बाल गंगाधर तिलक का नाम सुनते ही “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे…” ये नारा हमारे कानों में गूँजने लगता है और आँखों के सामने लाल पगड़ी लगाए एक व्यक्ति का चेहरा आ जाता है। गांधी जी का आगमन 1915 में होता है और 1920 में तिलक दुनिया को अलविदा कह देते हैं। इस तरह आप देखेंगे तो तिलक ने आजादी की लड़ाई के लिए एक नींव तैयार की थी जिसपर की आज आजाद भारत खड़ा है। उन्होंने न केवल संग्राम के लिए एक क्रांतिकारी रवैया अपनाया बल्कि भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने का काम भी किया।
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बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय
23 जुलाई 1856 को जन्मे बाल गंगाधर तिलक को बचपन में बलवंतराय कहकर पुकारा जाता था।महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में जन्में तिलक के पिता गंगाधर पंत एक सुविख्यात अध्यापक थे। शायद उन्हीं से तिलक में भी तीक्ष्ण बुद्धी आई। 1871 में 15 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह तापीबाई नामक कन्या से करवा दिया जाता है। बचपन से ही एक सुशिक्षित माहौल में पले बढ़े तिलक 1876 में प्रथम श्रेणी में बी.ए पास करते हैं।
1880 में अपने मित्र के साथ एक प्राइवेट स्कूल की स्थापना करते हैं तथा 1885 में तो एक कॉलेज की नींव रखी जो फरग्यूसन कॉलेज के नाम से जाना गया। 1889 में उन्होंने एक जनप्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेते हैं। 1905 में वो बंगाल विभाजन का जोरदार विरोध करते हैं। 1916 में तिलक एनी बेसेन्ट के साथ मिलकर होमरूल आंदोलन चलाते हैं। अपने जीवन यें तिलक अनेक बार जेल जाते हैं और आख़िरकार 20 जुलाई 1920 को उनका निधन हो जाता है।
बाल गंगाधर तिलक एक शिक्षक
तिलक स्वयं एक शिक्षक थे अतः उन्हें उस वक्त की शिक्षा प्रणाली में व्याप्त ख़ामियों का पता था और इसी वजह से वह उस वक्त की शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे। शिक्षण के सम्बंध में उन्होंने कहा था कि ‘पढ़ना-लिखना सीख लेना ही शिक्षा नहीं। शिक्षा वही है, जो हमे जीविकोपार्जय योग्य बनाए। देश का सच्चा नागरिक बनाए, हमे हमारे पूर्वजों का ज्ञान और अनुभव दे।
‘उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा देने पर भी बल दिया। इस प्रकार स्वयं एक शिक्षक होते हुए तिलक ने अनेक विद्यालयों और कॉलेज की स्थापना भी की। 1905 के नागरी प्रचारिणी सम्मेलन में उनका कहना था कि सम्पूर्ण भारत को संगठित करने के लिए हमें एक भाषा की आवश्यकता है अतः उन्होंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने पर जोर दिया।
बाल गंगाधर तिलक और कांग्रेस
1889 में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने वाले तिलक 1906 में कांग्रेस के ही अधिवेशन में सर्वप्रथम ‘स्वराज‘ की माँग उठाते हैं। जाहिर है यहाँ तक की और इससे आगे की यात्रा तिलक के लिए आसान नहीं थी। तिलक से पहले कांग्रेस सिर्फ शिक्षित वर्ग तक ही सीमित था उन्होंने इसे जनांदोलन बनाया। तिलक का व्यक्तित्व उग्र था जबकी कांग्रेस एक मध्यममार्गी संगठन था। इसी कारण 1907 के सूरत के अधिवेशन में एक टकराव होता है और गरमदल की उत्पत्ति हुई जिसके तीन प्रमुख थे ‘लाल-बाल-पाल‘। हाँलाकि इस विभाजन के बाद भी गरमदल और नरमदल दोनों ही एक दूसरे के पक्ष में ज़रूर रहे हैं इसकी सबसे बड़ी वजह तिलक थे।
बाल गंगाधर तिलक और स्वदेशी आंदोलन
अमेरिकन विद्वान डॉ. एलशे ने तिलक की राजनीतिक विचारधारा के बारे में लिखा है कि, जब भारत में वास्तविक राजनीतिक जाग्रति आरम्भ हुई, तो सर्वप्रथम तिलक ने ही स्वराज्य की आवश्यकता और उनके लाभों की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट किया था। उन्होंने ही सर्वप्रथम स्वदेशी वस्तुओं के प्रति अनुराग, राष्ट्रीय ढंग की शिक्षा, जन प्रिय संयुक्त राजनीतिक मोर्चे इत्यादि की खोज की, जिनके द्वारा स्वराज्य के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण सहायता मिली। तिलक ने न केवल विदेशी के बहिष्कार करने पर जोर दिया बल्कि खुद स्वदेशी सामानों को निर्मित करने पर भी उनका जोर था बॉम्बे स्वदेशी कोआरपोरेटिव स्टोर की स्थापना में उनका बहुत अधिक योगदान था।
बाल गंगाधर तिलक का अपना राष्ट्रीय आंदोलन
हमने यहाँ ‘अपना’ शब्द इसलिए प्रयोग किया कि तिलक का जो तरीका था वो उनसे पहले भारत में किसी ने नहीं अपनाया था और वह था सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर जोर देना। तिलक ने बंबई में गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की। इसने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को सांस्कृतिक रूप से लोगों को जोड़ने का काम किया।
तिलक पर हालांकि इस वजह से सांप्रदायिकता के आरोप भी लगाने की कोशिशें हुई पर ऐसा नहीं था उनके प्रशंसकों में मोहम्मद अली जिन्ना स्वयं थे। तिलक राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम जनता का भी साथ चाहते थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने व्यायाम शालाएँ, अखाड़े, गौ-हत्या विरोधी संस्थाएँ स्थापित कीं तथा हिन्दू देवताओं एवं वीरों की पूजा पर बल दिया।
बाल गंगाधर तिलक एक समाज सुधारक
बाल गंगाधर तिलक अपने समय के अच्छे समाज सुधारकों में से एक थे। भारतीय पुनर्जागरण में यदि हम तिलक को रखें तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। तिलक बाल विवाह के सख़्त विरोधी थे। उनका मानना था कि लड़के का विवाह कम से कम 20 वर्ष की आयु में और लड़की का 16 वर्ष की आयु में किया जाना चाहिए। उस वक्त अधेड़ उम्र के पुरुष भी विवाह करते थे जिनके बारे में तिलक का मानना था कि 40 से अधिक उम्र के व्यक्ति को विवाह नहीं करना चाहिए। विधवाओं के मुंडन, दहेज प्रथा, छुआछूत और मदिरापान आदि का भी तिलक विरोध करते थे। इस प्रकार तिलक अपने समय के आधुनिक पुरुष थे।
बालगंगाधर तिलक ने अनेकों ऐसे कार्य किए जिसने आजादी की भूमि तैयार की परन्तु उनकी मृत्यु को बहुत असमय माना जाता है। इसीलिए उन्हें एक दुर्भाग्यशाली राजनीतिज्ञ भी माना जाता है। भारत मन्त्री मॉण्टेग्यू ने एक बार कहा था कि, भारत में केवल एक ही अकृत्रिम उग्र राष्ट्रवादी था और वह था तिलक। अंग्रेज उन्हें भारतीय अशांति का जनक कहते थे क्योंकि आजादी की जो आग तिलक ने लगाई उसमें सारा अंग्रेज राज जल गया।
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