कोरोनाकाल में आयुर्वेद है कितना प्रांसगिक……जानिए आयुर्वेद चिकित्सा के बारे में सबकुछ।
Table of Contents
कोरोनाकाल में आयुर्वेद:
कोरोनाकाल में आयुर्वेद है कितना प्रांसगिक? इस प्रश्न का जवाब ढूढ़ने के लिए आइए जानते है आयुर्वेद चिकित्सा का इतिहास और उसकी महत्ता
आयुर्वेद चिकित्सा विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। जिसका संबंध मानव शरीर को निरोगी रखने और आयु वृद्धि से है। तो वहीं आयुर्वेद विदान् वात, पित्त, कफ के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं। जिसके लिए आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से निर्मित औषधियों के उपयोग पर जोर दिया जाता है। इस प्रकार सस्ती और उपयोगी चिकित्सा पद्धति होने की वजह से आयुर्वेदिक चिकित्सा भारतीय लोगों द्वारा अपनाई जाती रही है।
अर्थात् जिस ग्रंथ में हित आयु (जीवन के अनुकूल), अहित आयु (जीवन के प्रतिकूल), सुख आयु (स्वस्थ जीवन), एवं दुख आयु (रोग अवस्था) इनका वर्णन हो उसे आयुर्वेद कहते है।
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥
ऐसे में आज कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते प्रश्न यह उठ रहा कि क्या वास्तव में आयुर्वेद में ही छुपा है कोरोना का इलाज? क्योंकि अभी हाल ही में योग गुरु रामदेव बाबा ने दावा किया है कि आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से कोरोना का इलाज संभव है। हालांकि इस बात पर अभी आयुष मंत्रालय ने पूर्ण मंजूरी नहीं दी है, लेकिन विचार किया जा रहा है कि आयुर्वेदिक दवाएं कोरोना को निष्क्रिय करने में सक्षम है।
आयुर्वेद चिकित्सा का इतिहास
लगभग 3000 से 50000 ईसा पूर्व संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद में आयुर्वेद के बारे में उल्लेख मिलता है। हालांकि आयुर्वेद के आचार्य अश्वनी कुमार माने जाते है। कहा जाता है कि भगवान इंद्र से इन्होंने यह विद्या ग्रहण की थी। तो वहीं चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि महान् ग्रंथाकार आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते है। साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं- कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण।
दूसरी ओर छठवीं सदी में लिखी गई चरक संहिता में भी आयुर्वेद चिकित्सा का वर्णन किया गया है तो वहीं कहा जाता है कि देवी देवताओं में धनवंतरी ने राजा का अवतार लेकर बुद्धिमान चिकित्सकों और स्वंय आचार्य सुश्रुत को दवाइयों के बारे में ज्ञान दिया। जोकि आगे चलकर आयुर्वेद कहलाया। साथ ही प्रमाणों के मुताबिक आयुर्वेद चिकित्सा का उपयोग बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिन्धु सभ्यता में भी किया गया है।
कोरोनाकाल में आयुर्वेद है कितना प्रांसगिक?
दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन के निर्माण में लगे हुए है। तो वहीं भारत के वैज्ञानिक भी फीफाट्रोल से कोरोना वायरस के इलाज की खोज करने की सोच रहे है। हालांकि आयुष मंत्रालय की गठित टास्क फोर्स को यह प्रस्ताव भेजा जा चुका है। जिसे देखकर लगता है कि जल्द ही इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने जा रही है।
आयुर्वेद चिकित्सा और कोरोना वायरस को लेकर महामना मदन मोहन मालवीय प्रसिद्ध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. केएन द्विवेदी का कहना है कि आज दुनिया कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का इलाज ढूंढ रही है। ऐसे में हमें भी अपनी परंपरागत चिकित्सा का इस्तेमाल करना चाहिए। इसलिए कोरोना मरीजों पर फीफाट्रोल का ट्रायल करके वायरस का आयुर्वेदिक इलाज करने की संभावना पर काम करने की योजना बनाई जा रही है।
साथ ही उन्होंने बताया कि फीफाट्रोल के दौरान 13 जड़ी बूटियों से तैयार एंटी- माइक्रोबियल जोकि एक औषधीय फार्मूला है, जिसमें शामिल पांच प्रमुख बूटियों में सुदर्शन वटी, संजीवनी वटी, गोदांती भस्म, त्रिपुवन कीर्ति रस और मृत्युंजय रस शामिल है। जबकि आठ औषधियां तुलसी, कुटकी, चिरयात्रा, मोथा गिलोय, दारुहल्दी, करंज के अलावा अप्पामार्ग मिलाए गए हैं। जिसके सफल ट्रायल के लिए हर संभव प्रयास किए जाने है। आशा करते है कि कोरोनाकाल में भारत पुनं विश्वगुरु के रूप में उभर कर सबके सामने आएगा। वहीं अपनी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली की मदद से इस वायरस के खात्मे को लेकर काम करेगा।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आयुर्वेद प्राचीन समय की तरह ही वर्तमान कोविड-19 के खतरे के दौरान भी लाखों, करोड़ों जिन्दगियों को बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
#सम्बंधित:- आर्टिकल्स
- योग करें निरोग रहे
- योग करे कोरोना को मात दें
- लॉकडाउन का पर्यावरण पर प्रभाव
- योग और कोरोना
- जगन्नाथ रथ यात्रा पर रोक
- कोरोना की रोकने में केजरीवाल फेल
- लॉकडॉउन में भारत सरकार की नाकामी
- राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस