कालिदास: जीवन और रचनाएँ
भारतीय काव्यधारा की मन्दाकिनी को प्रवाहित कर मानव जीवन को आनन्दित व पवित्र करनें वाले, महाकवियों और विद्वानों ने समस्त विश्व में व्याप्त विभिन्न प्रकार के व्यापारों एवं चरित्रों को तो अपनी लेखनी के माध्यम से मूर्तरूप दिया, किन्तु अपने जीवन का परिचय एवं
व्यक्तित्व को उजागर नहीं किया । इसी परम्परा का निर्वहन करने वाले महाकवि कालिदास के जीवन वृत्त को जानने हेतु यह लेख एक विनम्न प्रयास है।
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महाकवि कालिदास निबंध
जीवन सम्बन्धी किवन्दितियाँ ऐसा माना जाता है कि कालिदास महामूर्ख थे, संयोगवश इनका विवाह राजा शारदानन्द की पुत्री विद्योत्तमा से हो गया। विद्योत्तमा समस्त विद्याओं व कलाओं में निपुण थी। जब विद्योत्तमा को कालिदास की मूर्खता का ज्ञान हुआ तो उसने महल के उपरी भाग से कालिदास को धक्का दे दिया। कालिदास सीधे माँ काली के चरणों में गिरें और इससे उनकी जिहवा कट गयी। भगवती ने प्रसन्त होकर “बरं ब्रूहि” कहा और कालिदास के मुख से विद्या शब्द निकला। परिणामस्वरूप कालिदास अत्यन्त विद्धान एवं काव्यज्ञ हो गये। काव्यशवित प्राप्त करके वे विद्योत्तमा के घर पहुँचे और कहा “अनाबृतकपार्ट द्वारं देहि” पत्नी ने उत्तर दिया “अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः” कालिदास ने इन तीनों शब्दों को लेकर तीन [कुमारसम्भव,मेघदूत और रघुवंश) ग्रन्थों की रचना की।
ऐसा भी माना जाता है कि एक बार लंका के राजा कुमारदास ने, एक बेश्या को प्रश्न दिया तथा इसका उत्तर देने पर प्रचुर धनराशि देने की घोषणा की। समस्या [प्रश्न] यह था कि “कमले कमलोत्पत्ति: श्रूयते न च दृश्यते“ अर्थात् कमल से कमल की उत्पत्ति सुनी तो जाती
है, देखी नहीं जाती। कालिदास ने उस वेश्या को इस प्रश्न का उत्तर बता दिया- बाले तव “मुखाम्भोजे कथमिन्दीवरद्दयम्” अर्थात् हे बाले, तुम्हारे मुख कमल पर यह दो नयन कमल समान है। समस्या की पूर्ति हो जाने पर स्वर्णराशि के लोभ के वशीभूत होकर उस वेश्या ने
कालिदास की हत्या करवा दी। कुमारदास कालिदास के वध को सुन इतने दुःखी हुए कि वे भी उसी चिता में जल गये।
ऐसा भी माना जाता है कि वह विकम सम्बत् के संस्थापक राजा विकमादित्य के जवरत्नों में से थे।
कालिदास राजाभोज के आश्रित कवि माने जाते है। वस्तुतःधारा के राजा भोज का आश्नित कवि परिमल था। इसका अपरनाम पद्मगुतत था। वस्तुतः यह सभी किवदन्तियाँ प्रमाणिकता के अभाव में कल्पित ही लगती है।
जन्मस्थान
कालिदास के जन्म के विषय में अन्त: साक्ष्यों का अभाव है। अतः विद्वानों नें ब्राहय साक्ष्यों को आधार लेकर अनुमान के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकालैं- महाकवि को कालीमाता का वरदान प्राप्त था, वे कालीमाता के अनन्य उपासक थे। काली का उपासना केन्द्र बंगाल ही
रहा है। अत: बंगाली विद्वान कालिदास को बंगाल का कवि मानतें है।
कश्मीर के विद्वात उनको कश्मीरी सिद्ध करनें का प्रयास करते है। कालिदास ने अपनी रचना में हिमालय और हिमालय पर्वत से लगे हुए आसपास के स्थानों का मनोहारी वर्णन किया है। अत: वे काश्मीर में ही जन्में थे। इसके विपक्ष मे विद्वानों का मत है कि कल्हणकूृत
राजतरंगिणी में कश्मीर कवियों के वर्णन में कालिदास का नामोल्लेख नहीं है।
कुछ विद्वानों ने कालिदास को विदर्भ का माना है। कालिदास के ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर विदर्भ का नामोल्लेख है, जिससे इस स्थान विशेष के प्रति उनका प्रेम प्रकट होता है।
मेघदूत में गम्भीरा नदी, शिप्रा नही और भगवान महाकाल के मन्दिर का भावुकतापूर्ण वर्णन होने से तथा उज्जैन की भौगोलिकता का परिचय देने से महाकवि को विशालानगरी (उज्जैन) निवासी माना जाता है।
समय
विश्वसनीस सामग्री के अभाव में कालिदास के स्थिति काल के विषय मे विभिन्न विद्वानों द्वारा अनेक मत प्रस्तुत किये गये। विद्वानों की कल्पना एवं रूचि की अनेकरूपता तथा किवदक्तियों के बाहुल्य के कारण काल निर्धारण सम्बन्धी समस्या ओर उलझ गयी है। यदि
कालिदास के स्थिति काल के विषय में प्रचलित सभी मतों (ई.पू७वीं शत्ताब्दी के मत से लेकर ईसा की 44वीं शताब्दी तक) को दृष्टिगत किया जाना है।
(1 ) ‘मालविकाग्निमित्रम्” नाटक का नायक शुंगवंशी नरेश अग्निमित्र. को बताया है। अग्निमित्र मौर्यवंश के विनाशक सेनापति पुष्यमित्र के पुत्र थे। पुष्यमित्र का समय 450 ईपू माना जाता है। इस प्रकार से कालिदास 50ई.पू के पहले नहीं हो सकते।
2 कन्नौज सम्राट हर्षाश्रित महाकवि बाणभद्ट विरचित हर्षचरित की प्रस्तावना भाग में कालिदास का वर्णन है। “निर्गतासु न वा कस्य कालिदासस्य सूक्तिषु” हर्ष आश्रित होने के कारण बाण का समय 606 ई. से 547 ई. माना जाता है।
3) पुलकेशि द्वितीय के आश्रित कवि रविकीर्ति ने ऐहोल वाले शिलालेख मे कालिदास का नाम लिखा है- स विजयताम् रविकीर्ति: कविताश्रितकालिदासभारविकीर्ति उक्त शिलालेख का समय शक सम्वत् 556 है। अतः कालिदास को सातवीं शताब्दी के बाद का नहीं माना जा सकता।
डॉ. हार्नली, फर्ग्युसत तथा डॉ. हरप्रसाद शास्त्री कालिदास को छठी शताब्दी में सम्राट यशोर्धमन का सामयिक मानते है। ज्योतिर्विदाभरण नामक ग्रन्थ के अनुसार कालिदास सामयिक विकमादित्य के नवरत्नों में से थे। इस ग्रन्थ का रचनाकाल 580 ई. है।
भारतीय जनश्रुति के अनुसार ‘कालिदासकवयो नीता: शकारातिना” लेख के आधार पर कालिदास के ग्रन्थों में अंकित विक्रम पद के श्लेष के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि कालिदास किसी शकारि विकमादित्य के आश्रय मे थे जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी।
चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-443ई.) तथा उसके पौत्र स्कन्धगुप्त दोनो ने ही विकमादित्य की उपाधि धारण की थी।
रघुवंश के ‘ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रि” ‘इन्दुनवोत्थानमिवोन्दुमत्यै’ इत्यादि पक्तियों में इन्दु तथा चन्द्रमस् शब्द चन्द्रगुप्त को ही लक्षित करता है। “स्ववीर्यगुप्ता हि मनोः प्रसूति:” तथा ” जुगोपात्मानमत्रस्तो भेजे धर्ममनातुरः तथा जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम् इत्यादि स्थलों में
अनेक बार गुप् धातु का प्रयोग भी उनके गुप्तकालीन होने का संकेत करते है।
गुणादूय 78 ई.) की वृहत्कथा पर आश्रित सोमदेवकृत कथासरित् सागर में उज्जयिनी के राजा विकमादित्य का उल्लेख है। उसके अनुसार विकमादित्य परमारवंशी महेन्द्रादित्य का पुत्र था और उसने शकों को पराजित कर विजय के उपलक्ष्य में मालव गण स्थित सम्बत्
चलवाया, जो बाद में विक्रमादित्य के राज्याभिषेक का भी वर्णन है तथा पिता पुत्र दोनों कें शैव होने की बात कही गयी है।
जैन कवि मेरूतुगाचार्य द्वारा विरचित पद्मावली से पता चलता है कि उज्जयिनी के राजा गदर्भिल्ल के पुत्र विकमादित्य ने शकों से उज्जयिनी का राज्य महावीर के निर्वाण के 470 वें वर्ष (ईपू57 वर्ष में। छीन लिया था।
हाल की गाथा सप्तशती [प्रथम शताब्दी ई.) में विकमादित्य नामक एक प्रतापी ,उदार तथा महादानी राजा का उल्लेख है, जिसनें शकों पर विजय पाने के उपलक्ष्य में भृत्यों को लाखों रूपये उपहार दिया।
कालिदास के महाकाव्य
कालिदास ने तीन नाटक लिखे। उनमें से, अभिज्ञानशाकुंतलम को आम तौर पर एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है। यह अंग्रेजी में अनुवादित होने वाली पहली संस्कृत कृतियों में से एक थी, और तब से इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
मालविकाग्निमित्रम राजा अग्निमित्र की कहानी कहता है, जिसे मालविका नाम की एक निर्वासित दासी की तस्वीर से प्यार हो जाता है। जब रानी को इस लड़की के लिए अपने पति के जुनून का पता चलता है, तो वह क्रोधित हो जाती है और मालविका को बंदी बना लेती है ।
अभिज्ञानशाकुंतलम राजा दुष्यंत की कहानी बताता है, जो शिकार यात्रा पर एक ऋषि की दत्तक पुत्री शकुंतला से मिलता है और उससे शादी करता है। एक दुर्घटना उनके साथ होती है: गर्भवती शकुंतला, अनजाने में एक ऋषि को अपमानित करती है और ऋषि उसे शाप देते है, जिससे दुष्यंत उसे पूरी तरह से भूल जाएगा जब तक कि वह उसके साथ छोड़ी गई अंगूठी को नहीं देख लेता। गर्भावस्था की उन्नत अवस्था में दुष्यंत के दरबार की यात्रा पर, वह अंगूठी खो देती है । अंगूठी एक मछुआरे को मिलती है जो शाही मुहर को पहचानता है और उसे दुष्यंत को लौटाता है, जो शकुंतला की अपनी स्मृति को पुनः प्राप्त करता है और उसे खोजने के लिए निकल पड़ता है। काफी मशक्कत के बाद आखिरकार वे फिर से मिल जाते हैं।
विक्रमार्वण्यम (“विक्रमा और उर्वशी से संबंधित”) नश्वर राजा पुरुरवा और आकाशीय अप्सरा उर्वशी की कहानी कहता है जो प्यार में पड़ जाते हैं। एक अमर के रूप में, उसे स्वर्ग में लौटना पड़ता है, जहां एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के कारण उसे एक नश्वर के रूप में पृथ्वी पर वापस भेज दिया जाता है, इस शाप के साथ कि वह मर जाएगी (और इस तरह स्वर्ग लौट जाएगी)। कई दुर्घटनाओं के बाद, अभिशाप हटा लिया जाता है, और प्रेमियों को पृथ्वी पर एक साथ रहने की अनुमति दी जाती है।
कालिदास दो महाकाव्य कविताओं, रघुवंश (“रघु का वंश”) और कुमारसंभव (“कुमार का जन्म”) के लेखक हैं। उनकी काव्य कविताओं में मेघदूत और अष्टसंहार हैं।
- रघुवंशम् रघु वंश के राजाओं के बारे में एक महाकाव्य है।
- कुमारसंभव एक महाकाव्य कविता है जो कार्तिकेय के जन्म का वर्णन करती है, पार्वती को उनके पिता द्वारा ध्यानी शिव की सेवा के लिए भेजा जाता है, मनमाध ने पार्वती के लिए शिव में प्रेम पैदा करने का प्रयास किया, शिव ने अपने क्रोध में मनमाध को नष्ट कर दिया।
- अष्टसंहार प्रत्येक ऋतु में दो प्रेमियों के अनुभवों का वर्णन करते हुए छह ऋतुओं का वर्णन करता है।
- मेघदूत या मेघासंदेश एक यक्ष की कहानी है जो एक बादल के माध्यम से अपने प्रेमी को संदेश भेजने की कोशिश कर रहा है। यह कालिदास की सबसे लोकप्रिय कविताओं में से एक है और काम पर कई टिप्पणियां लिखी गई हैं।
कालिदास की भाषा शैली
कालिदास के काव्य को उसके सुंदर चित्रण और उपमाओं के प्रयोग के लिए मनाया जाता है। उनकी कृतियों के कुछ नमूना छंद निम्नलिखित हैं।
एक प्रसिद्ध उदाहरण कुमारसंभव में मिलता है। उमा (पार्वती) पूरे गर्मियों में भी ध्यान करती रही हैं, और जैसे ही मानसून आता है, बारिश की पहली बूंद उन पर गिरती है:
“Nikāmataptā vividhena vahninā
nabhaścareṇendhanasaṃbhṛtena ca ।
tapātyaye vāribhir ukṣitā navair
bhuvā sahoṣmāṇam amuñcad ūrdhvagam ॥
Sthitāḥ kṣaṇaṃ pakṣmasu tāḍitādharāḥ
payodharotsedhanipātacūrṇitāḥ ।
valīṣu tasyāḥ skhalitāḥ prapedire
cireṇa nābhiṃ prathamodabindavaḥ ॥”
— Kumārasambhava 5.23–24
इस कविता की सुंदरता “कई सामंजस्यपूर्ण विचारों के सुझाव के माध्यम से संघ” के परिणामस्वरूप आयोजित की जाती है। सबसे पहले (जैसा कि मल्लिनाथ की टिप्पणी में वर्णित है), विवरण उनकी शारीरिक सुंदरता के संकेत देता है: लंबी पलकें, निचले होंठ को थपथपाना, कठोर स्तन एक दूसरे को छूने के लिए पर्याप्त, गहरी नाभि, और इसी तरह। दूसरे (जैसा कि अप्पय दीक्षित की टिप्पणी में वर्णित है), यह उनकी मुद्रा को एक आदर्श योगिनी के रूप में सुझाता है: दर्द और आनंद के माध्यम से उनकी गतिहीनता, उनकी मुद्रा, और इसी तरह। अंत में, और अधिक सूक्ष्म रूप से, देवी माँ की धरती माँ से तुलना करने में, और बारिश पृथ्वी की सतह पर प्रवाहित होने पर, यह पृथ्वी की उर्वरता का सुझाव देती है। इस प्रकार यह श्लोक सुन्दरता, आत्म-संयम और उर्वरता को ध्यान में रखता है।
एक अन्य कार्य में, राजा आजा इंदुमती की मृत्यु पर दुखी होता है और एक साधु द्वारा सांत्वना दी जाती है:
“न पृथगजनवाक चुको वनम् वशीनाम उत्तम गंतुम अर्हसि।
ड्रमसनुमतां किम अंतरम यादी वायु द्वितये ‘पि ते कालां “
—रघुवंश 8.90
“हे राजा! आप आत्मसंयम वाले पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं। सामान्य लोगों की तरह दुःख से मारा जाना आपके लिए उपयुक्त नहीं है। यदि एक बड़ी हवा एक पेड़ और एक पहाड़ को समान रूप से हिला सकती है, तो पहाड़ कैसे बेहतर है? “
दुष्यंत ने अपने मित्र को शकुंतला का वर्णन किया:
“अनाघ्रतां पुष्पम किसलयं अलिनं कारा-रुहैर
अनाविद्: रत्नम मधु नवं अनास्वादिता-रसम्।
अखानां पूनयनं फलं इव च तद-रूपम अनघ:
न जाने भोक्तारं काम इह समुपस्थस्यति विधि”
— अभिज्ञानशाकुंतलम २.१०
“वह एक फूल लगती है जिसकी सुगंध किसी ने नहीं चखी है,
कामगार के औजार से काटा हुआ एक रत्न,
एक शाखा जिसे कोई अपवित्र हाथ बर्बाद नहीं करता है,
ताजा शहद, खूबसूरती से ठंडा।
पृथ्वी पर कोई भी आदमी उसकी सुंदरता का स्वाद लेने का हकदार नहीं है,
उसकी निर्दोष सुंदरता और मूल्य,
जब तक उसने मनुष्य के पूर्ण कर्तव्य को पूरा नहीं किया-
और क्या पृथ्वी पर ऐसा कोई है?”
महाकवि कालिदास के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- कालिदास को ‘भारतीय कवियों के राजकुमार’ और ‘भारतीय शेक्सपियर’ के रूप में जाना जाता है
- कालिदास राजा चंद्रगुप्त द्वितीय (चंद्रगुप्त विक्रमादित्य) के शासनकाल के दरबार के नवरत्नों में से एक थे।
- कालिदास के तीन संस्कृत नाटक हैं: विक्रमार्वण्यम, मालविकाग्निमित्रम और अभिज्ञानशाकुंतलम
- कालिदास की दो महाकाव्य कविताएँ हैं: रघुवंश और कुमारसंभव
- कालिदास के खंडकाव्य हैं: ऋतुसंहारा और मेघदूत
- पश्चिमी भाषा में अनुवादित होने वाला पहला भारतीय नाटक अभिज्ञानशाकुंतलम था। अनुवाद सर विलियम जोन्स द्वारा किया गया था।
- कालिदास की प्रथम काव्य कृति ऋतुसंहार है
- मेघदूत का अंग्रेजी में अनुवाद होरेस हेमैन विल्सन ने किया था। ऐसा माना जाता है कि कालिदास ने क्षिप्रा नदी के तट पर बैठकर यह रचना लिखी थी।
- जिन शिलालेखों में कालिदास का उल्लेख है वे हैं: ऐहोल शिलालेख और हनमकोंडा शिलालेख
- कालिदास की जिस कृति में केरल का उल्लेख किया गया है वह रघुवंश है।
कालिदास की पत्नी का नाम
कालिदास का विवाह राजा शारदानन्द की पुत्री विद्योत्तमा से हो गया। विद्योत्तमा समस्त विद्याओं व कलाओं में निपुण थी।
कालिदास किसके राजदरबारी कवि थे ?
कई प्राचीन और मध्ययुगीन पुस्तकों में कहा गया है कि कालिदास ,विक्रमादित्य नाम के एक राजा के दरबारी कवि थे।
कालिदास को किसने मारा?
कामिनी
किंवदंती है कि उन्हें कामिनी नामक एक महिला ने मार डाला था, जो सीलोन के राजा कुमारगुप्त के महल में एक वेश्या थी।
कालिदास का सबसे प्रसिद्ध नाटक कौन सा है?
शकुंतला,विक्रमीर्वश्यम
संस्कृत भाषा का सबसे महान कवि और नाटककार किसे माना जाता है?
कालिदास
कालिदास, संस्कृत कवि और नाटककार, शायद किसी भी युग के सबसे महान भारतीय लेखक।
कालिदास ने कितने महाकाव्य लिखे?
कालिदास द्वारा रचित दो नाटक मालविकाग्निमित्र और विक्रमोर्वसिया हैं। दो महाकाव्य हैं- रघुवंश और कुमारसंभव।
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