गाँधी और अम्बेडकर में मतभेद और पूना पैक्ट
गाँधी और अम्बेडकर: आज अमेरिका में नस्लवाद को लेकर एक बहुत बड़ा विरोध चल रहा है। ऐसे में खबर आयी कि वहाँ गाँधीजी की प्रतिमा को खंडित किया गया। हालांकि बाद में वहाँ से अधिकारिक माफीनामा भी आया। इन सब घटनाओं के बीच में भारत में भी गाँधी और अम्बेडकर के दलित समाज के लिए किए गए कार्यों और विचारों को तलाशने की शुरुआत हुई।
साथ ही अम्बेडकर का महिमामंडन और गाँधी का खण्डन करने की शुरुआत भी हुई। मतभेदों को बढ़ाने में अरुंधति रॉय की किताब को भी उद्धृत किया जाने लगा। इस बीच गाँधी और अम्बेडकर के आपसी मतभेद की भी चर्चा केन्द्र में आयी।
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क्या गाँधी दलित विरोधी थे ?
गाँधी पर आज ये आरोप बहुत लग रहे हैं कि वो दलित विरोधी थे। यहाँ हमारे लिए कुछ सामान्य बातें समझना ज़रूरी हो जाती हैंं। पहली बात गाँधी वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे परंतु उन्होंने छूआछूत का विरोध किया था। गाँधी ने राजनीति में उतरने से और कांग्रेस से जुड़ने से पहले ही एक दलित परिवार को अपने आश्रम में रहने दिया जिसके कारण उनका काफी विरोध किया गया और आश्रम बंद करने की नौबत तक आ गई परन्तु वो अपने निर्णय से हटे नहीं। साथ ही उन्होंने ही इन्हें ‘हरिजन’ नाम से सम्बोधित भी किया।
जब अम्बेडकर ने पहली बार महाड़ सत्याग्रह किया तो दलितों के साथ मारपीट की गई और जब ये बात गाँधी को पता चली तो वो ‘यंग इंडिया‘ के अप्रैल 1927 के अंक में सारा दोष सवर्णों को देते हुए लिखते हैं कि ‘डॉ. अम्बेडकर ने जो अश्पृश्यों को तालाब पर पानी पीने की सलाह देकर बंबई परिषद और महाड़ नगरपालिका के प्रस्तावों को कसौटी पर कसा,उनका यह काम मैं समझता हूँ बिल्कुल उचित ही था।’ इन सभी उदाहरणों से यही स्पष्ट होता है कि गाँधी दलित विरोधी नहीं थे।
पूना पैक्ट : गाँधी और अम्बेडकर
पूना पैक्ट को अक्सर इन दोनों व्यक्तित्वों के साथ जोड़ा जाता है। इसलिए इसे जानना बेहद अहम् हो जाता है। क्या था पूना पैक्ट? क्यों इसे गाँधी और अम्बेडकर के बीच बार-बार लाया जाता है?
हम इस पैक्ट को संक्षिप्त में इस प्रकार समझ सकते हैं कि जिस प्रकार अंग्रेजों ने पृथक निर्वाचन के ज़रिए हिन्दुओं और मुसलमानों को बांटने की साजिश रची थी उसी प्रकार हिन्दुओं में भी दलितों और सवर्णों के बीच यह रेखा खींच दी गई थी। इसी के विरोध में गाँधी अनशन पर बैठ गए और आख़िर में जो समझौता हुआ उसे ही हम पूना पैक्ट कहते हैं।
अम्बेडकर इस पैक्ट के पूर्व अंग्रेजों के इस बात के समर्थन में थे कि दलित वर्ग के लोगों के पास दो वोट एक अपने बीच के सदस्य के लिए तथा दूसरा अन्य सदस्य को निर्वाचित करने के लिए होना चाहिए पर गाँधी इसे फूट के तौर पर देखते थे। पूना पैक्ट द्वारा प्रांतीय चुनावों में दलित वर्गों के लिये 147 सीटें आवंटित किया गया। साथ ही अन्य कुछ फैसले भी दलितों के हित में लिए गए।
फिर मतभेद क्यों?
जब दोनों व्यक्ति दलित समाज की भलाई चाहते थे तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मतभेद क्यों? इसका उत्तर यह है कि गाँधी इस समस्या का धीमा परन्तु दीर्घकालिक हल चाहते थे जबकि अम्बेडकर तात्कालिक। इसी को लेकर ज्यादा मतभेद रहे। साथ ही गाँधी वर्ण व्यवस्था के भी समर्थक थे। उनका मानना था इससे श्रम विभाजन और विशेषीकरण को बढ़ावा मिलता है जबकि अम्बेडकर का ये मानना नहीं था।
पूना पैक्ट :मतभेद या मनभेद
आज इन दो व्यक्तियों के समर्थक आपस में मतभेद और मनभेद दोनों रखे हुए हैं। एक पक्ष के समर्थक बिना दूसरे को पढ़े आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। वो शायद ये भूल जाते हैं कि जब 6 सितम्बर 1954 को अम्बेडकर ने नमक पर टैक्स लगाने का सलाह देते हैं तो उसके लिए ‘गाँधी निधि’ नाम प्रस्तावित करते हैं।
उनका कहना था ‘मेरे मन में गाँधीजी के प्रति आदर है। आप जानते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, गाँधीजी को पिछड़ी जाति के लोग अपनी जान से भी ज्यादा प्यारे थे। इसलिए वह स्वर्ग से भी आशीर्वाद देंगे’। साथ ही अगर आप दूसरी तरफ गाँधी को देखेंगे तो उन्होंने अम्बेडकर का नाम संविधान सभा के लिए सुझाया था। अम्बेडकर ने भी संविधान में गाँधी के दर्शन को भी स्थान दिया।
निष्कर्ष
अंत में हमें यह समझने की आवश्यकता है कि गाँधी और अम्बेडकर दोनों ही भारत की नींव के निर्माता थे। आज़ादी के दौरान हमें ऐसे कई मतभेद मिलते हैं। ये मतभेद ही हमें बढ़ने में और आज इस भारत तक पहुँचने में सहायक बने। इसलिए आज इन दोनों व्यक्तियों के विचारों को समझने और समाज में इन्हें प्रसारित करने की ज़रूरत है ताकि हमारा समाज इनके विचारों के अनुकूल बने।
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