सन् 1942 अगस्त में अंग्रेजों भारत छोड़ो का दिया गया था नारा और वहीं आज वक़्त आ गया है टुकड़े टुकड़े गैंग को बाहर निकलने का।
समस्याओं का ऐसा हल कर दें, ऐसा आविष्कार चाहते हैं,
रोटी कपड़ा और मकान इनका समाधान चाहते हैं,
विकसित हो जो सब देशों से ऐसा हिंदुस्तान चाहते हैं।
भारत जैसे गणतांत्रिक देश में आज भारतीय नागरिकों को संविधान के तहत मौलिक कर्तव्य और अधिकार प्राप्त है। इतना ही नहीं भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से धर्म और जाति चुनने का अधिकार है। साथ ही जीवनयापन के लिए काम और शिक्षा पाने का भी हक है। ये सब पहले मुमकिन नहीं था। हमारे देश के कई महान् लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर इस स्वर्णिम समय की शुरुआत की है। उन्हीं में से एक है 8 अगस्त सन् 1942 को हुआ जन आंदोलन।
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अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अगुआई में अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए 8 अगस्त 1942 को एक जन आंदोलन की शुरुआत की गई। जिसे हम अगस्त क्रांति के नाम से भी जानते हैं। अंग्रेजों भारत छोड़ो नामक इस आंदोलन में देश के युवाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक युसूफ मेहर अली ने अंग्रेजो भारत छोड़ो नारा दिया था। इस जन आंदोलन का मुख्य उद्देश्य देश से ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। जिसके लिए काकोरी कांड के ठीक 17 साल बाद युवाओं के साथ मिलकर गांधी जी ने इस आंदोलन की शुरुआत की। कहते है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का यह आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था जिसमें लगभग सभी भारतवासियों ने प्रतिभाग किया था। और इसका परिणाम रहा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के आगे घुटने टेकने पड़े। साथ ही सन् 1947 भारत को अंग्रेजी हूकुमत से आजादी मिली।
कहते है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का यह आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था जिसमें लगभग सभी भारतवासियों ने प्रतिभाग किया था। और इसका परिणाम रहा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के आगे घुटने टेकने पड़े। साथ ही सन् 1947 भारत को अंग्रेजी हूकुमत से आजादी मिली।
नागरिकता कानून और संशोधन
जिसके बाद भारत में कई तरह के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास हुए। तो वहीं भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद से भारत के नागरिकता कानूनों में कई प्रकार के संशोधन हुए, साथ ही संविधान में शारणार्थियों के लिए भी प्रावधान बनाए गए।
लेकिन समय के साथ देश की बढ़ती जनसंख्या ने हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि आखिर बढ़ती जनसंख्या के साथ कैसे बेरोजगारी और भूखमरी से निपटा जा सकेगा। जिसके बाद देश में नागरिकता कानून को लेकर कई बड़े संशोधन किए गए। और तब से शुरू हो गया एक जन आंदोलन जिसमें भारत में गैर तरीके से रह रहे लोगों की यहां से वापसी के हर संभव प्रयास किए जा रहे है।
हाल ही में देश में लागू नागरिकता कानून 2019 पर भी एक बहस छिड़ गई थी, जिसमें मोदी सरकार पर मुस्लिमों की आबादी को इस कानून से बाहर रखने पर दिल्ली के शाहीन बाग में जमकर प्रदर्शन किया गया। ऐसे में अब इस कानून के लागू हो जाने पर सबसे पहले यह जानना होगा कि भारत में किसे रहने का अधिकार है और किसे नहीं।
असल में भारतीय नागरिक कौन है?
नागरिकता को लेकर क्या कहता है भारतीय संविधान
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 5 से लेकर अनुच्छेद 11 में भारतीय नागरिक की परिभाषा बताई गई है। जिसके अनुसार,
- 26 जनवरी 1950 के बाद भारत में जिसका जन्म हुआ होगा उसे भारत का नागरिक माना जाएगा। इसके लिए बच्चे के माता-पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना जरूरी होगा।
- 2003 में हुए संशोधन के अनुसार, बच्चे के माता-पिता में से एक भारत का नागरिक हो तो वहीं दूसरा अवैध प्रवासी ना हो। जिसके लिए कानूनी दस्तावेजों को दिखाना अनिवार्य कर दिया गया।
लेकिन नागरिकता कानून 2019 के लागू होने के बाद से कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। जिनमें से प्रमुख हैं,
- इस कानून के तहत बांग्लादेशियों को चाहे वह हिंदू और मुस्लिम, देश से बाहर जाना होगा।
- 1955 के कानून के तहत अवैध प्रवासी (बिना जरूरी कागज के देश में निवास कर रहे हो, वीजा की अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रह रहे हो) भारत के नागरिक नहीं हो सकते। लेकिन नागरिकता कानून के लागू होने के बाद से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक बिना किसी कानूनी दस्तावेजों के देश में रह सकते हैं। जिसके लिए 14 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को भारत में छह साल रहने के बाद नागरिकता दे दी जाएगी।
तो वहीं एनआरसी उन लोगों का एक आधिकारिक रिकॉर्ड है जो वैधानिक रूप से भारतीय नागरिक हैं। जिसे अपडेट किया जाना है। लेकिन यदि यह लागू होता है तो वो लोग जोकि उत्पीड़न के चलते भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे है उनको अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ेगी।
भारत के टुकड़े चाहने वालों की नागरिकता पर उठा सवाल
फरवरी 2016 में देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहर लाल यूनिवर्सिटी दिल्ली में भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह जैसे नारों ने अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल खड़े कर दिए। जिसके बाद जेएनयू नेता कन्हैया कुमार, सैयद उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य़ समेत 10 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि वामपंथ का जन्म समाज में शोषितों की आवाज को बुंलद करने तक सीमित है।
ऐसे में किसी भी देश का कानून उन्हें देशविरोधी नारे लगाने की आजादी नही देता है। तो वहीं समय-समय पर देश में भय का माहौल पैदा करने वालों की नागरिकता को लेकर भी सवाल उठे है। क्योंकि जिस देश ने उन्हें शिक्षा और जीवनयापन का मार्ग दिखलाया, वह लोग उसी देश को गाली दे रहे है। ऐसे में आज एक ऐसी चेतना की जरूरत है जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस तरह के गैर राष्ट्रवादी संगठनों और लोगों के देश में रहने पर आपत्ति जाहिर करें। ताकि आने वाली पीढ़ी देश से प्यार कर सके और उनके दिलों में देश और जमीं के लिए त्याग और सर्मपण की भावना का सूत्रपात हो न कि नफरत और अलगाव का।
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