापारियों को लूटना, हत्या, अपहरण, इत्यादि अनादी समाज का एक अन्य पेशा थे,
समाज अभी भी पितृसत्तात्मक था, इसलिए लड़किओं को जन्म के बाद रेत में जिंदा दफना देना एक आम बात थी, लड़कियों की शादी अल्पायु में ही उनसे दोगुना या तिगुना उम्र के पुरुषों के साथ कर दी जाती थी, इस प्रकार यह स्त्रियां जल्दी विधवा हो जाती थी इसमें आपसी मनमुटाव का भी महत्वपूर्ण योगदान था, फलत स्रियों की कई शादी, और अनैतिक संबंध समाज के लिए कोई नया विषय नहीं थे, अरब काफी रंगीन मिजाज थे, इसलिए युद्ध के दौरान शायरी करना, कई शादियां करना,अल-इस्तिब्दा जैसी रीतियो का पालन करना, या वैश्यवृति, नशीले पदार्थों का प्रयोग, नृत्य संगीत, एक सरल बात थी, पूर्व संस्कृति के इन्ही रिवाजो पर बाद की इस्लामिक संस्कृति ने सबसे ज्यादा खंडन किया उन्ही में से एक थी समाज में व्याप्त, रक्त संबंध में ही व्यभिचार का बड़े स्तर पर फैला होना, इसे जाहिलियत का दौर कहा गया,
धर्मं और समाज
समाज कई कबीलों में बटा हुआ था, हर कबीले का अपना इष्ट देव था,लोग अपनी सफलता के लिए नाना प्रकार की मन्नते मांगा करते थे और उनके पूर्ण होने पर बलि का आयोजन करते थे, विशेष अवसरों पर आसपास के कबीलों में दावत के न्योते भेजे जाते थे,अरबो में साथ मिलकर खाने का रिवाज पूर्व से ही प्रचलित, समाज में कई धार्मिक मान्यताओं के लोग विद्यमान थे, इनमें प्रमुख निम्न है, ईसाई, यहूदी, जर्तुस्तवादी, नसरानी, इत्यादि इत्यादि, धर्म की मान्यताओं में मक्का कहीं ना कहीं केंद्रीय भूमिका में था, जमजम का जल पवित्र व दिव्य माना जाता था, लोगों के कई देव थे खुद मक्का में 300 से अधिक मुर्तियो होने के प्रमाण मिलते हैं, नवेतियन के भाग्नावेश हमे एक विस्तृत और कुशल कलात्मक संस्कृति के बारे में बताते हैं हाल में एक इतिहासविद का मानना है की मक्का के स्थान पर ये नवेतियन स्थान ही धार्मिकता के केंद्र थे , हज की प्रथा पूर्व में भी विद्यमान थी आसपास के अरब काबिले अपनी मान्यताओं की पूर्ति पर हज किया करते थे, और ताव्वाफ़ के दौरान निम् वाक्य का इस्तेमाल करते थे जो आज भी एक सामान ही है, बाद में इन इस वाक्य में से अल्लाह से साथियो को हटा दिया गया लकिन बाकि का सब एक सामान बना रहा,
लब्बैक अल्लाह-हुम्मा लब्बैक,लब्बैक ला शरीक-आ-लका लब्बैक,इला शरीकुन हुवा लका,तमलीकुहू व-मा मलाका
अनुवाद- मैं यहाँ अल्लाह की सेवा या उसकी देख रेख में हूँ और उसका कोई साथी नही है सिवा उनके जो उसके हैं, और उसी का प्रभुत्व सब चीझो पर है
चिंतन
अंत में हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि इस्लाम के आगमन के साथ ऐसा नहीं था कि समाज में बहुत सारे त्वरित और नव परिवर्तन देखने को मिले, बल्कि इस नयी धार्मिक मान्यता ने पूर्व की मान्यताओं को एक नए रूप में प्रस्तुत किया, और उसके अस्तित्व को वर्तमान में हम जानते हैं, ध्यान देने वाली बात यह है कि,पूर्व अरब संस्कृति के विषय में जो भी सूचनाएं प्राप्त है बाद के काल में लिखे हुए तारीख से प्रभावित है
संदर्भ सूची
1.Gift of the Body in Islam: The Prophet Muhammad’s Camel Sacrifice and Distribution of Hair and Nails at his Farewell Pilgrimage
2.Book of Idols by Hisham ibn al-Kalbi
3.Muslim sharif by Bukhari
4.The venture of Islam by M-G-S-Hodgson
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