चंगेज खान: विश्व का सबसे क्रूर शाशक | क्यों नहीं किया चंगेज खान ने भारत पर आक्रमण ?
इतिहास में अनेक ऐसे शासक हुए हैं जो शक्ति की मिसाल थे । कुछ अच्छे थे और कुछ बुरे। पर यह अच्छाई बुराई नज़रिये पर निर्भर करता है कि हम उस शासक को कैसे देखते हैं। ठीक इसी तरह एक शासक था जिसने 1206 -1227 ई. के बीच विश्व के एक बड़े भूभाग पर अपनी विजय पताका को लहराया था जिसका क्षेत्रफल लगभग 3 करोड़ 30 लाख वर्ग किलोमीटर माना जाता है। जिन क्षेत्रों पर उसने हमला किया वहाँ के लोग उसे क्रूर मानते थे।
जबकी जहाँ का वो है वहाँ के कुछ लोग आज भी उसकी तस्वीर घर में रखते हैं। वह इतना क्रूर था कि उसने लगभग 4 करोड़ हत्याएं करवाई और इतना अय्याश था कि उसके पत्नियों की संख्या सैकड़ों से ऊपर जाकर ही ठहरती है। पर ऐसे शासक की कब्र आज भी नहीं पता..।
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चंगेज खान कौन था: जीवनी
चंगेज खान, नाम से मुस्लिम लगने वाला यह शासक वास्तव में मुस्लिम नहीं था। उसका असली नाम ‘तेमुजिन‘ था। वह एक मंगोल योद्धा था तथा मंगोल भाषा में ‘तेमुजिन’ का अर्थ है ‘लौहकर्मी’। ‘चंगेज खान’ नाम एक उपाधि थी इस उपाधि का अर्थ था ‘सागर का महान शासक‘।
उसका जन्म मंगोलिया के ओनोन नदी के किनारे 1162 ई. में एक खानाबदोश कबीले में हुआ था। उसके दाईं हथेली पर जन्म से ही खून का धब्बा था। उसकी माता होयलन तथा पिता येसूजेई थे। उसके पिता किरात कबीले के प्रमुख थे। मंगोलिया में कबीलों के बीच अक्सर युद्ध होते रहते थे। चंगेज खान के पिता ने उनकी माता को किसी दूसरे कबीले से भगाकर शादी की थी।
कबीलों में दुश्मनी के कारण बचपन में ही उसके पिता की हत्या कर दी गई उस वक्त उसके पीछे होयलन और सात बच्चे थे। पिता की मृत्यु के बाद लगातार एक के बाद एक विपत्तियों से निपटने के लिए उसने अनेक युद्ध किए। उसका विवाह कम उम्र में कर दिया गया था। उसकी पत्नी का नाम बोरेत था। विवाह के बाद बोरेत का अपहरण कर लिया गया था। पत्नी को छुड़ाने के लिए भी उसे लड़ाई लड़नी पड़ी। जब वह मंगोलों के कबीले का सरदार घोषित हुआ तब चंगेज खान को ‘कागान’ की उपाधि दी गई थी। उसकी मृत्यु 1227 ई. में हुई।
चंगेज खान रोचक तथ्य
बचपन से ही चंगेज खान गुस्सैल प्रकृति का था। उसने अपने भाई की हत्या सिर्फ इस बात के लिए की थी क्योंकि उसने मछली चोरी की थी। अनाथ होने के कारण उसने का बचपन से ही काफी संघर्ष किया था। कबीले के सरदार का पुत्र था इस वजह से उसने युद्ध की बहुत कलाओं और बारीकियों को भी सीख लिया था। वह यायावर प्रकृति का था। इसी वजह से वह लगातार घूमता रहा और विभिन्न देशों पर आक्रमण करता रहा।
वह अपने समय का क्रूरतम और बर्बर आक्रमणकारी शासक था। वह जिन-जिन देशों से आक्रमण कर आगे बढ़ता वहाँ अपनी बर्बरता के निशान छोड़ जाता था। ऐसा माना जाता है कि अपने पूरे जीवनकाल में उसने लगभग 4 करोड़ से अधिक हत्याएं करवाई थीं। यह संख्या हिटलर और स्टालिन द्वारा करवाए गए हत्याओं से भी बढ़कर है।अपने शासनकाल में उसने नई लिपि ‘उईघुर लिपि’ को अपनाया। उसने मंगोल में स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा दिया। व्यापार को और भी सुगम बनाने के लिए और भी चुनौतियाँ थी जैसे रास्ते में होने वाली लूटपाट जिनसे निपटने के लिए भी उसने इंतजाम किए।
चंगेज खान किस धर्म का था
चंगेज खान के धर्म के विषय में अनेक मतभेद हैं। उसके शासनकाल में धर्म को लेकर कभी विवाद नहीं हुए। न ही उसने किसी एक धर्म को संरक्षण दिया। उसके राज्य में धार्मिक सहिष्णुता थी। चंगेज खान स्वयं करें तेंग्रीस धर्म का था (तेंग्री मंगोलो के मुख्य देवता थे) पर बाद में उसने अन्य धर्मों के लोगों और धर्मगुरुओं से भी मिला जैसे बौद्ध, इस्लाम और इसाई धर्म आदि। चंगेज खान 1214 में ज़ेन बौद्ध भिक्षु हय्युन से भी मिला था। इसके अलावा वह ताओइस्म के गुरु कू चूज़ी ( qiu chuji) से भी प्रभावित था। नेहरू के अनुसार जब मंगोलो की ताकत बढ़ने लगी थी तो वेटिकन के पादरी ने उसे इसाई धर्म को अपनाने के लिए मनाने की भी कोशिश की।
चंगेज खान ने भारत पर आक्रमण क्यों नहीं किया ?
चंगेज खान भारत की ओर बढ़ा ज़रूर था पर कभी आक्रमण नहीं किया था। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि इतना शक्तिशाली शासक जो जिस देश पर चाहता उसपर कब्जा कर सकता था उसने भारत पर आक्रमण क्यों नहीं किया? उसने अपने विजय रथ को गजनी और पेशावर तक पहुँचा दिया था। गजनी जो वर्तमान का अफगानिस्तान तथा पेशावर वर्तमान का पाकिस्तान है। उस वक्त वहाँ का शासक ख्वारिज्म वंश का शासक अलाउद्दीन मोहम्मद था। चंगेच खान ने उसे कैस्पियन सागर की ओर भगा दिया था।
उसका उत्तराधिकारी हुआ जलालुद्दीन मंगवर्नी जो भागकर भारत आ गया।चंगेज खान ने उसका पीछा सिंधु नदी तक किया। उस वक्त दिल्ली में इल्तुतमिश का शासन था। मंगवर्नी ने इल्तुतमिश से सहायता माँगी पर इल्तुतमिश को चंगेज खान की शक्तियों का ज्ञान था इसलिए उसने मंगवर्नी की सहायता को राजी नहीं हुआ। चंगेज खान की योजना थी कि वह सिंधु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण करते हुए असम के रास्ते मंगोलिया की ओर प्रस्थान करेगा।
परन्तु ऐसा संभव न हो सका। सिंधु नदी के उस तरफ भौगोलिक स्थितियों की वजह से वह काफी गर्म था। इस तरह अत्यधिक गर्मी, प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह एक कारण बना कि वह वहीं से लौट गया। साथ ही उस वक्त शासकों के साथ शकुन-अपशकुन विचारक भी होते थे। चंगेज खान के विचारकों को अपशकुन की आशा थी अतः वह वहाँ से वापस हो गया। पर लौटने से पहले उसने जलालुद्दीन मंगवर्नी के लिए अपनी सेना की एक टुकड़ी वहीं छोड़ दी थी।
अंत में हम यह सोचते हैं कि कि इतने बड़े शासक के निशान या उसका मकबरा तलाश किया गया होगा?उसकी कोई तस्वीर होगी? तो सबसे खास बात यह कि आज किसी भी इतिहासकार के पास यह प्रमाण नहीं है कि चंगेज खान दिखने में कैसा था। न तो कोई तस्वीर है और न ही कोई पेंटिंग। इतिहासकारों को कुछ सिक्के अवश्य प्राप्त हुए हैं जिनमें उसकी तस्वीर होती पर वह भी अस्पष्ट ही रहे।
सबसे खास बात की चंगेज खान जैसे बड़े शासक का मकबरा कहाँ है यह भी आजतक नहीं पता चल सका है। हालाँकि उस बड़े शासक की याद में एक मकबरेनुमा इमारत अवश्य बनाई गई है पर वास्तविक मकबरा आज भी अज्ञात है। इसका कारण यह माना जाता है कि चंगेज खान कि इच्छा नहीं थी कि कोई उसके मकबरा को जाने इसलिए कहा जाता है कि उसके साथियों ने उसके मरने के बाद उसके मकबरे वाले क्षेत्र में दफनाने के बाद हजार घोड़ों को दौड़ाकर जमीन को बराबर कर दिया था। साथ ही मंगोलिया में यह माना जाता है कि अगर उसकी कब्र मिलेगी तो यह उनके लिए सही शकुन नहीं होगा। पर कोशिशें आज भी जारी हैं।
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