बछेंद्री पाल की जीवन परिचय : माउन्ट एवेरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं बछेंद्री पाल
बछेंद्री पाल की जीवन परिचय
बछेंद्री पाल की जीवन परिचय : आज आपको रूबरू करवाते है आपको आत्मविश्वासी और बहादुर महिला की जीवनी से… जी हाँ विश्व की सबसे उची चोटी माउंट एवेरस्ट पर चढाई करने वाले भारतीयों में बछेंद्री पाल का नाम भी आता है वो एवरेस्ट पर फतेह पाने वाली पहली भारतीय महिला है | वो ना केवल एक बार बल्कि दो बार माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा चुकी है | एक साधारण परिवार में जन्मी बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को भारत के उत्तरांचल में गढ़वाल जिले के एक छोटे से गाँव नकुरी में हुआ था | उनके पिता का नाम किशनपाल सिंह और माता का नाम हंसा देवी था | किशनपाल सिंह एक साधारण व्यापारी थे जो अपने पांच बच्चो के पालन पोषण करने के लिए गेहू , चावल और किराणे के सामान खच्चरों पर लादकर तिब्बत ले जाते थे और वहा से तिब्बती सामान लाकर गढ़वाल में बेचते थे | उस समय भारत के चीन के साथ अच्छे सम्बन्ध थे इसलिए तिब्बत आने जाने में कोई परेशानी नही होती थी | जब भारत के साथ चीन की लड़ाई हुयी उसके बाद बछेंद्री पाल के पिता का व्यवसाय ठप्प हो गया और वो अपने परिवार के साथ आकर काशी बस गये थे। कहा जाता है कि बछेंद्री पाल बचपन से ही बहुत चुस्त थी जो पढ़ाई के साथ साथ खेलकुद में भी अव्वल रहती थी | उनको पर्वतारोहण का शौक बचपन से था जिसके कारण केवल 12 वर्ष की उम्र में स्कूल पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की उचाई पर आसानी से चढ़ गयी थी | जब वो अपने सहपाठीयो के साथ चोटी पर पहुची तो मौसम अचानक खराब हो गया और उस दल को उस चोटी पर ही रात गुजारनी पड़ी | बिना भोजन पानी के उस रात को बछेंद्री पाल कभी नही भूल पायी और उसी दिन से उसके मन में पर्वतों के प्रति प्रेम ऑर ज्यादा बढ़ गया | बड़ी मुश्किल से उन्होंने मैट्रिक उच्च माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण की |
अब उनके माता पिता बछेंद्री पाल को ओर ज्यादा पढ़ाने के पक्ष में नही थे लेकिन महाविध्यालय के प्राचार्य के कहने पर बछेंद्री पाल ने कॉलेज में दाखिला ले लिया | अब कॉलेज ने उन्होंने शूटिंग भी सीखी और एक शूटिंग प्रतियोगिता में भी विजय प्राप्त की | उसके बाद बछेंद्री पाल ने स्नातकोत्तर उअर बी.एड. की परीक्षा भी उतीर्ण की |
बछेंद्री पाल पर्वतारोही बनना चाहती थी लेकिन घरवालो को उसका पर्वतारोही बनना बिक्लुल पसंद नही था क्योंकि वो चाहते थे कि वो किसी स्कूल में शिक्षिका बन जाए फिर उसकी शादी करा दी जाए | लेकिन बछेंद्री पाल कहाँ मानने वाली थी और बड़ी जिद्दी थी इस कारण बछेंद्री पाल ने उत्तराकाशी के नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग में प्रवेश ले लिया | उस प्रशिक्ष्ण केंद्र में उनका प्रदर्शन इतना अच्छा था कि उनको केंद्र का सर्वश्रेष्ठ छात्रा घोषित किया गया | इंस्टीट्यूट वाले जानते थे कि इस लडकी में एवरेस्ट में चढने की काबिलियत है और उसे इसके योग्य मानते थे |
1982 में ही उन्होंने संस्थान में प्रशिक्ष्ण के दौरान 21,900 फीट उचे गंगोत्री शिखर और 19,091 फीट उचे रदूगरिया शिखर पर सफलतापूर्वक आरोहण किया था | उनकी इसी काबिलियत के कारण उनको National Adventure Foundation (NAF) में instructor की नौकरी मिल गयी | वहा पर वो महिलाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्ष्ण देने का काम करती थी | इस तरह के पर्वतारोहण प्रशिक्ष्ण के दौरान बछेंद्री पाल मानसिक रूप से एवरेस्ट चढने के लिए तैयार हो गयी थी |
सन 1984 में भारत ने “एवरेस्ट-84 ” नामक एवरेस्ट पर चढने वाले अभियान दल में बछेंद्री पाल का चयन कर लिया गया जिसमे ग्यारह पुरुष और छ: महिलाओ का दल था | जिस दिन ये दल पर्वतारोहण के लिए नेपाल से रवाना हुआ तब अखबारों में इसकी खूब चर्चा हुयी थी क्योंकि इस दल में सबसे प्रशिक्षित पर्वतारोहीयो को भारत भेज रहा था | अब काठमांडू पहुंचने के बाद ये दल माउंट एवरेस्ट पर चढाई करने के लिए रवाना हुआ | एवरेस्ट को पहली बार अपनी आँखों से देखकर बछेंद्री पाल को अपने सपनों की उडान दिखाई दी जिसका सपना वो कई वर्षो से देख रही थी |
1984 में मई के महीने में दल ने शिखर पर चढाई शुरू की और 15-16 मई को वो दल 24 हजार फीट की उचाई पर पहुच गया | अब 24000 फीट चढ़ेने के बाद दल ने टेंटो में आराम करने का विचार किया और उसी रात एक जोरदार धमाका हुआ | बछेंद्री पाल और दल के साथियो ने जब बाहर निकलकर देखा तो उनका पूरा शिविर चारो ओर बर्फ से ढक गया था क्योंकि शिविर के उपर से एक हिमखंड टूटकर उनके उपर गिर गया था | अब पर्वतारोहियों ने चाकुओ से बर्फ को काट काटकर बाहर निकलने का रास्ता बनाया | इस घटना में दल के कई लोग घायल हो गये थे जिनको वापस नीचे बेस कैंप में पहुचाया गया |
अब बछेंद्री पाल उस घटना से सुरक्षित थी केवल सर में हल्की चोट आयी थी फिर भी उसने विपदाओ से बिना डरे आगे बढ़ने का फैसला लिया | अब 22 मई 1984 को नये पर्वतारोही दल में शामिल हो गयी क्योंकि पुराना दल वापस बेस कैंप जा चूका था | इस नये दल में बछेंद्री पाल एकमात्र महिला थी जो बड़े जोश से आगे बढ़ रही थी | अब 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही बर्फीली हावाओ में भी उन्होंने सीधी चढाई करना जारी रखा | अब तापमान भी गिरकर शून्य से 40 डीग्री कम हो गया था फिर भी बछेंद्री पाल उस दल के साथ हिम्मत से आगे बढ़ रही थी |
23 मई 1984 को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट चोटी पर पहुचकर एक इतिहास रच डाला और एवरेस्ट पर चढने वाली पहली भारतीय महिला का ख़िताब पा लिया जिसे कोई नही तोड़ सकता था | उस शिखर पर एक समय में केवल दो व्यक्ति ही रुक सकते थे क्योंकि चारो ओर हजारो फीट गहरी खाई थी और थोड़ी सी चुक पर जान जा सकती थी | अब Bachendri Pal बछेंद्री पाल ने बर्फ में अपनी कुल्हाडी गाडकर अपने आप को स्थिर किया और घुटनों के बल बैठकर ईश्वर को अपना सपना पूरा करने के लिए धन्यवाद दिया |
अब उसने अपने बैगपैक में से दुर्गा माता की तस्वीर और हनुमान चालीसा निकली और उन्हें बर्फ पर रख दिया | इस तरह एवरेस्ट का शिखर चूमने वाली पहली भारतीय और विश्व की पांचवी महिला बन चुकी थी | उनकी इस उपलब्धि के लिए भारत के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री और अन्य चर्चित लोगो ने उन्हें व्यक्तिगत बधाई दी |
अब माउंट एवेरेस्ट पर चढने के बाद भी वो रुकी नही और 1993 में एक बार फिर Bachendri Pal बछेंद्री पाल के नेतृत्व में भारत व नेपाल के महिला पर्वतारोहियो के साथ एक बार फिर एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की | इस टीम में उन्होने 18 पर्वतारोहियों को शिखर तक पहुचाया था जिसमे केवल 7 महिलाये थी जो बहुत आस्चर्य की बात थी | उसके बाद उन महिलाओं ने बछेंद्री पाल के नेतृत्व में The Great Indian Women’s Rafting Voyage – 1994 और First Indian Women Trans-Himalayan Expedition – 1997 का निर्माण किया जिन्होंने Rafting और Trekking के कई Adventurous कार्य किये |उसके बाद Bachendri Pal बछेंद्री पाल ने साहस और रोमांच से भरी कई गतिविधिया का नेतृत्व किया | वर्तमान में वो टाटा स्टील कम्पनी में नये युवक-युवतियों को पर्वतारोहण का प्रशिक्ष्ण देने लग गयी।
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