गुरु गोविंद सिंह: सिखों के 10वें गुरु का जीवन इतिहास ,रचनाएं और शब्द
गुरु गोविंद सिंह : गुरु गोविंद सिंह जी के व्यक्तित्व के बारे में स्वामी विवेकानंद जी ने लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह जैसे व्यक्तित्व का आदर्श सदैव हमारे सामने रहना चाहिए। दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह ने समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह आदि के खिलाफ आवाज बुंलद की थी। इस प्रकार गुरु गोविंद सिंह के शौर्य और पराक्रम का देश हमेशा कृतघ्न रहेगा।
सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।।
सिखों के दसवें गुरु थे गुरु गोविंद सिंह : उपयुक्त दोहे के माध्यम से आज हम आपका परिचय कराने जा रहे है सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह से। जिन्होंने भारत में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। इतना ही नहीं मुगलों के आक्रामण के दौरान उन्हें गुलाम बनने से बेहतर मरना लगा और इस जंग में उन्होंने अपने परिवार वालों तक की चिंता नही की।
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गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
गुरु गोविंद सिंह का जन्म कब हुआ था : महान् योद्धा गुरु गोविंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि 12 जनवरी 1666 को भारत देश के बिहार राज्य की राजधानी पटना में हुआ था। इनके बचपन का नाम गोविंद राय था। साथ ही इनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था, जोकि सिखों के नौंवे गुरु थे। तो वहीं गुरु गोविंद सिंह की माता का नाम गुजरी था। लेकिन इस्लाम धर्म कबूल न करने की वजह से औरंगजेब ने नवंबर 1675 में उनका सिर कलम कर दिया गया था। ऐसे में मात्र 9 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के पश्चात् गुरु गोविंद सिंह ने पिता की गद्दी संभाली।
गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों की कहानी : कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह की तीन पत्नियां थी, जिनके नाम क्रमश: माता जीतो, माता सुंदरी और माता साहिब देवां थे। जिनसे गुरु गोविंद सिंह जी को चार बच्चे हुए थे । जोकि अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे। इतना ही नहीं गुरु गोविंद सिंह ने बचपन में ही तीर कमान और युद्ध नीतियां सीख ली थी, जिसके चलते उनकी उम्र के बच्चे उऩ्हें सरदार कहकर पुकारते थे। साथ ही उन्हें बहुत सारी भाषाएं जैसे फारसी, हिंदी, संस्कृत, बृज का अच्छा ज्ञान था। ऐसे में गुरु गोविंद सिंह जी ना सिर्फ एक महान् योद्धा थे बल्कि वह आगे चलकर एक धर्मरक्षक, लेखक और एक संत सिपाही के रूप में प्रसिद्ध हुए।
गुरु गोविंद सिंह की गुरबाणी
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह का नारा
जानकारी के लिए बता दें कि सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी कही। जिसके बाद वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह प्रचलन में आया। इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के लिए पांच ककार को लागू कर दिया था। जिसमें सिखों को केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा धारण करने को कहा गया। इसके अलावा गुरु गोविंद सिंह ने यह भी एलान कर दिया था कि जहां पांच सिख निवास करेंगे। वहीं गुरु गोविंद सिंह रहेंगे।
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खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोविंद सिंह जी के पिता का सिर औरंगजेब ने कटवा दिया था, जिसके बाद बैसाखी के दिन साल 1676 में गोविंद सिंह को सिक्खों के दसवां गुरु माना गया। जिसके बाद गुरु गोविंद सिंह ने देश के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। कहते है कि एक बार गुरु गोविंद सिंह ने सभा में सबके सामने पूछा था कि कौन अपने सिर का बलिदान देना चाहता है….तो उस वक्त एक स्वयंसेवक राजी हो गया। जिसके बाद स्वयंसेवक को गुरु गोविंद सिंह एक कक्ष में ले गए, जहां से गुरु गोविंद सिंह खून सनी तलवार लेकर बाहर निकले।
पंज प्यारे की स्थापना :तत्पश्चात् उन्होंने पुनं लोगों से वहीं सवाल पूछा। और फिर से एक व्यक्ति राजी हो गया। ऐसा करते-करते कुल पांच लोग अपने सिर का बलिदान देने के लिए राजी हो गए। जिसके बाद गुरु गोविंद सिंह पांचों को सही सलामत लेकर कक्ष से बाहर निकले। औऱ उन्होंने उन्हें पंज प्यारे और पहला खालसा का नाम दिया। जिसे साल 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ के नाम से जाना गया।
गुरु गोविंद सिंह के कार्य
मानस की जात एक सभै, एक पहचानबो का संदेश देकर गुरु गोविंद सिंह ने समाज से ऊंच-नीच, भेदभाव को खत्म करने की ठानी। जिसके लिए उन्होंने नीची जाति के लोगों के साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया। इतना ही नहीं मुगलों से लड़ाई के दौरान गोविंद सिंह का पूरा परिवार शहादत को प्राप्त हो गया। जिसके चलते गुरु गोविंद सिंह के जन्मदिवस को एक जंयती के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान गुरुद्वारों और सिख लोगों के घरों में कीर्तन होता है औऱ खालसा पंत की झांकियां शहर भर में निकाली जाती है। साथ ही इस दिन विशेषकर लंगर का भी आयोजन किया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह एक क्रांतिकारी योद्धा होने के साथ-साथ संत व्यक्तित्व के धनी थे। ऐसे में उन्होंने मानवता के लिए शांति, प्रेम, एकता, समानता का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही गोविंद सिंह जी ने कभी भी युद्ध निजी स्वार्थ और राजनैतिक शाक्तियां को पाने के लिए नहीं, बल्कि अन्याय औऱ अत्याचार के खात्मे के लिए लड़ा। इसके अलावा लोग उन्हें एक संत सिपाही के नाम से भी जानते थे। क्योंकि संन्यासी जीवन को लेकर उनका कहना था कि एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है औऱ अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है। लेकिन व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना चाहिए।
गुरु गोविंद सिंह की रचनाएं
गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद सिखों का नेतृत्व किसने किया: गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण कर उसे अपने बाद सिक्खों के गुरु के रूप में स्थापित किया। तो वहीं जिस लिखित स्त्रोत से गुरु गोविंद सिंह के बारे में जानकारी मिलती है, वह विचित्र ग्रंथ उनकी आत्मकथा के रूप में जाना जाता है। साथ ही कई विशेष लिखित रचनाएं जैसे कि दसम ग्रंथ, जाप साहिब, अकाल उस्तत, चण्डी चरित्र, जफरनामा, शास्त्र नाम माला, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, खालसा महिमा आदि गुरु गोविंद सिंह द्वारा ही रचित है।
गुरु गोविंद सिंह जी के शब्द
- असहाय लोगों पर अपनी तलवार या शाक्ति का प्रदर्शन कभी नहीं करना चाहिए। वरना विधाता तुम्हारा खून स्वयं बहाएगा।
- अच्छे कर्मों के द्वारा तुम्हें सच्चे गुरु की प्राप्ति होती है, साथ ही ईश्वर की दया से आपको उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
- मनुष्य से प्रेम करना ही ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति है।
- ईश्वर ने मनुष्य को जन्म ही इसलिए दिया है, ताकि वह अच्छे और बुरे कर्मों की पहचान कर सके।
- मनुष्य को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा हमेशा दान करना चाहिए।
गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु
गुरु गोविंद सिंह के समय दिल्ली में किस मुगल शासक का शासन था : यह उस समय की बात है जब 18 मई साल 1705 को मुक्तसर में मुगलों से युद्ध में गुरु गोविंद सिंह की जीत हुई थी। उस दौरान औरंगजेब ने गुरु गोविंद सिंह को शिकस्त पत्र लिखकर बधाई दी थी। साथ ही औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु गोविंद सिंह ने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में काफी प्रयास किया। जिससे इन दोनों के बीच काफी नजदीकियां बढ़ गई। तत्पश्चात् गुरु गोविंद सिंह और बहादुरशाह के संबधों से भयभीत होकर सरहद के नबाव वजीत खां ने दो पठानों को गुरु गोविंद सिंह को मारने के लिए भेज दिया। जिन्होंने पीछे से वार करके गुरु गोविंद सिंह को मार दिया।
गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु कब हुई : ऐसे में 17 अक्टूबर सन् 1708 को गुरु गोविंद सिंह ने नांदेड साहिब में प्राण त्याग दिए।
जिसके बाद सिक्खों ने गुरु गोविंद सिंह के कहने पर गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु माना। इस प्रकार मां भारती का यह पुत्र काल की गोद में समां गया। जिनकी प्रशंसा करते हुए कट्टर आर्यसमाजी लाला दौलतराय लिखते हैं कि स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, परमहंस आदि के बारे में भी बहुत कुछ लिख सकता था, लेकिन मैं किसी पूर्ण पुरुष के बारे में लिखना चाहता था। ऐसे में पूर्ण पुरुष के सभी गुण मुझे गुरु गोविंद सिंह में ही मिलते हैं। तो वहीं गुरु गोविंद सिंह को कलगीधर, दशमेश, बांजावाले आदि के नाम से भी जाना जाता है।
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