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सरकार ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में किया आमूल चूल परिवर्तन……जानें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में क्या- क्या हुए बदलाव
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुहाए,
सार सार को गाहि रहे, थोथा देई उड़ाए।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली लार्ड मैकाले द्वारा प्रचलित शिक्षा प्रणाली का ही संशोधित रूप है, जिसमें समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है। ठीक इसी प्रकार से,वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पुनं शिक्षा के ढांचे में बदलाव किया गया है। जोकि मूलतया पांच स्तम्भों पर आधारित है। जिसमें एक्सेस (सब तक पहुंच), इक्विटी (भागीदारी), क्वालिटी(गुणवत्ता), अफोर्डेबिलिटी (किफायत), औऱ अकाउंटबिलिटी (जवाबदेही) पर मुख्यता ध्यान केद्रिंत किया जा रहा है। ऐसे में आइए विस्तार से जानते है शिक्षा प्रणाली में हुए अहम बदलावों के
बारे में।
आजादी से अब तक देश में लागू शिक्षा प्रणाली
लगभग 35 साल बाद देश में लागू शिक्षा व्यवस्था में अहम बदलाव किए गए है, हालांकि विदित है कि प्राचीन कालमें शिक्षा गुरुकुल प्रणाली पर आधारित थी। तत्पश्चात् देश अंग्रेजों का गुलाम हो गया जिसके बाद देश में आधुनिक शिक्षा चलन में रही। लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रीय शिक्षा पर जोर दिया जाने लगा। साथ ही तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई। उसके बाद साल 1964 मे कोठारी समिति ने देश में निशुल्क औऱ 14 साल तक के बच्चों की शिक्षा को अनिवार्य करने पर जोर दिया।
जिस पर साल 2006 में शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया गया। तब से लेकर आज तक शिक्षा की सृदढंता के लिए कई प्रयोग किए गए है। जिसमें 1968 में पहली शिक्षा नीति, उसके बाद राजीव गांधी की सरकार में सन् 1986 में लाई गई दूसरी शिक्षा पद्धति अहम है, जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीयों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करना औऱ सभी नागरिकों को शिक्षा उपलब्ध कराना है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बदलाव
21वीं सदी के श्रेष्ठ भारत की कल्पना साकार करने के लिए भारत सरकार हर क्षेत्र में प्रयासरत है। तो वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक आमूल चूल परिवर्तन किए गए हैं। जिसमें रटने की बजाय ज्ञान-विज्ञान और मुख्य रूप से कौशल शिक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है।
आपको बता दें कि इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अगुआई में गठित कमेटी ने 31 मई 2019 को रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन की सिफारिश की गई थी। जिसके बाद निम्न जरूरी बिंदुओं पर परिचर्चा कर सरकार की कैबिनेट मीटिंग में शिक्षा के वर्तमान ढांचे को बदलने की बात की गई।
व्यापारिक शिक्षा की लचीली व्यवस्था
वर्तमान शिक्षा प्रणाली को रोजगारपरक बनाने के लिए सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है, जिसके अंतर्गत अब विद्यार्थी बीच में शिक्षा छोड़ने के बाद भी रोजगार पा सकेंगे। ऐसे में जो विद्यार्थी किसी कारणवश शिक्षा छोड़ने के लिए बाध्य हो जाते है उनको यदि एक साल की डिग्री पूरी करते है तो सर्टिफिकेट, दो साल में एडंवास डिप्लोमा और तीन साल में स्नातक की डिग्री प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार हर साल विद्यार्थियों को डिग्री मिलेगी। नई शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम को लागू किया जा रहा है।
भाषा के चयन की सुविधा
नई शिक्षा नीति के तहत विद्यार्थियों पर भाषा को लेकर किसी भी प्रकार का दवाब नही डाला जाएगा। इससे पहले एक क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेजी को स्थान मिला था, लेकिन इस बार शिक्षा में भाषा के चयन को लेकर लचीलापन अपनाया गया है। जिसके चलते भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान जोड़े गए है,जिससे हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के विकास को बल मिलेगा।
स्कूली बस्तों का बोझ कम करने की कोशिश
स्कूली बच्चों के बस्ते के बोझ की कहानी कोई नई नही हैं, जिसके चलते इस बार शिक्षा नीति में इस मसले का खासा ध्यान रखा गया। ऐसे में कैबिनेट द्वारा निर्देशित किया गया है कि राज्य सरकारें स्थानीय जानकारियों और उपलब्धियों के आधार पर पाठ्यक्रम निर्धारित करें ताकि बच्चों के कंधे पर से भारी बस्तों का बोझ कम हो और वह जरूरी शिक्षा ग्रहण कर सकें।
शोध में होगा सुधार
उच्च शिक्षा और शोध में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए केंद्रीय सरकार ने अहम पहल की है। जिसके अनुसार अब छात्रों को तीन साल के ग्रेजुएशन कोर्स के बजाय चार साल का कोर्स करके सीधे एक साल का पोस्ट ग्रेजुएशन या पीएचडी करने का मौका मिलेगा। साथ ही इस बार से एमफिल को समाप्त कर दिया गया है। साथ ही शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन संस्था स्थापित की जाएगी।
प्राइवेट और सरकारी संस्थानों मॆं होंगे एकसमान नियम
नई शिक्षा नीति के तहत इस बार संस्थानों की फीस और पाठ्यक्रम का नीति निर्धारण सरकारी और प्राइवेट दोनों ही संस्थानों के लिए एकसमान होंगे। तो वहीं 10+2 के नियम को 5+3+3+4 के ढांचे में बदला जाएगा। जिसके अनुसार पांच साल के पहले चरण में तीन साल आंगनवाड़ी और दो साल पहली और दूसरी कक्षा की पढ़ाई होगी। जिसके बाद तीसरी से पांचवी कक्षा, तत्पश्चात् छठी से आठवीं और नौवीं से बारहवीं तक कुछ पांच चरण शामिल होंगे। इसके अलावा शिक्षकों के प्रशिक्षण में टेक्नोलॉजी और स्थानीय ज्ञान का समावेश किया जाएगा ताकि बच्चे शिक्षकों के अनुभव से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार जहां इन दिनों महामारी के दौर में शिक्षा व्यवस्था बेपटरी हो गई है, जिसे पटरी पर लाने के लिए सरकार ने शिक्षा प्रणाली को वर्तमान समय के अनुरूप बनाने पर जोर दिया है, जिसमें कौशल, व्यावहारिक ज्ञान और ऑनलाइन शिक्षा के मायनों पर जोर दिया जा रहा है।
क्या वर्तमान शिक्षा मानवीय मूल्यों को संवारने में खोखली साबित हुई है?
लक्ष्य क्या है, क्या है उद्देश्य, क्या है इसका अर्थ।
यह नही ज्ञात तो शिक्षा का उपयोग है व्यर्थ।
आधुनिक समय में शिक्षा के माध्यम से बड़े-बड़े कल कारखानों का निर्माण संभव है लेकिन क्या वर्तमान शिक्षा दो भाईयों में आपसी भाईचारा और सहयोग की भावना को पनपने में अग्रणी है, नहीं। क्योंकि आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने अपनेपन की मानसिकता को जन्म दिया है, जिसकी वजह से एक बच्चा दो परिवारों को आत्मसात करने में पीछे हट रहा है तो सोचिए वह कैसे समाज और देश की प्रगति में अपना योगदान दे पाएगा।
क्योंकि वह आगे बढ़ने और गलाकाट प्रतिस्पर्धा की होड़ में इतना आगे निकल चुका है कि वह सफल होने के लिए आज किसी भी हद तक जा सकता है, ऐसे में स्पष्ट कहा जा सकता है कि आज की शिक्षा विद्यार्थियों को भले ही रोजगारोपरक बनाने में मददगार साबित हो सकती है लेकिन वह मानवीय मूल्यों से कोसो दूर होती जा रही है।
यही कारण है कि पढ़ने वाले छात्रों में हिंसक प्रवृत्ति के बढ़ने की घटनाएं आम हो गई है। ऐसे में शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ परिवार, स्कूल, क़ॉलेजों और शिक्षकों को भी मानकों में परिवर्तन लाना होगा, ताकि वह समाज और देश को एक विद्यार्थी के रूप में कोई व्यापारी, कर्मचारी देने से पहले एक अच्छा इंसान बना सकें।
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