पर्य़ावरण दिवस :लॉकडाउन पर्य़ावरण के लिए सुकून भरा…..लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को पहुंचा रहा नुकसान
पर्य़ावरण दिवस : भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में आज भी बहुत सारे लोगों के लिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ कर पाना किसी जंग को जीतने से कम नहीं है। ऐसे में जब देश कोरोना महामारी से जूझ रहा हो तो स्थिति और भयावह हो जाती है।
बात करें भारत की अर्थव्यवस्था की तो वह सबसे अधिक देश के किसानों, मजदूरों और आम आदमी के विकास पर निर्भर करती है। लेकिन कोरोना वायरस ने इन्हीं लोगों के जीवन को बेपटरी कर दिया है। जहां एक ओर देश में प्रवासी मजदूर “रिवर्स माइग्रेशन” यानि कि शहर से वापस गांव की ओर पलायन कर रहे हैं तो वहीं सीएमआईई (फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 12 करोड़ नौकरियां खत्म होने की कगार पर हैं। जिससे सबसे ज्यादा भारत का गरीबी रेखा से ऊपर जीवनयापन करने वाला वर्ग प्रभावित हुआ है।
भूखे पेट भजन न होत।
यानि कि किसी भी साधारण मनुष्य के जीवन में रोटी, कपड़ा और मकान की क्या अहमियत होती है, हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते है। ऐसे में जब दुनिया वैश्विक महामारी के दौर से गुजर रही हो तो इस विषय के बारे में बात करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
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लॉकडाउन में मुस्कुरा रही है प्रकृति
कोरोना वायरस ने इंसानों को भले ही परेशान कर दिया हो लेकिन प्रकृति और पर्यावरण को इससे काफी फायदा पहुंचा है। जहां एक ओर लोग अपने-अपने घरों में बंद है, उद्योग धंधे ठप है, वहीं गाड़ियों से निकलने वाले धुंए के कम होने से हवा की सेहत में सुधार हुआ है और नदियों के जल में शुद्धता नजर आ रही है। इतना ही नहीं लोगों को साफ आसमान होने की वजह से अपने घरों से ही पहाड़ दिखाई दे रहे हैं। एक तरफ सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण और नदियों की साफ-सफाई को लेकर जहां करोड़ों रुपये खर्च किए जाते रहे है तो वहीं 20 मार्च से लॉकडाउन के चलते पर्य़ावरण में अहम बदलाव हो रहे है, जिसे लॉकडाउन के दौरान भी महसूस किया जा सकता है।
देश की जीडीपी में दर्ज हुई गिरावट
जान भी बचानी है और जहान भी।
जिसके चलते भारत सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को पुनं जीवित करने के लिए करोड़ों रुपये के आर्थिक पैकेज का एलान किया गया है। लेकिन जब तक इसका प्रयोग जमीनी स्तर पर नहीं होगा तब तक हालात में सुधार संभव नहीं है। हालांकि अनुमान य़ह भी लगाया जा रहा है कि अगर भारत सही वक्त पर कोरोना वायरस को नियंत्रित करने में कामयाब रहा तो जीडीपी वृद्धि दर 4 फीसदी हो सकती है। लेकिन अगर संकट गहराता है तब यह वृद्धि दर घटकर 1.5 फीसदी हो जाएगी।
चांद पर कदम रखने वाली दुनिया चाहरदीवारी में हुई कैद
आज से कुछ महीने पहले मनुष्य विभिन्न तरह के कार्यों में व्यस्त था। लेकिन 2020 की शुरुआत में चीन के वुहान शहर से निकले वायरस से हर कोई कहीं न कहीं प्रभावित हुआ है। सर्वशाक्तिशाली देशों में अग्रणी अमेरिका,चीन,इटली और स्पेन जैसे देश भी अपने लोगों को इसके कहर से बचाने में नाकाम साबित हो रहे है। संक्रमण थम भी जाए लेकिन इसका असर आगे तक बना रहेगा अब चाहे वह देशों की अर्थव्यवस्था पर हो या जिन्दगियों को दुबारा पटरी पर लाने में।
थोड़ा सोचें तो हम पाएंगे कि भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हम यह भूल गए थे कि इंसान सिर्फ कोल्हू का बैल नहीं है उसके अन्य कई नैतिक और सामजिक भी कर्तव्य है, जिसका उसे पालन करना होता है। यह सब इसी का परिणाम है कि हम एडवांस हो चले है तो हमारे लिए यह बातें व्यर्थ सी है कि हमसे कमजोर को हमें आगे ले जाना है, प्रकृति को अपने स्वार्थ के लिए समाप्त नहीं करना है, जीवों पर अत्याचार नहीं करना है, कमजोर वर्ग की आवाज को नहीं दबाना है और गलाकाट प्रतिस्पर्धा का माहौल नहीं तैयार करना है।
मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य अच्छे कर्म करना है, धर्म की रक्षा करना है लेकिन हम तकनीक के चलते यह सब भूलते जा रहे है तो ऐसे में शायद कोरोना काल चिंतन का दौर है जो हमें जीने के भूले हुए तरीके याद कराने आया है। साथ ही यह चेतावनी देकर जाएगा कि हमें जीने की यह परिभाषा बदलनी होगी।
यह प्रकृति से छेड़छाड़ का ही परिणाम हैं
शास्त्रों के अनुसार जब प्रकृति अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लेती है तो उसकी कीमत विभिन्न रूपों में समस्त मानव जाति को ही चुकानी पड़ती है। प्राकृतिक आपदाएं और बीमारियां भी इसी प्रकोप के तहत उत्पन्न होती है जो निश्चितकालीन तरीके से मनुष्य और उससे जुड़े हर चीज को प्रभावित करती है।
आवश्यकता आविष्कार की जननी है
कोरोना महामारी ने लोगों को एक बार फिर से शारीरिक दूरी और साफ-सफाई का पाठ पढ़ा दिया। जिसके चलते लोगों को कोरोना से बचाव के लिए सैनिटाइज करने की आवश्यकता आन पड़ी, ऐसे में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में रहने वाले 62 वर्षीय नाहरू खान ने 48 घंटों के भीतर ऑटोमैटिक सैनिटाइजिंग मशीन का आविष्कार करके बता दिया कि समस्या चाहे कितनी बढ़ी हो, उसका हल मिल ही जाता है।
कोरोना वारियर्स के रूप में आगे आए कई धार्मिक संस्थांन
कहते है भगवान स्वंय धरती पर नहीं आते बल्कि वह इंसान के भेष में गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करते है। जोकि विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था इस्कॉन ने कोरोना काल में अपनी सेवाओं के माध्यम से साबित कर दिया है। इसके अलावा महाराष्ट्र के प्रसिद्ध शिरडी साईं बाबा मंदिर, महावीर हनुमान मंदिर पटना, आरासुरी अम्बा जी माता देवस्थानम ट्रस्ट, गुजरात के स्वामीनारायण मंदिरों के अलावा स्वदेशी चीजों का प्रसार करने के लिए जाने जानी वाली पंतजलि ट्रस्ट समेत अन्य कई धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं कोरोना से लड़ाई में आगे आई हैं।
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