राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस: जिस देश में डॉक्टर को भगवान माना जाता है और अस्पताल को मंदिर माना जाता है, वहां कोरोना वारियर्स बनकर उभरे है डॉक्टर्स
Table of Contents
राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस:
राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस: जिस देश में डॉक्टर को भगवान माना जाता है और अस्पताल को मंदिर माना जाता है, वह भारत देश आज सभी डॉक्टरों को सर झुका कर नमन करता हैं। 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है, वैसे तो हर दिन राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस जैसा ही हैं परंतु, इसी दिन पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ.बिधान चंद्र रॉय की मृत्यु और जन्म संयोगवश एक ही दिन का हैं और उनके सम्मान में ही यह दिन राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस के लिए सुनिश्चित हुआ।
जिसे भगवान बनाया इंसान ने,डॉक्टर वो कहलाते हैं,बस फ़र्क इतना की मंदिर में नहीं,हॉस्पिटल में यह पूजे जाते है।
डॉ.बिधान चंद्र रॉय का जीवन परिचय
डॉ॰ बिधान चंद्र राय का जन्म 1 जुलाई 1882 को हुआ था और उनकी मृत्यु भी संयोगवश 1 जुलाई को ही 1962 में हुई। यह पेशे से चिकित्सक,समाज सेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे। जब उनकी मृत्यु हुई उस वक्त वे पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री थे। उनके जन्मदिन 1 जुलाई को भारत मे ‘राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस ‘ के रूप मे मनाया जाता है।
कोरोना वॉरियर्स में डॉक्टर सर्वोपरि
आज विश्व कोरोना जैसी बीमारी से लड़ रहा हैं, इस लड़ाई में जो व्यक्ति शुरू से ही घर से बाहर जा रहा हैं उन्हें भारत में कोरोना वॉरियर की संज्ञा दी गई हैं। इसमें डॉक्टरों ने शुरू से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं,अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों के जान को बचाने के लिए अपने परिवारजनों को छोड़ कर भी, अपने डॉक्टर धर्म को निभा रहे हैं वो प्रतिज्ञा निभा रहे हैं जो उन्होंने अपनी डिग्री पूरी करते वक़्त अपने काम के प्रति ली थीं।
भारत इन सभी कोरोना वॉरियर्स को शत् शत् नमन करता हैं। साथ ही डॉक्टर जिस मेहनत और लग्न से कोरोना मरीजों की देखभाल कर रहे है, उसके लिए हमारे पास शब्द कम पड़ सकते है। लेकिन उनको देखकर यह बात साबित होती है कि भगवान स्वंय धरती पर हम मनुष्यों की सहायता के लिए नहीं आते, बल्कि वह अपने रूप में डॉक्टर्स को धरती पर भेजते है। ऐसे में हमें डॉक्टर्स को हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। क्योंकि वैश्विक महामारी के इस दौर में उनकी अनूठी लग्न सच में तारिफ़ के काबिल हैं।
जिस देश में डॉक्टर को भगवान माना जाता है
भारतीय संस्कृति वैदिक संस्कृति से जुड़ी है ऐसे में चिकित्सा भी वैदिक संस्कृति से चली आ रही हैं, सबसे पहले वैदिक संस्कृति में आयुर्वेद का निर्माण हुआ था, आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार मन से सारे रोगों की उत्पति होती है और डॉक्टर हमारे मन को पढ़ने की कला जानता है।
वैदिक काल में भी चिकित्सक होते थे, उनकी भी आवश्यकता पड़ती है जैसे, शिवपुराण के दौरान शिव जी ने दक्ष का सर काट दिया था तो अश्विनी कुमारों ने उनका नया सर लगाया था, इसी तरह गणेश जी का सर कटने पर हाथी का सर जोड़ा गया था ऐसी कई घटनाएं महाभारत और रामायण में देखने को मिलती है अर्थात् डॉक्टर आज ही नहीं वैदिक काल में भी किस तरह लोगो की जान बचाते थे।
डॉक्टरों जैसा स्वंयसेवी कोई नहीं
वैदिक काल हो या आधुनिक काल डॉक्टरों ने अपने जान से ऊपर अपने रोगी के जान को मानते हैं, आज विज्ञान हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा हैं ऐसे मी चिकित्सा भी अपनी नई नई खोज में लगी हुई हैं जिससे काफ़ी फ़ायदे हो रहे हैं और लोगों की जिंदगी बच रही है इन सबका श्रेय केवल डॉक्टरों को जाता हैं। इस डॉक्टर दिवस पर हमें भी प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि कहीं भी कोई भी रोग ग्रस्त दिखेगा फो उससे मुंह ना फेर कर उसे अस्पताल तक लेकर जाएंगे, और इंसानियत धर्म को हमेशा ऊपर रखेगें।
#सम्बंधित:- आर्टिकल्स
- कोरोना को दें मात
- योग करें निरोग रहे
- योग करे कोरोना को मात दें
- लॉकडाउन का पर्यावरण पर प्रभाव
- योग और कोरोना
- जगन्नाथ रथ यात्रा पर रोक
- कोरोना की रोकने में केजरीवाल फेल
- लॉकडॉउन में भारत सरकार की नाकामी
- आयुर्वेद
- कोरोनाकाल में आयुर्वेद
- आयुर्वेद का इतिहास
- विश्व शरणार्थी दिवस
- वन महोत्सव
- पितृ दिवस
- पर्य़ावरण दिवस
- गायत्री जयंती
- ऑपरेशन ब्लू स्टार
- नर्स दिवस
- विश्व जनसंख्या दिवस