कौन सी है वो नज्म, जिसमे शायर एक हिंदुस्तान को खोजने निकला है, आइये पढ़ते हैं….
बरपा हुआ है हंगामा सरहदों पर, एक ओर जनता में डर का आलम है तो दूसरी तरफ युद्ध आतंक मचाने को नज़र गड़ाए हुए है. ऐसे में जईफ गंगा – जमुनी तहज़ीब को कंधे पर उठाये शायर अजमल सुल्तानपुरी अपने सपनों के हिंदुस्तान को खोजने निकले हुए हैं.
ये रही नज़्म, पढ़े ……..
कहाँ है मेरा हिंदुस्तान
मुसलमां और हिंदू की जान
कहां है मेरा हिंदुस्तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
मेरे बचपन का हिंदुस्तान
न बंग्लादेश न पाकिस्तान
मेरी आशा मेरा अरमान
वो पूरा-पूरा हिंदुस्तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
वो मेरा बचपन, वो स्कूल
वो कच्ची सड़कें, उड़ती धूल
लहकते बाग, महकते फूल
वो मेरा खेत, मेरा खलिहान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
वो उर्दू गजलें, हिंदी गीत
कहीं वो प्यार, कहीं वो प्रीत
पहाड़ी गीतों के संगीत
दिहाती लहरा, पुरबी तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
जहां के कृष्ण, जहां के राम
जहां की श्याम सलोनी शाम
जहां की सुबह बनारस धाम
जहां भगवान करैं स्नान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
मुसलमां और हिंदू की जान
कहां है मेरा हिंदुस्तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
जहां थे तुलसी और कबीर
जायसी जैसे पीर फकीर
जहां थे मोमिन, गालिब, मीर
जहां थे रहमत और रसखान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
मुसलमां और हिंदू की जान कहां है मेरा हिंदुस्तान
वो मेरे पुरखों की जागीर
कराची, लाहौर और कश्मीर
वो बिल्कुल शेर की सी तस्वीर
वो पूरा-पूरा हिंदुस्तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
जहां की पाक-पवित्र जमीन
जहां की मिट्टी खुल्दनशीन
जहां महाराज मोईनुउद्दीन
गरीब नवाज हिंदुस्तान
मुसलमां और हिंदू की जान
कहां है मेरा हिंदुस्तान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
ये भूखा शायर, प्यासा कवि
सिसकता चांद, सुलगता रवि
ये भूखा शायर, प्यासा कवि
सिसकता चांद, सुलगता रवि
वो जिस मुद्रा में ऐसी छवि
करा दे अजमल को जलपान
मैं उसको ढूंढ रहा हूं
यह नज़्म ( कविता ) शायर अजमल सुल्तानपुरी द्वारा पिरोई गई है. दिल बाग़ बाग़ हो गया ना पढ़ कर.