बिहार के छोटे से गांव से कैसे बने महाकवि नागार्जुन।
नागार्जुन बिहार के छोटे से सतलखा गांव के मधुबनी जिला से वैद्यनाथ मिश्र का हिंदी में सफ़र कुछ यूं बदला की उन्हें महाकवि नागार्जुन के नाम की संज्ञा दे दी गई।किसने सोचा था जिसने पूरी जीवन गरीबी में बिताई,दरिद्रता झेला उसके लेखन में सबको हिला देनी की ताकत थी।नागार्जुन ने 1945 के आस पास साहित्य के तरफ़ कदम रखा,हिन्दी साहित्य में उन्होंने ‘नागार्जुन’ तथा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचनाए की।पिता जी पंडित थे इसलिए उन्होंने घर से संस्कृत की शिक्षा ली पर संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने के साथ साथ उन्हें हिंदी, मैथिली, संस्कृत तथा बांग्ला में कविताएँ भी लिखीं।
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राजनीति के खिलाफ उनकी कलम से
जिन अंग्रेजों को भारत वासियों ने 200 वर्षों के संग्राम के बाद निकाल भगाया था, जवाहरलाल नेहरु जी उन्हीं अंग्रेज की रानी क्वीन एलिजाबेथ के लिए पूरे देश को सजा रहे थे। यह बात सभी भारतवासियों को खटक रही थी ऐसे में हिंदी के कवि नागार्जुन ने अपने गुस्से को अपनी कविता में जाहिर किया।
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!
नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि हैं। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा। यह वह वक्त था जब हर व्यक्ति के दिल में आजादी की लहू दौड़ रही थी,यह लहू नागार्जुन जी की कविता में स्याही के माध्यम से पंक्तियों में उतर रही थी।उनकी कविता शासन के ऊपर बिल्कुल कटाक्ष स्वर में थी इसके कई उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें से एक कविता यह भी है….
*शासन की बंदूक*
खड़ी हो गई चांपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक
और भी कई कविता जैसे – बर्बरता की ढाल ठाकरे,हिटलर के तम्बू में,इंदु जी क्या हुआ आपको आदि कविताएं मिल जाएंगी।
नागार्जुन जनकवि थे
नागार्जुन की कविताओं में राजनीति के साथ साथ जनता की आवाज़ भी थी। यदि जनकवि होने का सीधा अर्थ है जनता के सुख – दुख,आशा – आकांक्षा,आस्था – भ्रांति,जय – पराजय,आक्रमण – पलायन में ढाल की तरह अपने जनता की सेवा करना तो, नागार्जुन हिंदी के अकेले वैसे कवि हैं।
नागार्जुन स्वयं उस जनता से निकले हुए कवि हैं इसलिए उनमें जनता से दूरी नहीं नजदिकयां दिखती हैं, जनकवि जनता का दर्पण होता हैं जैसे जैसे जनता के विचार बदलते हैं उनके लेखन में भी बदलाव आता हैं और इस काम में नागार्जुन बहुत माहिर थे, इसमें एक उदाहरण दिखता है कि कभी तो नागार्जुन जयप्रकाश नारायण में आस्था दिखाते थे परंतु कहीं कहीं अविश्वास भी दिखाई देती हैं।
एक और बात नागार्जुन को जनकवि लेखक में सबसे अलग करती है नागार्जुन कि जनता सिर्फ शोषित,करुणा ग्रस्त नहीं हैं बल्कि वो लड़ती हैं, आवाज़ उठाती हैं,लाठी भी खाती हैं,आगे बढ़ती, हैं रुकती हैं,आराम करती हैं फिर लड़ती हैं यह एक अनूठी शुरआत थी जनता को ताकतवर बनाने की।
एक नई भक्ति की पहल
पछाड़ दिया मेरे आस्थिक ने ” एवं “कल्पना के पुत्र है भगवान” यह दो ऐसी कविता थी जो आज तक ईश्वर या उसमे आस्था को लेकर हिंदी साहित्य में पहले कभी नहीं लिखा गया। हिंदी कविता का एक पूरा युग भक्ति का रहा है,वैसी भक्ति अब कम दिखती हो परंतु आज भी जनता और कविता में भक्ति और आस्था जरूर है,किन्तु नागार्जुन की यह कविता केवल भक्ति भाव पर ही एकमात्र प्रहार नहीं करती,बल्कि विश्वास की एक पूरी प्रणाली पर वज्र प्रहार करती है।
भारतीय समाज की प्रत्येक रूढ़िवादी तथा अंधविशवासों के विरूद्ध कबीर के बाद शायद नागार्जुन ने है ऐसी कविता लिखी है।नागार्जुन के पास जो सम्पूर्ण विश्व का चित्र है,जो गहरी सहानुभूति,आस्था तथा सहभागिता उनकी जनता के साथ है,जिस तरह वह अपनी ताकत अपने देश से प्राप्त करते है,अपनी संस्कृति तथा विश्व संस्कृति से प्राप्त करते है,वह अतुलनीय है और वाल्ट व्हिटमैन में भी ऐसी ही भावना देखने को मिलती है।
भावों से भरे हुए नागार्जुन
एक कवि के कई भाव होते है जो उसके कविता को अलग अलग स्वर देते है ऐसे ही नागार्जुन भावों से भरे हुए कवि थे उन्होंने अपनी बेटी के लिए गुलाबी चूड़ियां ले जाने वाले बस ड्राइवर, अकाल के बाद पसरा सन्नाटा, काम से लौट रहे मज़दूर, सुअर, जेल का साथी नेवला आदि कविताओं को भी केंद्र में रखा जिसमें उनके भाव उभर कर आते हैं।
साहित्यिक उपलब्धियां
नागार्जुन को साहित्य अकादमी पुरुस्कार से, उनकी मैथिली रचना “पत्रहीन नग्न गाछ” के लिए 1969 में सम्मानित किया गया था,उन्हें साहित्य अकादमी फेलो के रूप में भी नामांकित करके सम्मानित किया गया था। वर्ष 1911 इसीलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंंकि इस साल शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, फ़ैज़ और नागार्जुन पैदा हुए।युगधारा,खिचड़ी,वि्पलव देखा हमने,पत्रहीन नग्न गाछ,सतरंगे पंखों वाली, मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा,इस गुब्बारे की छाया में जैसी रचनाओं से आम जनता में चेतना फैलाने वाले नागार्जुन कि साहित्य पर विमर्श का सारांश था कि नागार्जुन जनकवि थे और वे अपने कविताओं में आम लोगों के दर्द को बयां करते थे।नागार्जुन ने कविताओं के माध्यम से कई लड़ाइयां लड़ी।
नागार्जुन का पूरा जीवन प्रेरणादायक हैं।
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