मोहम्मद बिन कासिम का भारत पर आक्रमण और इस्लाम का आगमन ।
हमारे देश भारत पर बहुत पहले से ही अनेक हमले हुए। इन हमलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत को प्रभावित किया। भारत की इस स्थिथि और हालत में इन घटनाओं का योगदान है। अनेक हमले भारत के इस रूप को बदलने के लिए हुए पर वास्तव में कोई भी हमला या घटना भारत को बदल नहीं सके बल्कि भारत ने ही उन्हें अनेक प्रकार से परिवर्तित कर स्वयं में शामिल कर लिया। इस प्रकार बना स्वरूप ही आज हमारे समाज में देखने को मिलता है। इन्ही ऐतिहासिक घटनाओं और हमलों में मोहम्मद बिन कासिम का हमला गिना जाता है। यह भारत पर अरबों के हमलों का शुरुआती दौर था।
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मोहम्मद बिन क़ासिम कौन था
मोहम्मद बिन क़ासिम सउदी अरब की खिलाफत (यानी -ख़लीफ़ा का शासन) का एक सिपहसालार यानी कि सेनापति था। उसका जन्म सउदी अरब के ताइफ़ नामक शहर में हुआ था। पिता की मृत्यु कम समय में होने के बाद उसके पिता के भाई हज्जाज़ बिन युसूफ ने उसका पालन पोषण किया। उसने बिन कासिम को युद्ध और प्रशासन कलाओं आदि की शिक्षा दी तथा उसकी शादी अपनी ही बेटी ज़ुबैदा से कर दी। हज्जाज़ उस वक्त इराक़ के राज्यपाल थे। हज्जाज़ ने ही उसे 17 वर्ष की आयु में मरकान तट के रास्ते सिंध पर हमले के लिए भेजा था।
पाकिस्तान की मानें तो यह व्यक्ति जिसने उस वक्त के सिंध पर हमला किया था वह पहला पाकिस्तानी था। आश्चर्य की बात है कि उस वक्त पाकिस्तान की कल्पना तक नहीं की गई थी। 1953 में छपी टेक्स्ट बुक ‘फाइव इयर्स ऑफ़ पाकिस्तान’ में आया था। इसमें सिंध को दक्षिणी एशिया का पहला इस्लामिक प्रांत बताया गया जिसका कारण यह बताया गया कि मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर ही हमला करके इस्लाम की बुनियाद डाली थी। भारत के लिए आज भी वह एक आक्रमणकारी था।
कासिम का भारत पर हमला
जिस वक्त कासिम ने हमला शुरू किया उस वक्त सिंध इलाके में राजा दाहिर का शासन था। पाकिस्तान का इतिहास हमले के संदर्भ में इस घटना को इस तरह बताता है जिसने सिंध की जनता को ब्राह्मणों की निरंकुश, जातिवादी शासन से समतावादी समाज की ओर प्रेरित करते हुए स्वतंत्र किया।
हालाँकि सिंध के इतिहासकार जी.एम.सईद 1964 में इसलिए जेल में डाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने बताया कि दाहिर के समय में हिन्दू, बौद्ध और अन्य पंथ को मानने वाले लोगों के बीच सद्भाव था। अरब के मुसलमानों को भी समुद्र के किनारे बसने की इजाजत थी। इस प्रकार दूसरे तथ्यों के इतिहास पर जेल में डालने वाले पाकिस्तान के द्वारा कही गई ऐतिहासिक तथ्यों पर विश्वास करना कठिन होता है। उस वक्त का वास्तविक इतिहास क्या था इसके संबंध में मतैक्य नहीं हैं। आगे जानते हैं कि उसका आक्रमणकारी दल कहाँ तक पहुँचा-
● 711 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ने देवल पर हमला करते हुए भारत की ओर एक और कदम बढ़ा दिया। राजा दाहिर के भतीजे ने राजपूतों के साथ इस किले की रक्षा करने की कोशिश की पर वह असफल रहा।
● उसका अगला पड़ाव नेऊन रहा। नेऊन की रक्षा के लिए तैनात अपने पुत्र जयसिंह को राजा ने ब्राह्मणाबाद बुला लिया और वहाँ की रक्षा का भार एक पुरोहित पर छोड़ दिया। नेऊन राज्य में बौद्धों की संख्या काफी अधिक थी। उन्होंने उससे युद्ध करने की बजाय हथियार डाल दिए जिससे मीर कासिम का उसपर आसानी से कब्जा हो गया।
●सेहवान या सिविस्तान का शासक माझरा बिना युद्ध किये ही नगर छोड़कर चला गया। इस प्रकार उसने आसानी से यहाँ भी कब्जा कर लिया।
●सीसम के जाटों पर विजय उसका अगला पड़ाव रहा। जाटों की हार के बाद उन्होंने उसकी सत्ता स्वीकार की।
●राओर विजय इन सभी पड़ावों में महत्वपूर्ण रहा। यहाँ पर राजा दाहिर और मोहम्मद बिन कासिम के बीच युद्ध होता है। इस युद्ध में राजा दाहिर मारा जाता है और दाहिर की पत्नी अपने आप को दूर्ग की रक्षा में असफल पाकर आत्महत्या कर लेती है।
●ब्राह्मणाबाद में राजा दाहिर के पुत्र की हार हुई।
●अगला पड़ाव आलोर था जहाँ की जनता ने शुरुआत में तो लोहा लेने की कोशिश की पर बाद में फिर हार मान ली।
●आख़िर में कासिम ने मुल्तान पर आक्रमण किया। इस नगर के विजय के बाद यहाँ पर इतना सोना मिला कि इसका नाम उसने ‘स्वर्णनगर’ किया।
714 में उसके ताऊ हज्जाज की तथा 715 में खलीफ़ा अल-वलीद की मृत्यु हो गई। इसके बाद कासिम को वापस बुला लिया गया इस प्रकार उसकी विजय यात्रा सिंध तक आकर सीमित हो गई।
मोहम्मद बिन कासिम ने भारतीय इतिहास को कैसे प्रभावित किया
हम इस अध्याय को अरबों द्वारा किए गए आक्रमण का महत्वपूर्ण हिस्सा मान सकते हैं। इसकी वजह से इस्लाम का आगमन भारत में हुआ। इससे भारत में नई संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। हालाँकि भारतीय संस्कृति की सबसे खास बात यह है कि यह सभी को स्वयं में समाहित कर लेती है। इसके साथ भी यही हुआ।
परन्तु इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव यह था कि अब अरब आक्रमणकारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था और इस वजह से एक बड़ी सांस्कृतिक विध्वंस भी हुआ। लाखों धर्म परिवर्तन, हजारों मंदिरों का विध्वंस तथा बड़ी मात्रा में लूट भी हुए। इस तरह इस आक्रमण ने भारतीय इतिहास को एक ऐतिहासिक मोड़ दिया।
मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु कैसे हुई
जब खलीफ़ा अल-वलीद की मृत्यु हुई तो उसका छोटा भाई सुलेमान बिन अब्दुल मलिक अगला खलीफ़ा बना। जिन्होंने उसे इस ताज को हासिल करने में मदद की वो सभी हज्जाज के विरोधी थे। इस तरह हज्जाज के समर्थकों और विरोधियों की वजह से ही कासिम की मृत्यु हुई। खलीफ़ा ने हज्जाज के समर्थकों के ऊपर अत्याचार करना शुरू किया और इसी में कासिम की मृत्यु हुई।
एक दूसरी भी कहानी इस बारे में काफी प्रसिद्ध है वह है ‘चचनमा’ नामक ऐतिहासिक दस्तावेज की। इस बारे में पाकिस्तानी अख़बार ‘डॉन’ में अख़्तर बलोच भी लिखते हैं। क्या है यह पूरी कहानी ? इसके मुताबिक कासिम ने दाहिर की दोनों बेटियों सूर्यदेवी और पर्मलदेवी को खलीफ़ा के पास भेजा। उन्होंने कासिम से बदला लेने के लिए खलीफ़ा से झूठ बोला कि वे कासिम के साथ पहले ही हमबिस्तरी कर चुकीं हैं। इससे खलीफ़ा काफी नाराज़ हुए। उसने कासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस बुलाया जिसमें दम घुटने की वजह से उसकी मौत हो गई।
आज भी मोहम्मद कासिम शाह जिसे पहला पाकिस्तानी कहा गया उसके कब्र की कोई खबर नहीं है।
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