राज कपूर : पर तुम हमारे रहोगे सदा…….
राज कपूर
कल खेल में हम हों न हों
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलोगे तुम, भूलेंगे वो
पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
राज कपूर :जी हाँ, हम बात कर रहें हैं, हिंदी सिनेमा के द ग्रेट “शो मैन” “राज कपूर” साहब की. जिन्होंने कहा था फिल्म जोकर में “ये मेरा गीत जीवन संगीत, कल भी कोई दोहरायेगा, जग को हँसाने बहरूपिया, रूप बदल फिर आयेगा”. जैसा कि राज साहब ने कहा उनके बाद और भी जगह को हँसाने आयंगे, और ऐसा हुआ भी है, लेकिन राज साहब जैसा हिनी सिनेमा दूसरा कोई नहीं हुआ.
हिंदी सिनेमा के ‘शो मैन’ के नाम का सितारा राज कपूर न सिर्फ़ अभिनय की दुनिया में नाम कमाया बल्कि बतौर निर्माता निर्देशक भी कई शानदार फिल्में दीं. राजकपूर साहब की गिनती उन फ़िल्मकारों में होती है जिन्होंने भारतीय सिनेमा को विश्व मानचित्र पर जगह दी लाया. वो शायद भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक दूत थे. रूस, चीन ईरान, तुर्की जैसे तमाम देशों में इनका का नाम और फिल्मे अमर हो गयी.
आज हिंदी सिनेमा के शो मैन राज कपूर दुनिया को अलविदा कहे 32 साल हो गए है. राज साहब इस फानी दुनिया को अस्थमा के कारण 2 जून 1988 छोड़ चले गए थे. लेकिन किताबों के पन्ने पलटने पर मालूम पड़ता है कि मानो कल ही बात हो, जब ब्रिटिश इंडिया के पेशावर में पृथिवी राज कपूर के यहाँ राज कपूर का जन्म साल उन्नीस सौ चौबीस में चौदह दिसंबर को हुआ है.
पृथ्वीराज कपूर थियेटर में काम करने के लिए 1930 में मुंबई की चल पड़ते हैं. जिसके चलते राज साहब को सपनो की नगरी (तब कही जाने वाली बम्बई) में सपनो को हवा देने का मौका मिलता है. पिता को अभिनय करते देख राज साहब बचपन से अभिनेता बनना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने न सिर्फ क्लैपर ब्वॉय बनना पड़ा बल्कि गलतिया करने पर केदार शर्मा की थप्पड़ भी खानी पड़ती थी.
पढाई लिखाई में अच्छे न होने के कारण पिता पृत्वीराज कपूर से डाट सुनते थे, एक बार परीक्षा में फ़ैल होने के कारण राज साहब ने पिता से साफ साफ बोल दिए की मैं पढाई नहीं फिल्में बना चाहता हूँ. पिता को अच्छा लगा उसके बाद राज साहब फिल्मों के लाइन में घुस गए. क्लैपर ब्वॉय के तौर पर उन्होंने के यहाँ काम किया. और बतौर बाल कलाकार साल 1935 यानी जन्म के नौ साल बाद फिल्म ‘इंकलाब’ से अभिनय शुरू करा.
12 साल बाद यानी 1947 मैं बतौर अभिनेता फिल्म ” नीलकमल ” से फ़िल्मी सफर को शुरुवात की. और ठीक एक साल बाद यानी 1948 मैं राज कपूर ने आर के स्टूडियो की स्थापना कर आग फिल्म से हिंदी सिनेमा जगह में आग लगा दी.
साल 1952 में आई ‘आवारा’ उनके करियर की सबसे खास फिल्म साबित हुई. इस फिल्म की सफलता ने राज कपूर को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाई. बल्कि फिल्म का गाना ‘आवारा हूं या गर्दिश में आसमान का तारा हूं’ देश-विदेश मैं जाने जाना लगा. रूस मैं आज भी सबवे के नीचे संगीतकार ” आवारा हूँ ” की धुन बजाते मिलते हैं.
राज कपूर के फ़िल्मी करियर में उनकी जोड़ी एक्ट्रेस नरगिस के साथ लोगों दौरा खूब काफी पसंद की गई. जोड़ी ने 1948 मैं आई फिल्म ‘बरसात’ ‘अंदाज’, ‘जान पहचान’, ‘आवारा’, ‘अनहोनी’, ‘आशियाना’, ‘अंबर’, ‘श्री 420’ जागते रहो और ‘चोरी चोरी’ जैसी तमाम फिल्मों काम किया और हमेशा के लिए देश विदेश में अमर हो गए.
राज साहब साल 1985 में बतौर निर्देशित अपनी अंतिम फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ परदे पर दिखाई गई . इसके तुरंत बाद राजकपूर अपने महात्वाकांक्षी फिल्म ‘हिना’ के निर्माण में लुप्त हो गए लेकिन उनका सपना साकार नहीं हो सका और 2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.
खिताब
राज साहब को अपने फ़िल्मी करियर में मानसम्मान खूब मिला. 1971 में राज कपूर पदमभूषण पुरस्कार, वही साल 1987 में हिंदी फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब पाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए थे. बतौर अभिनेता उन्हें दो बार जबकि निर्देशक के तौर पर उन्हें चार बार पिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.