हनुमान चालीसा – Hanuman Chalisa
Hanuman chalisa in hindi : भगवान हनुमान को बुराई को नष्ट करने वाले के रूप में जाना जाता है और उन्हें शक्ति, और भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। हिंदी में hanuman chalisa lyrics को पूरी तरह से अर्थ के साथ समझाया गया है।
हर साल, चैत्र महीने के दौरान पूर्णिमा पर हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान का जन्म केसरी और अंजनी से हुआ है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि हनुमान को चार वेदों में महारत हासिल है। इस विशेष दिन पर, लोग सुबह जल्दी उठते हैं और हनुमान चालीसा पढ़कर पूजा करते हैं।
Hanuman Chalisa in hindi
Table of Contents
हनुमान चालीसा दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
मैं श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पोकवित्र करके श्री रघुबीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ , जो चारो फल (धर्म , अर्थ,काम,मोक्ष ) को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
हे पवन कुमार ! में आपका सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं की मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल , सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिये।
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हनुमान चालीसा चौपाई:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
तातपर्य : श्री हनुमान जी ! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह हे। हे कपीश्वर ! आपकी जय हो।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
तातपर्य : हे पवन सूत अंजनी के लाल ! श्री राम भक्त,इस संसार में आपके समान दूसरा बलशाली नहीं है।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
तातपर्य: हे महाबीर बजरंगबली !आप विशेष पराक्रम वाले हैं । आप बुरी बुद्धि को दूर करते हैं। और अछि बुद्धि वालों के साथी ,सहायक हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
तातपर्य: हे हनुमान !आपका वर्ण कंचन के समान है ,आप सुन्दर वस्रों तथा कानो मए कुण्डल और घुँघराले बालों से सुशोभित हैं .
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
तातपर्य: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा है और कंधे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
तातपर्य: हे शंकर के अवतार ! हे केसरी नंदन ! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वंदना होती है।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
तातपर्य: आप प्रकाण्ड विद्यानिधान हैं,गुणवान और अत्यंत कार्य कुशल होकर श्री राम – काज करने के लिए उत्सुक रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
तातपर्य: आप श्री रामचरित सुनने में आनंद – रस लेते हैं। श्री राम ,सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में बसे रहते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
तातपर्य: आपने अपना बोहोत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
तातपर्य: आपने विकराल रूप धारण करके राक्षशों को मारा और श्री रामचंद्र के उद्देश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
तातपर्य: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जगाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
तातपर्य: श्री रामचंद्र ने आपकी बहुत प्रशंशा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
तातपर्य: श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हज़ार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
तातपर्य: हे राम भक्त ! शेष नाग सहित श्री सनत्कुमार ,श्री सनक ,श्री सनातन , श्री सनन्दन अदि मुनि ब्रम्हा ,नारद अदि देवता आपके गुणों का बखान करते हैं।
यम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तातपर्य: यमराज ,कुबेर ,आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते|
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तातपर्य: आपने सुग्रीवजी को श्री राम से मिलाकर उपकार किया जिसके कारण वे राजा बने|
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
तातपर्य: आपके उपदेश का विभीषण ने पालन किया, जिसके कारण वे लंका के राजा बने, इसको पूरा संसार जानता है|
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
तातपर्य: जो सूर्य इतने योजना दुरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हज़ार लगेंगे| दो हज़ार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया|
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
तातपर्य: आपने श्री रामचन्द्रजी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया इसमें कोई आश्चर्य नहीं हैं|
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
तातपर्य: संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हों, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है |
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
तातपर्य: श्री रामचंद्र के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता|
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
तातपर्य: जो भी आपकी शरण में आते है उन सभी को आनंद प्राप्त होता है और जब आप रक्षक है, तोह फिर किसी को डर नहीं रहता|
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
तातपर्य: आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता| आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं|
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
तातपर्य: जहां ‘महावीर’ हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है वहाँ भूत-पिशाच पास भी नहीं फटक सकते|
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
तातपर्य: वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है|
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
तातपर्य: वीर हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता हैं, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है|
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
तातपर्य: श्री रामचन्द्रजी सर्वश्रेष्ठ तपस्वी राजा है, उनके सभी कार्यों को आपने अपने बल कौशल से पूर्ण किया था |
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
तातपर्य: जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है, जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती|
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
तातपर्य: चारो युगो में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है |
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
तातपर्य: हे श्री राम के दुलारे! आप साधु और सन्तों तथा सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों नाश करते है|
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
तातपर्य: आपको माता श्रीजानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है |
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तातपर्य: आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए ‘राम-नाम’ रूपी औषधि है |
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
तातपर्य: हे पवनपुत्र! आपका भक्त आपके भजन के प्रभाव से अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम को जाते हैं और वह हरिभक्त कहलाता है |
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
तातपर्य: आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अंत समय श्री राम के धाम को प्राप्त करते हैं और यदि मृत्यु लोक में जनम लेंगे , तो भक्ति करेंगे व हरी भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
तातपर्य: हे हनुमानजी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर किसी अन्य देवता की आवश्यकता नहीं रहती |
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
तातपर्य: हे वीर हनुमानजी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती है |
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
तातपर्य: हे स्वामी हनुमानजी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो| आप मुझ पर कृपालु श्री गुरूजी के सामान कृपा कीजिये|
जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
तातपर्य: जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनो से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेः |
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तातपर्य: भगवान् शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाई इसलिए वे साक्षी हैं की जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी |
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
तातपर्य: हे हनुमान जी! “तुलसीदास” सदा ही “श्री राम जी” का दस हैं | इसलिए आप उनके हृदय में निवास कीजिये |
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
तातपर्य: सभी संकटो को हरने वाले तथा मंगल मूरत वाले पवनपुत्र! मेरी आपसे यही प्रार्थना है की आप श्री राम, लक्ष्मण, सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिये|