22 साल की उम्र में देश की रक्षा के लिए दी प्राणों की आहुति…….जानिए कारगिल हीरो विजयंत थापर के बारे में।
भरा नहीं जो भाव से,
बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह ह्दय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
विजयंत थापर : कारगिल युद्ध के दौरान वीरगति पाने वाले सैनिकों में से एक थे विजयंत थापर, जिन्होंने 22 साल की उम्र में ही देश की रक्षा में अपने प्राण गंवा दिए। जिसके चलते कारगिल हीरो विजयंत थापर को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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विजयंत थापर- ए बॉर्न सोल्जर
26 दिसंबर 1976 को विजयंत थापर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी लोग भारतीय सेना का हिस्सा रह चुके थे। जी हां विजयंत थापर के परदादा डॉ. कैप्टन राम थापर, दादा जेएस थापर और पिता कर्नल वीएन थापर सब भारतीय फौज में रह चुके थे। जिनके नक्शे कदमों पर चलकर 22 साल की उम्र में ही विजयंत थापर ने भारतीय सेना में शामिल होने की ठान ली। इतना हीं नहीं विजयंत के दिल में बचपन से ही भारतीय सेना के प्रति असीम लगाव था, जिसके बारे में बताते हुए उनकी मां तृप्ता थापर कहती है कि जब विजयंत छोटा था तो वो अपने छोटे भाई को परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल का घर दिखाने ले जाया करता था। और कहा करता था कि एक दिन लोग हमारा घर भी देखने आएंगे। ऐसे में उसकी शहादत के बाद यह बात बिल्कुल सही साबित हुई है। ऐसे में विजयंत थापर को ए बॉर्न सोल्जर भी कहा जाता है।
साथ ही विजयंत थापर को सेना में रहते हुए छह महीने बाद ही कारगिल युद्ध में अपने देश की सेवा का मौका मिला और जून 1999 में कैप्टन विजयंत ने तोलोनिंग (कारगिल) की चोटी पर भारत का झंडा फहराकर अपने देश प्रेम को साबित किया। लेकिन थ्री पिम्पल्स से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने के अभियान में हम सफल तो हो गए, लेकिन हमने अपने जाबांज सैनिक विजयंत थापर को खो दिया था।
विजयंत थापर का वो आखिरी खत
कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत से कुछ घंटे पहले विजयंत थापर ने अपने बैचमेट प्रवीण तोमर को एक पत्र देते हुए कहा था कि यदि वह जिंदा लौट आया तो उसका पत्र फाड़ देना, लेकिन यदि मर जाए तो उनका यह पत्र उनके माता-पिता को दे देना। पत्र में विजयंत थापर ने लिखा था कि…
डिय़र मां पापा,
जब तक आपको यह पत्र मिलेगा, तब तक शायद मैं आपके साथ नहीं होऊंगा। लेकिन मुझे कोई पछतावा नहीं है, बल्कि अगला जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर से अपनी मातृभृमि के लिए खुद को बलिदान कर दूंगा। अगर हो सके तो आप लोग यहां आकर देखिएगा कि आपके बेहतर कल के लिए भारतीय सेना ने कैसे अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया है।
विजयंत थापर के मां बाप कहते है कि रोबिन का य़ह पत्र हमने आज तक सुरक्षित रखा है, जो हमें आज भी उसकी याद दिलाता है। जिसमें उसने एक लड़की रूखसाना को 50 रूपए महीना भेजने की बात भी कही थी। तो वहीं विजयंत थापर के पिता बताते है कि कारगिल पर जाने से पहले उन्होंने विजयंत से आखिरी बार तुगलकाबाद स्टेशन पर मुलाकात की थी। पर उन्हें शायद यह नहीं मालूम था कि वह उनके बेटे से उनकी आखिरी मुलाकात होगी।
कारगिल का जाबांज सैनिक
आपको बता दें कि कारगिल युद्ध के समय कैप्टन थापर की अगुआई में भारतीय सेना ने तोलोलिंग की पहली चोटी पर अपनी जीत दर्ज कर तिरंगा फहराया था। इसके अलावा दुश्मनों द्वारा कब्जाई गई पांच चौकियां नोल पोस्ट, पिंपल-1, 2 और 3 और लान पोस्ट को भी कैप्टन विजयंत थापर और उनकी सेना को अपने कब्जे में लेना था। साथ ही जिस लड़ाई में लेफ़्टिनेंट विजयंत थापर ने भाग लिया था, उसे ‘बैटल ऑफ़ नौल’ कहा जाता है। इस लड़ाई में विजयंत को रात 8 बजे हमला करना था। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने उन्हें देख लिया था, ऐसे में अचानक पीछे से गोलियों की बौछार से कैप्टन विजयंत थापर वीरगति को प्राप्त हुए। विजयंत के माता पिता के अनुसार, कैप्टन विजंयत के कमरे में वो सारी चीजें जोकि विजयंत थापर की शहादत से जुड़ी थी, वो आज भी वैसे ही ऱखी हुई है।
सैनिक स्कूल की बच्ची रूखसाना के प्रति लगाव
बताते है कि कुपवाड़ा में पोस्टिंग के दौरान विजयंत की मुलाकात एक तीन साल की कश्मीरी लड़की से हुई, जिसका नाम रुख़साना था। थापर ने पूछताछ की तो मालूम चला कि चरमपंथियों ने मुख़बरी के शक में उसके सामने ही उसके पिता की हत्या कर दी थी। तब से दहशत में रूखसाना ने बोलना बंद कर दिया था। विजयंत थापर को तब से उस छोटी बच्ची से लगाव हो गया। वह कभी उसे चॉकलेट देते तो कभी कपड़े। इतना ही नहीं उन्होंने अपने माता पिता को खत में लिखा था कि उनके जाने के बाद रूखसाना को 50 रुपए पॉकेटमनी भिजवा दिया करना और उसकी मदद करना।
इसी बीच सेना मुख्यालय से ख़बर आई कि कैप्टन विजयंत थापर ने कारगिल में लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।
इस प्रकार विजयंत थापर वर्तमान और भावी पीढ़ी दोनों के सामने ही देशभक्ति का एक जीवांत उदाहरण है, जिनके जीवन से हमें यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि जो जीवन देश के काम न आए, वह जीवन किसी काम का नहीं। साथ ही अब हमें रील लाइफ के हीरो की जगह रियल लाइफ के इन सैनिकों को अपना हीरो मानना चाहिए। और इनके जीवन से सीखना चाहिए कि असल जीवन का उद्देश्य देशप्रेम से जुड़ा होगा। तभी हम एक भयमुक्त समाज की स्थापना का सपना साकार कर पाएंगे। वरना खा पीकर हम मस्त रहें…आने वाली पीढ़ी को यह कैसे बतलाएंगे। और हमने क्या फर्ज निभाया, यह कैसे समझाएंगे?
#सम्बंधित प्रश्न
विजयंत थापर कौन थे ?
कैप्टन विजयकांत थापर भारतीय सेना के एक अधिकारी थे और प्रसिद्ध 2 राजपुताना राइफल्स (Infantry रेजिमेंट) के थे। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी अदम्य साहस और बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के उच्च सैन्य सम्मान वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 29 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान टोलोलिंग (ब्लैक रॉक्स -केएनओएलएल) में 2 राजपुताना राइफल्स के हमले का नेतृत्व करते हुए वह शहीद हुए।
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