साम्यवाद और साम्यवाददयो की तथा कदथत शैक्षदिक और दशक्षि स्वंत्रता और दिष्पक्षता : एक अवलोकि
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प्रस्तावना
मुझे फ़िल्मों का बहुत ही कम ज्ञान हैं अंत मुझे मेरे एक जूनियर ने कुछ फिल्में देखने को बोला जोकि मनोरंजक भी हो और ज्ञानप्रद भी हो ! उसकी सलाह पर मैंने कुछ फिल्में देखी पर उन फिल्मो में से एक में यह दिखाया गया कि एक कम्युनिस्ट माओवादी प्रोफेसर एक bussiness स्कूल में पढ़ता हैं जिसमे अप्रत्यक्ष रूप से यह दिखाया गया हैं कि कम्युनिस्ट बहुत ही विद्वान होते हैं और म्युनिज्म विद्वानों से सम्बंधित हैं इस तरह की बाते अन्य ऐसी फ़िल्मों में दिखाई गयी होंगी और कही न कही यह विचार बहुत से छात्र और लोग भी मानतें हैं और इस विचारधारा को अपनाते हैं परन्तु जैसा कि डॉ. गुहा कहते हैं कि यह सामाजिक अन्वेषण और अवलोकन का एक संकुचित वैज्ञानिक तरीका मात्र हैं ! परन्तु इस बात को भी रखना जरुरी हैं कि सिर्फ यही सामाजिक अन्वेषण और अवलोकन का एक मात्र मॉडल नहीं हैं इसके अलावा और भी मॉडल हैं जिससे शायद वो लोग
अनभिज्ञ हैं जो साम्यवाद को मानते हैं !
साम्यवाद को हमारे देश के विश्वविद्यालयों मे शिक्षण के अनुकूल और शैक्षणिक स्वंत्रता से जोड़कर दिखाया गया हैं परन्तु ऐतिहासिक तथ्य यह दिखाते हैं कि ऐसा नहीं हैं इसने सदैव एक स्वतंत्र और निष्पक्ष शिक्षण और शैक्षणिक परिवेश का गला घोटा हैं और इसके अनेक उद्धरण साम्यवाद के पुरोधा देशो पूर्व सोवियत संघ और और आधुनिक साम्यवादी चीन के काल में देखे जा सकते हैं
साम्यवाद और “Dissent, Debate and Discussion” : चीन तथा रूस
रूस में साम्यवाद के दौर में इतिहास के साथ साथ अन्य मानविकी विषयों को इस तरह तोड़ा और मरोड़ा गया कि वह केवल साम्यवादी शासन कि नीतियों को बढ़ावा दे और विरोध के स्वर न उठाये ! इस तरह शिक्षण के आधारभूत सिद्धांत “dissent, Debate and Discussion” को कुचल दिया गया और जहा भी डिबेट और चर्चा को स्थान दिया गया उसको भी बहुत संकुचित बना दिया गया साथ ही अपने उदेश्यों और अपने शासन को किसी भी तरह आलोचनात्मक विश्लेषण से बचाने के लिए देश के सभी स्वतंत्र और निष्पक्ष विद्वानों को भी प्रताड़ित किया गया और उनकी आवाज़ों को दबा दिया गया !
इसका एक उद्धरण साम्यवादी चीन के हालिया इतिहास में देखा जा सकता हैं ! माओ त्सुंग ने समाजशास्त्र और मानव शास्त्र को “प्रतिकारी बुर्जुआ विषय” कह कर आलोचना की ! माओ के इस कथन के यह स्पष्ट रूप से दिखता हैं कि माओवाद– साम्यवाद समाज के अवलोकन और अन्वेषण की अन्य प्रद्धातियो और प्रणालियों के अस्तित्व और उनके प्रचालन को सहन और स्वीकार नहीं कर सकते और यह केवल साम्यवादी विचारधारा का ही के छत्र प्रभुसत्ता चाहते हैं क्योकि अन्य मानविकी विषयों के अध्यन से एक व्यक्ति इनकी विचारधारा और उसके ढ़ाचे का आलोचनात्मक विश्लेषण करेगा और इन सबसे जन्मीं चेतना और प्रद्धतिया का प्रयोग करके उनके मौजूद साम्यवाद और साम्यवादी शासन के ढांचे का आलोचनात्मक मूल्यांकन और अवलोकन करेगा और साम्यवाद और उसके ढ़ाचे के ऊपर इसके ऊपर सवाल लगा इसकी आलोचना करेगा ! इसके कुछ उद्धरण आधुनिक चीन के एक गणतंत्र देश से साम्यवादी देश में रूपांतरण और उसके नए साम्यवादी शासन की स्थापना के दौर में भी देखे जा सकते हैं.
जिसका विवरण प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा जी ने भी दिया हैं जिसमे उन्होंने प्रसिद्द और प्रभावकारी चीनी समाजशास्त्री और मानव शास्त्री फ़ी क्सिओतोंग (Fei Xiaotong) का उद्धरण दिया हैं जिन्होंने लन्दन में पढाई की और चीन आकर 1930-40 के उथल पुथल भरे दशकों में अपना लेखन और अध्यापन शुरू किया परन्तु जब 1949 में चीन में साम्यवादी सरकार बनी और साम्यवाद आया तब उन्होंने महसूस किया कि अब चीन में “शुद्ध शोध” के दिन ढल चुके हैं और अब सारा शैक्षणिक और शिक्षण साम्यवाद का गुलाम हो चुका हैं !
फ़ी चूँकि साम्यवादी नहीं थे इस लिए 1957-58 के दक्षिणपंथी विरोधी अभियान में उनपर समाजवाद और पार्टी के विरुद्ध काम करने का आरोप लगा कर उन पर कथित रूप से हमला किया गया और उनको चीन में पढ़ने और विदेश यात्रा करने से रोक दिया गया ! बाद के दिनों में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान उनको जबरदस्ती “पुनः अध्यन” अर्थात ब्रेन वाशिंग के लिए भेज दिया गया ! इसी तरह की अन्य गतिविधियाँ और भी होंगी जिसके द्वारा स्वतंत्र और निक्ष्पक्ष अध्यन और अध्यापन को कुचला गया और इसके प्रमाण आज भी देखे आ सकते हैं !
2004 में प्रकाशित अपनी एक किताब में, डॉ. गुहा ने यगोस्लाविक साम्यवादी मिलोवन दिलास (Milovan Dilas), जोकि स्टालिन के काल में रूस गए और बाद में वह की हकीकत देख और उनके ढकोसले को देखकर उन्होंने साम्यवाद से मुंह मोड़ लिया, का एक विवरण पेश किया जिसमे उन्होंने कहा हैं कि “साम्यवादी शासन लोकतान्त्रिक नहीं बल्कि कुलीनतंत्र हैं जिसमे पार्टी और उसका नौकरशाही तंत्र लोगो पर तानाशाही चलते हुए उनको हुक्म देता हैं” ! मिलोवन की इस बात में आया “लोगो” शब्द समाज के विद्वान और लेखक वर्ग को भी शामिल करता हैं जो समाज के ज्ञान का ज्योति पुंज माने हैं ! जिस तरह चीन में स्वतंत्र शिक्षण और शैक्षणिक
माहौल की स्वतंत्रता को ख़त्म कर के उसको तबाह और गुलाम बनाया गया इसके साक्ष्य साम्यवादी रूस में भी देखे जा सकते हैं जहा पर पूरा का पूरा तंत्र ही स्कूल की किताबो से ले कर ऊपर तक इस प्रताड़ना का पीड़ित रहा हैं और लोगो को गलत जानकारियाँ देकर और उनको गलत सूचना देकर उनको गुमराह किया जाता रहा !
इस प्रकार, एक स्वतंत्र और लोकतान्त्रिक शिक्षण और शैक्षणिक माहौल को सदैव साम्यवाद द्वारा कुचला जाता रहा हैं जो आज भी चीन जैसे देशो में विधमान हैं !
निष्कर्ष
अंत यह देखा और कहा जा सकता हैं कि साम्यवाद का आधार पूर्णता तानाशाही रहा हैं और हैं और इसका प्रभाव और भूमिका किसी भी शैक्षणिक परिवेश में वहा के “dissent, Debate and Disscussion” के माहौल को ख़त्म करने में ही रही हैं और आज जो साम्यवादी इस 3D की बात करते हैं वो या तो इस ऐतिहासिक तथ्य से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं या जानबूझ कर अनजान बन रहे हैं !