Parivartini Ekadashi 2020:जानिए इसका हिन्दू धर्म में महत्व ,कथा ,शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
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परिवर्तिनी एकादशी के दिन क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा वामन अवतार
हिंदू धर्म में साल भर में पड़ने वाली चौबीस एकादशियों का खास महत्व है। इस दिन लोग विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत आदि करते है। कहते है जो भक्त पूर्ण निष्ठा और भाव से एकादशी के व्रत रखता है, भगवान विष्णु अपने उस भक्त को विशेष फल प्रदान करते हैं। ठीक उसी प्रकार से, समस्त एकादशियों में से परिवर्तनी एकादशी हर साल भाद्रपद महीने में मनाई जाती है। कहते है भाद्रपद मास में भगवान विष्णु जोकि चातुर्मास में विश्राम की अवस्था में चले जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु करवट लेते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन का व्रत रखने पर जीवन की सारी बाधाओं से मुक्ति मिल जाया करती है। ऐसे में इस साल 29 अगस्त 2020 को परिवर्तनी एकादशी मनाई जाएगी।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व
वैसे तो साल भर पड़ने वाली चौबीस एकादशियों का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन भगवान विष्णु के वामन अवतार के चलते परिवर्तिनी एकादशी महत्वपूर्ण मानी गई है। कहते है इस दिन भगवान विष्णु की अराधना करने से भक्तों को पुण्य प्राप्त होता है। इसलिए परिवर्तिनी एकादशी को पाश्र्व और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। साथ ही भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से अज्ञानता का नाश होता है। तो वहीं मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
परिवर्तिनी एकादशी की कथा
परिवर्तिनी एकादशी के बारे में महाभारत में भी जिक्र मिलता है। इतना ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने को कहा था। और साथ ही कथा भी सुनाई थी। श्रीकृष्ण के अनुसार, त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था, जोकि बुरा होने के बाद भी धर्म कर्म के कार्यों में संलग्न था। लेकिन अपने भक्ति भाव के चलते असुर बलि भगवान इंद्र के बराबर आ गया था। जिसे देखकर भगवान इंद्र को लगा कि यदि असुर बलि को अभी नहीं रोका गया तो वह स्वर्ग का राजा बन जाएगा। जिस पर भगवान इंद्र ने भगवान विष्णु से विनती की। जिसके बाद भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया। इस दौरान भगवान विष्णु ने विराट अवतार में एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग औऱ पंजे से ब्रह्मलोक को पार कर लिया। ऐसे में अब असुर बलि के पास तीसरे पांव के लिए कुछ नहीं बचा। तब बलि ने अपना सिर भगवान विष्णु के आगे कर दिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपना पैर उसके सिर पर रख दिया। और साथ ही असुर बलि से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।
परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
इस साल परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त 28 अगस्त की सुबह 8 बजकर 38 मिनट से शुरू होकर 29 अगस्त की सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। साथ ही परिवर्तिनी एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के समय भोजन करना वर्जित है। क्योंकि परिवर्तिनी एकादशी वाले दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करने की विधि है। लेकिन चाहे तो आप फलाहार कर सकते हैं। परंतु एकादशी के दिन चावल पूर्णतया वर्जित है। साथ ही परिवर्तिनी एकादशी की रात्रि में जागरण विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा तांबा और चांदी का दान करना भी पुण्यकारी माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की आराधना पूरी श्रृद्धा के साथ करते है, वह स्वर्ग में चंद्रमा की भांति स्थान पाते हैं।
इस प्रकार परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने बुराई का सर्वनाश करने के लिए वामन अवतार लिया था, इस लिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।